लहू बोलता भी है - जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- शेख भिखारी साहब...
ज़रा याद उन्हें भी कर लो, जो लौट के घर न आये....
आईये, जंग- ए- आज़ादी- ए- हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार से आपको रूबरू कराते हैं____
- शेख भिखारी साहब
शेख भिखारी की पैदाइश सन् 1819 मंे हुपटे गांव (थाना बुदमू) ज़िला रांचीद्ध में हुई थी। आपके वालिद का नाम शेख बुलन्द था। आपने मुक़ामी स्कूल से मीडिल तक की पढ़ाई की; उसके बाद फ़ौज में भर्ती हो गये। तीन साल मुक़ामी स्टेट की फ़ौज में नौकरी करने के बाद आप को औदागढ़ स्टेट में दीवान का ओहदा मिला; जहां राजा विस्वांधा शाहदेव के दीवान का काम करते हुए पूरे स्टेट की हिफ़ाज़त का ऐसा माकूल बन्दोबस्त किया कि राजा बहुत खुश हुए। आपने राजा को सरहद पर अंग्रेज़ी हुकूमत से आने वाले ख़तरे के बारे में (जो डाक्ट्रीन आॅफ लैप्स के ज़रिये दिख रहा था और जिसे नज़रअंदाज़ करना स्टेट के हक़ मंे नुकसानदेह साबित होता) बताया तो राजा आपकी दूरंदेशी से प्रभावित हुआ। शेख भिखारी ने अपने दो ख़ास लोगों को अंग्रेज़ी फौज के हेडक्वाटर (जो रामगढ़ ज़िला हज़ारीबाग़ में था) भेजकर फौज की पूरी जानकारी हासिल करायी और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के दो मुलाज़िमों; नादिर अली खान और विजय सिंह; को अपनी तरफ मिलाने में कामयाबी पायी। उसके बाद अपने तीन दूतों; अमानत अली अंसारी, करामत अली व शेख होरे; को आस-पास के स्टेट में भेजकर अंग्रेज़ हुकूमत के सरहद बढ़ाने के इरादे से ख़बरदार कराया और साथ ही मदद की बात भी करायी। तैयारी पूरी हो जाने के बाद आपने 9 जून सन् 1857 को से रामगढ़ अंग्रेज़ छावनी पर हमला करके जीत हासिल की। छावनी पर क़ब्ज़ा हो जाने के बाद अपने लाव लश्कर के साथ आपने शाम में जश्न मनाया और उसके बाद आधी रात में संथाल परगना के भानुका अंग्रेज़ी छावनी पर धावा बोलकर उस पर भी क़ब्ज़ा कर लिया। कुछ अंग्रेज़ फ़ौजी अफ़सर जान बचाकर जंगल में भाग गये। उन्हें भी खदेड़कर मार गिराया गया।
दोनों छावनियों पर क़ब्ज़े की ख़बर जब दानापुर अंग्रेज़ी फ़ौज के हेडक्वार्टर में कमाण्डर मेकडोनाल्ड को मिली तो उसने भारी असलहे व फ़ौज की तैयारी के साथ अंग्रेज़ी सेना को रामगढ़ के लिए रवाना कराया। इधर शेख भिखारी ने भी खतरे को भांपकर संथाल के जगलों में छिपे हुए जंगे-आज़ादी के सिपाहियों व क्रान्तिकारियों से मुलाक़ात की और उन्हें अपने साथ मुल्क की आज़ादी की लड़ाई मिलकर लड़ने पर रज़ामंद किया। उन लोगों को लेकर जब शेख साहब जंगल से निकल रहे थे, तभी सामने से अंग्रेज़ी फौज बड़ी तादात मंे आती हुई दिखी। शेख भिखारी ने अपने हमराह उमराव सिंह को एक मोर्चे पर लगाया, जबकि दूसरे मोर्चे पर खुद मुक़ाबले के लिए आप तैयार हो गए। दोनों तरफ़ से जंग हुई, लेकिन अंग्रेज़ो के मुक़ाबले असलहों की कमी पड़ गयी। फिर भी आपकी सेना ने हार नहीं मानी और तीर-कमान व पत्थरों से कुछ देर तक अंग्रेज़ी सेना का मुक़ाबला किया, लेकिन बाद मंे शिकस्त खानी पड़ी। अंग्रेज़ अफ़सर ने शेख भिखारी साहब और उमराव सिंह को गिरफ्तार कर लिया जिन्हें 6 जनवरी सन् 1858 को बिना ट्रायल किये ही पेड़ से लटकाकर शहीद कर दिया गया। शेख साहब की मौत की ख़बर कमाण्डर मेकडोनाल्ड ने अपने आला अफ़सरों को इस तरह दी कि क्रान्तिकारियों के सबसे ख़तरनाक कमाण्डर दीवान शेख भिखारी को फांसी देने में हम कामयाब हो गये हैं। अब संथाल के इलाके मंे हमारी फौज को डरने की ज़रूरत नहीं है। इससे पता चलता है कि अंग्रेज़ शेख भिखारी से किस क़दर डरे हुए थे।
(साभार: शाहनवाज़ अहमद क़ादरी)
संपादक: स्वतंत्र भारत न्यूज़
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