जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - नवाब खान बहादुर खान ...
"लहू बोलता भी है'
ज़रा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये....
आईये, जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार को जानते हैं...
नवाब खान बहादुर खान:-
नवाब खान बहादुर खान नवाब जुलफ़िक़ार ख़ान के बेटे और हाफ़िज़ रहमत खान के पोते थे। सन् 1857 की जंगे-आज़ादी में आपने रुहेलखण्ड में आन्दोलनकारियों की क़यादत की और अपनी बहादुरी का लोहा मनवाते हुए अंग्रेज़ों की नींद हराम कर दी थी। आपकी क़यादत में इस महाज़ पर सबसे ज़्यादा वक़्त तक आज़ादी का झण्डा ऊंचा रहा। देहली के बादशाह ने खान बहादुर खान को अपना नायब फ़ायज़ किया था।
आपको हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों की बराबर मदद मिल रही थी, जो अंग्रेज़ों को नगवार गुज़र रहा था। अंग्रेज़ों ने इस हिन्दू-मुस्लिम सोच को तोड़ने की हर मुमकिन कोशिश की। गवर्नर-जनरल ने कैप्टन गौवन को क़ौमी-फ़सादाद भड़काने के लिए पचास हज़ार (50,000) रुपये खर्च करने का भी अख़्तयार दिया, लेकिन कैप्टन गौवान ने ख़ुद माना था कि वह अपनी हर कोशिश में नाक़ामयाब हुआ। जब तहरीके-आज़ादी के बड़े महाज़ दिल्ली, लखनऊ और कानपुर मुजाहिदे-आज़ादी के कब्जे़ से निकल गये तो बड़े इन्क़लाबी नेता (जैसे नाना साहब, शहज़ादा फ़िरोज़शाह, नवाब फ़र्रूख़ाबाद, वलीदाद खान, हैदर अली खान और नवाब झज्जर) अंग्रेज़ों से मोर्चा लेने की सोच से बरेली में इकट्ठा हुए थे और खान बहादुर खान की क़यादत में बरेली के मुजाहेदीने-आज़ादी अंग्रेज़ों से बड़ी बहादुरी से लड़े, लेकिन 7 मई सन् 1858 को आपकी हार हो गयी।
बरेली पर अंग्रेज़ों की हुकूमत क़ायम हो गयी। वक़्त की नज़ाकत को देखते हुए खान बहादुर खान बरेली से निकल गये। दिसम्बर सन् 1859 में आपको नेपाल के राजा जंग बहादुर ने बुटवल के पास गिरफ्तार कर लिया। वहां से आप पहले लखनऊ, फिर बरेली लाये गये। बरेली में खुसूसी तौर पर अदालत में मुक़दमा चलाकर आपको सज़ा-ए-मौत सुनायी गयी। 24 मार्च 1860 को हिन्दुस्तान के इस वतन-परस्त और क़ौम-परस्त मुजाहिद ने फांसी के फंदे को गले लगाकर मुल्क की मोहब्बत में शहादत हासिल की।
(साभार: शाहनवाज़ अहमद क़ादरी)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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