लखनऊ: न होली रंगीन, न संगीन और न ही बौराई...!
लखनऊ: होली का रंग बाजार पर चढ़ता नहीं दिख रहा , महज पांच दिन बाद होली का रंग-बिरंगा पर्व है लेकिन बाजारों में रौनक नहीं दिखती | मोहल्लों के हलवाइयों की दुकानों से लेकर नामचीन मिठाई महलों तक में गुझिया के झाबे नदारद हैं | वहीं पिचकारियों और कपड़े की दुकाने भी अपने ग्राहकों के इंतजार में हैं | हुरियारों का तो पता नहीं लेकिन कारोबारियों का कहना है कि जीएसटी का रंग इतना गाढ़ा है कि बाजार में उत्साह का रंग चढ़ता नहीं दिख रहा है | जीएसटी की वजह से बगैर बिल वाले कारोबार पूरी तरह से चौपट हैं | ट्रांसपोर्टर बगैर बिल के माल की धुलाई नहीं कर रहे जिस कारण बाहर का कारोबारी बहुत कम माल उठा रहा है | पहले रंग-पिचकारी जैसे सामानों पर 5 फीसदी वैट लगता था अब 18 फीसदी जीएसटी लग रहा है | खबरों के मुताबिक़ रंग-गुलाल की बिक्री इस होली 40-50 फीसदी कम रहने का अनुमान है | दिल्ली के सदर बाजार में रंगों के थोक व्यापारियों की माने तो पिचकारी 8 रु. से 500 रु. तक , गुब्बारे का एक पैकेट 10 रु. से 50 रु. तक,मुखौटों का पैकेट 150-200 रुपयों तक और हर्बल रंग सामान्य रंग से छह गुनी कीमत पर बिक रहा है | यही वजह है कि रंग-गुलाल व पिचकारी के फुटकर कारोबारी बमुश्किल दिन भर में 5-6 हजार का माल बेच पा रहे हैं | पूरे उत्तर भारत में दिल्ली के सदर बाजार से ही रंग-पिचकारी का कारोबार होता है | गुलाल का सबसे बड़ा केंद्र हाथरस भी मंदी की मार सह रहा है |चीन से आने वाली पिचकारियों का कारोबार चीनी सामानों के बहिष्कार के चलते पहले से ही ठंढा है |
लखनऊ में चौक से निकलने वाली बारात पर भी महंगाई की मार पड़ गई है , इस बार बारात में हाथियों के शामिल होने के लिए महंगी कीमत अदा करने के चलते उन्हें दरकिनार कर दिया गया है | शहर के तमाम चौराहों पर अभी तक सरकंडे का पेड़ भी नहीं लगा है | वहीं बाजार में रेडीमेड पापड़,चिप्स जैसे सामानों की बिक्री भी न के बराबर है | रेडीमेड कपड़े हों या सिलवाये जाने वाले कहीं भी होली का असर नहीं दिख रहा | इसके पीछे एक वजह सरकारी महकमों में तनख्वाह न बंटना भी माना जा रहा है और एडवांस के भी अभी तक आदेश नहीं हुए हैं | ऐसे में खली जेब बाजार कौन आना चाहेगा ? हां ..मुख्यमंत्री जरूर मथुरा में होली खेल रहे हैं ? प्रदेशवासी उन्हें ही होली खेलते देख कर खुश हो लेंगे या अखबारों,टीवी के पर्दे देख खुश हो लेंगे ! गो कि यह कहने में कतई गुरेज नहीं कि ,’होली में बुढवे तो दूर बच्चे भी नहीं बौरा रहे |’
(राम प्रकाश वरमा)
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