दलितों की दुर्दशा! यौन हिंसा की शिकार दलित महिलाओं की व्यथा- न कोई केस, न ही चर्चा
महाराष्ट्र के बुलढाना तहसील में 47 साल की राधाबाई गुलराव उंबाल्कर का उनके गांव के दंबंगों ने यौन प्रताड़ित किया और उन्हें नग्न कर पूरे गांव में घुमाया. इस घटना के 9 महीने बाद भी उनके हमलावर खुला घूम रहे हैं.
राधाबाई के मुताबिक, पिछले साल 2 जून को उनके पति महीने के खर्चे को लेकर हुए झगड़े के बाद गुस्से में घर छोड़कर चले गए. राधाबाई उन्हें रोकने को पीछे भागीं, लकिन तब तक वह बहुत दूर जा चुके हैं.
राधाबाई बताती हैं, 'मैं उन्हें वापस लाने को पीछे भागी, लेकिन वह काफी दूर जा चुके थे और मुझे दिखे ही नहीं. तब मैं एक खेत के पास रुकी और वहां खड़े लोगों से पूछा कि क्या उन्होंने मेरे पति को देखा है. उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया और फिर मुझे मेरे बेटे और देवर को साथ लाने को कहा.'
हालांकि जब राधाबाई उन दोनों को लेकर वापस उस जगह पहुंचीं, तो वहां करीब 30 लोग उनका इंतजार कर रहे थे. उनके पहुंचते ही उन लोंगों ने राधाबाई और उनके परिवार पर हमला कर दिया.
राधाबाई का बेटा उस घटना को याद करते हुए बताता है कि उस दिन का सोच कर ही वह सिहर उठता है. वह कहता है, 'उन्होंने हमें दलित कहकर बुलाया और भद्दी गालियां देने लगे. उन्होंने मुझे जमीन पर पटक दिया, फिर मुझे और मेरे चाचा को लात-घूंसे मारने लगे. उन्होंने हमें लाठी-डंडों, लोहे के रॉड, जो मिला सबसे मारा.'
इस हमले में दोनों लोगों को गहरी चोटें आई हैं. राधाबाई के देवर को सर में 13 टांकें लगाने पड़ें. वहीं राधाबाई ने अपने बेटे और देवर को बचाने की कोशिश की, तो उन लोगों ने उसका बाह पकड़ा और किनारे धकेल दिया.
गांव के 'अगड़ी जातियों' से जुड़े लोगों की इस भीड़ ने पहले उनके कपड़े फांड़ कर अपनी 'जीत' के झंडे की तरह टांग दिया. फिर उन्होंने उसके दोनों हाथ बांध दिए और नग्न अवस्था में ही पूरे गांव के चक्कर लगवाए.
उनमें से कुछ लोग मेरे गुप्तांगों में लकड़ियां डालते. कुछ लोगों ने मेरे स्तन पर मारा, मेरी जांघों को नोच-खसोट रहे थे और मुझे बार-बार थप्पड़ मार रहे थे. मेरे शरीर से काफी खून बह रहा था. इस दौरान कुछ लोग मेरा वीडियो बना रहे थे.
— राधाबाई
राधाबाई बताती हैं, उन दबंगों ने इसके बाद उन्हें कूड़े के ढेर में फेंक दिया. वहां कुछ दूसरे दलितों ने उन्हें कुछ पायदान दिए, जिससे किसी तरह उन्होंने अपना तन ढंका और से सीधा वह पुलिस थाने पहुंचीं.
हालांकि जैसा अक्सर इस देश में होता है, न्याय की राह इन दलितों के इतनी आसान नहीं. पुलिस अधिकारियों ने उसकी शिकायत पर FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया और उसकी जगह बस एक गैर-संज्ञेय रिपोर्ट दर्ज की, जिसकी कॉपी न्यूज18 के पास है. इस तरह की रिपोर्ट में पुलिस को केस की जांच की कोई जवाबदेही नहीं होती, बशर्ते कोई कोर्ट उसे इस बाबत निर्देश न दे.
राधाबाई के बेटे कहते हैं, 'उनमें से कोई भी अबतक गिरफ्तार नहीं हुआ. हम हर हफ्ते पुलिस थाने के चक्कर काटते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.'
न्यूज़18 के पत्रकार ने इसे लेकर पुलिस इंस्पेक्टर संग्राम पाटिल से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्हें पहली बार फोन काट दिया और फिर कभी उठाया ही नहीं. इसे लेकर कई एसएमएस भी किए गए, लेकिन उसका भी जवाब नहीं मिला.
इस मामले में दलित स्त्री शक्ति नाम के एक एनजीओ से जुड़ीं कौशल देवी कहती हैं, 'निर्भया के साथ जब यह हुआ, तो पूरी दिल्ली सड़क पर उतर आई. वहीं देश में रोजाना दलित महिलाओं के साथ उसी तरह रेप और दुर्व्यवहार होता है, तो कहीं से कोई आवाज नहीं उठती. आपको पता है इसमें सबसे ज्यादा पीड़ादायी क्या है? ज्यादातर महिलाओं ने यह स्वीकार कर लिया है कि उनके साथ ऐसा ही होता रहेगा. ऊंची जाति के वो लोग उनके मनमाफिक व्यवहार करते रहेंगे और उन्हें इसी तरह जिंदगी गुजारनी होगी.'
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े भी इस बात का तस्दीक करते हैं. इस रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 वर्षों के दौरान दलितों के खिलाफ मामलों में 51% का इजाफा हुआ है. साल 2016 में ही दलितों के खिलाफ अपराध के 40,801 मामले दर्ज किए गए. वहीं देश में दलितों के खिलाफ होने वाले कुछ अपराध का एक-चौथाई अकेले उत्तर प्रदेश में सामने आता है.
पिछले दिनों 8 मार्च जब दुनिया 'महिला दिवस' मना रही थी, तब ये दलित महिलाएं अपनी दुख और उप्तीड़न के साये में दिन गुजार रही थीं. महिलाओं की गरिमा से ये खिलाफ बस एक जघन्य अपराध नहीं, बल्कि उसके बाद भी यह कई दूसरे रूपों में चलता रहता है.
वर्ष 2011 में आए जनगणना के ताज़ा आंकड़े के अनुसार उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र में देश की 42% दलित आबादी है. 2016 के लिए एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि दलितों के खिलाफ हुए कुल अपराधों में 25.5% सिर्फ उत्तर प्रदेश में हुआ. इसी रिपोर्ट में कहा गया कि अधिकतर अपराधों में सबसे ज्यादा अपराध महिलाओं के खिलाफ किए गए, जिसमें बलात्कार व अन्य यौन अपराध शामिल थे.
संगीता की पीड़ा
राधाबाई के घर से करीब सौ किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के वाशिम जिले के मोठेगांव में 35 वर्षीय संगीता पवार बैंक के कुछ काम से गई थीं. मोथेगांव का घर उसके पिता संजय के नाम था. हालांकि, संजय कर्जत में सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करता था, जिसकी वजह से उसने वहां किराए पर घर ले लिया था. पति से अलग होने के बाद संगीता अपने पिता संजय पवार और अपने दो बेटों- जिनकी उम्र एक 12 साल वो 17 साल थी- के साथ कर्जत चली गई.
पिछले साल फरवरी के सातवें दिन मंगलवार की बात है, जब 57 वर्षीय भूरे बालों वाला आदमी सोने की तैयारी में था कि उसी समय उसे एक फोन कॉल आता है.
पवार लाचारी और गुस्से भरी आवाज में कहते हैं, "संगीता अकेले मोठेगांव के घर में थी. शाम को मुझे उसके साथियों और पड़ोसियों का फोन आया. घर से ज़ोरों की आवाज सुनने के बाद वे उसे पास के अस्पताल में लेकर गए. वह गंभीर रूप से जल गई थी और जब तक वो अस्पताल पहुंची तब तक वो बेहोश हो चुकी थी.'
गांव के अस्पताल में डॉक्टरों को जल्दी ही पता चल गया कि यह दुर्घटना नहीं, बल्कि कई लोगों ने क्रूरता से महिला का बलात्कार किया था. अगले दिन संगीता को मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया.
पवार कहते हैं हमने उसे मुंबई में अपने कुछ रिश्तेदारों के यहां शिफ्ट कर दिया. प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताए गए तथ्यों और संगीता की टूटी-फूटी बातों के आधार पर पलिस ने एफआईआर दर्ज कर लिया.
35 वर्षीय उस महिला का बलात्कार करके ज़िंदा जला दिया गया था. एक महीने तक जिंदगी व मौत से लड़ने के बाद उसका निधन हो गया. न्यूज़18 को इस मामले में एफआईआर की कॉपी मिली है, जिसमें रंजीत, देवीदास देशमुख और तीन अन्य के खिलाफ केस दर्ज किया गया. इस बारे में पुलिस इंस्पेक्टर उत्तम कामाजी मोरे को कई बार फोन किया गया, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं मिला.
अपने नातियों के लिए भी पिता की भूमिका निभा संजय कहते हैं, 'वो सारे लोग बेल पर बाहर घूम रहे हैं. उन्होंने उसे जिंदा जला दिया. उसके बेटे अब मेरे साथ रहते हैं. बड़ा वाला बेटा जल्द ही काम शुरू कर देगा.'
'जातीय श्रेष्ठता जताने को करते हैं अत्याचार'
गैर सरकारी संगठन नेशनल मूवमेंट फॉर दलित जस्टिस के महासचिव रमेश नाथन ने कहा कि यह अपराध सिर्फ यौन उत्तेजना के चलते नहीं किए जाते बल्कि वो इस तरह के अपराधों से अपराधी अपनी जातीय श्रेष्ठता को भी पीड़ित पर सिद्ध करना चाहते हैं.
एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि दलित महिला का बलात्कार, एक दलित की हत्या की तुलना में तीन गुना अधिक है और दलित की संपत्ति जलाए जाने की तुलना में 15 गुना अधिक है.
दलितों के खिलाफ हो रहे अत्याचार के मामलों का तेजी से निपटारा करने के लिए हर राज्य सरकार के लिए ज़रूरी किया गया है कि वो पर्याप्त संख्या में विशेष अदालतों की स्थापना करे. ऐसे मामलों में चार्जशीट दाखिल होने के दो महीने के भीतर केस का निपटारा हो जाना चाहिए. .
सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण विभाग द्वारा जारी 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक, 36 ज़िलों वाले महाराष्ट्र में 3 विशेष अदालतें हैं. दूसरी तरफ 75 ज़िलों वाले उत्तर प्रदेश में 40 विशिष्ट अदालतें हैं. जिन 8 बलात्कार पीड़ितों से रिपोर्टर ने मुलाकात की उन सभी ने एक ही बात कही. इस तरह की और भी तमाम औरतें हैं जिनका बलात्कार हुआ लेकिन उन्होंने कुछ भी बताने से मना कर दिया.
एक गैर सरकारी संगठन 'दलित स्त्री शक्ति' के लिए सोशल वर्कर के रूप में काम करने वाली सुषमा देवी ने कहा कि अधिकतर औरतें इसलिए बलात्कार की घटनाओं के बारे में किसी से ज़िक्र नहीं करती क्योंकि उन्हे सामाजिक शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी.
यहां तक कि अगर ये महिलाएं हिम्मत भी जुटाती हैं तो पुलिस इनका एफआईआर नहीं दर्ज करती और न ही नेशनल मीडिया इन्हें कवर करती है. फिर इस तरह के घटना के दुबारा होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है.
(साभार- न्यूज़18)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
swatantantrabharatnews.com