VIDEO: कानपुर लोको अस्पताल भ्रष्टाचार कांड: छोटे को सजा डॉक्टर को मजा - रिश्वतखोरी का नंगा नाच.
VIDEO: कानपुर लोको अस्पताल भ्रष्टाचार कांड: छोटे को सजा डॉक्टर को मजा - बड़ों पर कार्रवाई करना किसी के वश में नहीं- जारी है रिश्वतखोरी का नंगा नाच.
जिस कानपुर के लोको अस्पताल में भ्रष्टाचार का नंगा नाच पिछले दिनों सभी ने देखा उसी अस्पताल के सीएमएस का स्थानांतरण हो चुका है लेकिन उसे रिलीव करने की हिम्मत किसी की नहीं है।
आखिर कब तक जिम्मेदार अधिकारी इस तरह चूड़ी पहनकर अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे ?
आखिर इस खेल पर कब रोक लगेगी?
कब तक इनके आगे जिम्मेदार अधिकारी नतमस्तक होते रहेंगे। नए रेलमंत्री और नए रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से एक उम्मीद जगी थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अब सभी पर कार्रवाई होगी लेकिन जिस तरह से हालत पहले जैसे हैं उससे अब उम्मीदें टूटने लगीं हैं।
(Video साभार: रेल वार्ता और You Tube)
नईदिल्ली: भ्रष्टाचार के खिलाफ रेलवे की लड़ाई आखिर डॉक्टरों के ऊपर आकर क्यों रुक जाती है। वर्षो तक एक ही स्थान पर जमे इनको हटाने में आखिर रेलवे बोर्ड के अधिकारी पंगु क्यों बन जाते हैं। हाल ही में कानपुर के लोको अस्पताल में हुए लेनदेन में एक बार फिर रेलवार्ता की भविष्यवाणी सही साबित हुई। इस खुले खेल में छोटे से कर्मचारी को निलंबित कर डॉक्टर को एक तरह से क्लीनचिट दे दी गई। यह कोई पहला मामला नहीं है जिसमें ऐसी कार्रवाई की गई। लगभग सभी मामलों में ऐसा ही किया गया है। यह कटु सत्य है कि डॉक्टरों के आगे सभी बिके पड़े हुए हैं। ऐसा नहीं है कि सभी डॉक्टर रिश्वतखोरी कर रहे हैं कई ऐसे भी हैं जिनकी वजह से आज भी रेलवे अस्पतालों का वजूद बचा हुआ है लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है।
कानपुर के लोको अस्पताल में हुई विजिलेंस की छापेमारी का क्या नतीजा निकला। आप भी जान लीजिए….। डॉक्टर आराम से ड्यूटी कर रहा है और सहायक को विजिलेंस की अनुशंसा पर निलम्बित कर दिया गया है। यह है विजिलेंस की कार्यवाही। रेलवार्ता ने पहले ही बता दिया था कि छोटी मछली को फ़ांस कर बड़ों को बचा दिया जायेगा। हुआ भी वही। विजिलेंस सिर्फ छोटे कर्मचारियों को ही निशाना बना सकती है यह एक बार फिर साफ हो गया।
दरअसल डॉक्टरों का काकस इतना बड़ा है कि इस पर कोई हाथ नहीं डाल सकता। चाहे रेलवे बोर्ड की विजिलेंस हो या जोन की या फिर देश की कोई भी जांच एजेंसी। बड़े स्तर पर इस भ्रष्टाचार को संरक्षण दिया जाता है।ऐसे में विजिलेंस के भी हाथ बंधे हुए होते हैं।आखिर विजिलेंस निरीक्षक किसी अस्पताल का कर्मचारी ही होता है ऐसे में चार साल काटने के बाद उसे फिर इन डॉक्टरों के अधीन ही नोकरी करनी होती है। ऐसे में इनके बस की बात नही होती है कि यह किसी डॉक्टर को पकड़ सकें। छोटे कर्मचारियों पर ही केस बनाकर यह लोग भी खानापूर्ति करने के लिए बाध्य होते हैं। ऐसे में इनका भृस्टाचार रुकने की कोई गुंजाइश नहीं होती है।
देश के लगभग सभी रेलवे अस्पताल के अधिकांश डॉक्टर जमकर भ्रष्टाचार कर रहे हैं लेकिन शायद ही कभी आपने इनको पकड़ते हुए सुना होगा।एक दो केस जरूर हुए होंगे लेकिन वह भी तभी हुए जब एक डॉक्टर ने दूसरे को निपटवाया होगा। वरना खुला खेल फरुख़बादी सभी जगह जारी है।
आखिर अधिकांश डॉक्टर इतने बेलगाम क्यों हैं…। इसके पीछे जो तथ्य सामने आता है वह रेलवे में डॉक्टरों की कमी की ओर इशारा करता है। पहले से रेलवे में जरूरत के सापेक्ष आधे डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं है। नए और विशेषज्ञ डॉक्टर रेलवे में आना नहीं चाहते हैं। ऐसे में किसी तरह से अस्पतालों को मैनेज किया जा रहा है। इस मजबूरी का फायदा कुछ भृस्टाचारी डॉक्टर जमकर उठा रहे हैं। उन्हें मालूम है कि उनपर कार्रवाई करने की हिम्मत किसी मे नहीं है। कई रेलवे अस्पतालों में तो 20 से 25 वर्ष से डॉक्टर जमे हुए हैं। इनकी चाहे जितनी शिकायतों का पुलिंदा बड़े अधिकारियों के पास हो लेकिन इनको ट्रांसफर नहीं किया जाता है। यदि ट्रांसफर हो भी जाये तो यह लोग अपनी जगह से हिलते भी नहीं हैं या फिर यदि गए भी तो 6 माह बाद पुनः म्यूचल मिलाकर यह लोग वापस उसी जगह आ जाते हैं। ऐसे ही एक पश्चिम रेलवे के दाहोद अस्पताल में तैनात डॉक्टर अनिल कुमार का ट्रांसफर रतलाम हुए लगभग एक साल से ज्यादा हो गया लेकिन उनको कोई हिला नहीं पाया। जबकि उक्त डॉक्टर के भृस्टाचार के किस्से बच्चे बच्चे तक को पता चल गए। ऐसा ही हाल एनसीआर का भी हैं। यहां पर तो पहले डॉक्टर का ट्रांसफर होता नहीं है लेकिन यदि बहुत दवाब में हो भी जाये तो 6 माह बाद पुनः डॉक्टर को उसी अस्पताल में भेज दिया जाता है जहां से उसे ढेरों शिकायतों के बाद हटाया गया था। जिस कानपुर के लोको अस्पताल में भृस्टाचार का नंगा नाच पिछले दिनों सभी ने देखा उसी अस्पताल के सीएमएस का स्थानांतरण हो चुका है लेकिन उसे रिलीव करने की हिम्मत किसी की नहीं है। आखिर कब तक जिम्मेदार अधिकारी इस तरह चूड़ी पहनकर अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे ? आखिर इस खेल पर कब रोक लगेगी? कब तक इनके आगे जिम्मेदार अधिकारी नतमस्तक होते रहेंगे। नए रेलमंत्री और नए रेलवे बोर्ड के अध्यक्ष से एक उम्मीद जगी थी कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अब सभी पर कार्रवाई होगी लेकिन जिस तरह से हालत पहले जैसे हैं उससे अब उम्मीदें टूटने लगीं हैं।
(साभार: रेलवार्ता & You Tube)
सम्पादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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