70 साल से अभिशप्त है गांधी की हत्या में इस्तेमाल 'KILLER' कार
गांधी ने जैसी मौत चाही थी उन्होंने ठीक वैसे ही दुनिया को अलविदा कहा
'मुझे डर है मेरी मृत्यु किसी बीमारी से न हो. ऐसी मौत पर लोग मुझे झूठा महात्मा कहेंगे. मेरे सीने में गोली लगने से मेरी मौत होगी... और मुंह से ‘राम’ निकलेगा तो मैं असली महात्मा समझा जाऊंगा'. इसके अगले दिन ही यानी 30 जनवरी, 1948 को उनके सीने में 3 गोलियां उतार दी गईं. वो खुद को ‘असली-महात्मा’ साबित कर गये. मनचाहे तरीके से दुनिया छोड़ कर.
क्या महात्मा गांधी को खुद की हत्या किए जाने का पूर्वानुमान हो चुका था? दुनिया में ऐसे लोग बिरले ही मिलते हैं जो अपनी मौत जिस तरीके से चाहते हों उन्हें हू-ब-हू वैसी ही मौत नसीब हो जाए. वह भी अपनी मृत्यु के बारे में उनके सोचने के या मौत का अंदेशा (पूर्वानुमान) होने के महज 24 घंटे के भीतर. मोहनदास करमचंद गांधी यानि 'बापू' ऐसी ही शख्सित साबित हुए.
अपनी मौत की कल्पना से किसी भी इंसान की नींद उड़ जाती है. गांधी जी लेकिन कभी भी खुद की मृत्यु से नहीं डरे. उन्हें अगर डर था तो, बस इस बात का कि, कहीं उनकी मृत्यु किसी बीमारी से न हो जाए. अगर ऐसा हुआ तो, उन्हें अंदेशा था कि, दुनिया उनको ‘महात्मा’ के रुप में स्वीकार नहीं कर सकेगी. गांधी जी एक इंसान के शरीर में 'महात्मा' साबित हुए.
3 गोलियां खाकर बन गये ‘महात्मा’
29 जनवरी, 1948 को सभा में बापू ने अपने मन की एक बात बयान कर दी. वह बात थी कि, अगर मुझे (गांधी जी को) कोई सीने पर गोली मारे. सीने पर गोली खाने के बाद भी मेरे मुंह से चीख या आह न निकल कर 'राम-नाम' निकले. तो समझ लेना मैं ‘सच्चा-महात्मा’ था. यह इत्तिफाक था या फिर ईश्वर द्वारा पूर्व में निर्धारित सत्य कि इसके अगले ही दिन यानि 30 जनवरी, 1948 को बिड़ला हाउस (अब 30 जनवरी मार्ग) की जनसभा में जाते वक्त गांधी जी को शाम करीब सवा पांच बजे तीन गोलियां मार दी गईं. दो गोलियां शरीर को चीरकर बाहर निकल गईं. एक गोली शरीर में फंसी रह गई. मौके पर ही महात्मा गांधी की मौत हो गई. प्रत्यक्षदर्शियों और इतिहास में दर्ज दस्तावेजों के मुताबिक महात्मा गांधी के मुख से गोली लगते ही 'हे-राम' या 'राम-राम' ही निकल सका था.
'राम-राम' या 'हे-राम'!
गोली लगते ही महात्मा गांधी के मुख से ‘राम-राम’ निकला था या फिर ‘हे-राम’! इसकी पुष्टि को लेकर आज भी कोई ठोस पन्ना इतिहास में मौजूद नहीं है. जितने मुंह उतनी ही बातें. यूं तो अगर देखा जाए, तो देश दुनिया में बिड़ला हाउस (जहां गांधी जी को गोली मारी गई) से लेकर राजघाट तक यही दर्ज है कि, गांधी जी के गोली लगने के बाद उनके मुंह से 'हे-राम' निकला था. नई दिल्ली जिले के तुगलक रोड थाने में उर्दू में सुरमे वाली पेंसिल से हत्या वाली रात लिखी गई महात्मा गांधी हत्याकांड की प्राथमिक सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) मगर कुछ और ही बयां करती है.
एफआईआर में दर्ज चश्मदीद नंदलाल मेहता के बयान के मुताबिक ‘नाथू राम गोडसे ने गांधी जी के सीने में करीब से तीन गोलियां मारीं थीं. गोली लगते ही गांधी जी के मुंह से 'राम-राम' निकला और खून से लथपथ गांधी जी जमीन पर गिर पड़े. उन्हें तत्काल राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया. जहां डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया.’ हमारे देश की कानूनी किताबों में गवाह/ गवाही को कानून की रीढ़ माना जाता है. ऐसे में तुगलक रोड थाने में दर्ज महात्मा गांधी हत्याकांड की एफआईआर नंबर-68 में दर्ज चश्मदीद नंदलाल मेहता के दर्ज बयान को पढ़ा जाए, तो महात्मा के मुंह से गोली लगने के बाद जमीन पर गिरते वक्त के शब्द ‘राम-राम’ थे. ऐसे में सवाल यह पैदा होता है कि, फिर आखिर ‘हे राम’ इतिहास में कैसे और कहां से आ गया या फिर लाया गया?
हत्या में इस्तेमाल हुई कार
इतिहास खुद को दोहराता है. इस बात को USF-73 नंबर की एक लीटर में मात्र 4 किलोमीटर का सफर तय करने वाली कार साबित कर रही है. यह कार है 1930 में अमेरिका में बनी ‘स्टडबेकर’. महात्मा गांधी हत्याकांड से जुड़े दस्तावेजों के मुताबिक बापू की हत्या करने के लिए नाथू राम गोडसे इसी कार से बिड़ला हाउस पहुंचा. गांधी जी की हत्या के बाद कार को दिल्ली के तुगलक रोड थाने की पुलिस ने जब्त कर लिया था.
कार के माथे पर लिखा है ‘किलर’
सन् 1978 में इस कार को एक शख्स ने नीलामी में खरीद लिया. उसके बाद हरे-काले दो रंगों वाली स्टडबेकर कार अपने माथे यानि नंबर प्लेट के ऊपर सफेद रंग से ‘KILLER’ लिखवा कर एक मालिक से दूसरे मालिक के दरवाजे पर कई दशक तक (दिल्ली से दूर) इधर-उधर भटकती रही. सन् 1930 में यह कार जौनपुर के राजा के लिए अमेरिका में विशेष आग्रह पर बनवायी गई थी. गांधी की हत्या के आरोप में फांसी पर लटकाया गया नाथू राम विनायक गोडसे जौनपुर के इन्हीं महाराजा का करीबी माना जाता रहा था. तमाम विंटेज कार रैलियों में भारी-भरकम इनाम-इकराम हासिल करने वाली ‘किलर’ कार ने कई जगह पत्थर भी खाये. जिस विंटेज कार रैली में किलर की हकीकत लोगों को पता चलती, वहीं उस पर पथराव हो जाता.
राजघरानों की शान रही ‘किलर’ अब मालिक को मोहताज!
35 बीएचपी, 6 सिलेंडर और 3500 सीसी वाली पॉवरफुल ‘किलर’ कार अमेरिका से जौनपुर, दिल्ली से कोलकता, वाराणसी, लखनऊ, बरेली होती हुई सन् 2000 के दशक में फिर दिल्ली की सड़कों पर लौट आई. दिल्ली में किलर-कार का नया बसेरा बनी लक्ष्मी नगर (ललिता पार्क) में एक मुस्लिम परिवार की गैराज. इस परिवार के एक होनहार युवक की नजर सन् 2000 में जब पहली बार ‘किलर’ पर पड़ी, तो वो खुद को रोक नहीं सका. परिणाम, बरेली के कमाल साहब से मुंह-मांगी रकम देकर उसने किलर खरीद ली. पुरानी कार और वो भी ‘किलर’ जैसी मशहूर (दुनिया भर में गांधी की हत्या में इस्तेमाल के लिए बदनाम) कार.
जब मौका मिला उस नौजवान मालिक ने दिल्ली की सड़कों पर जी-भर के किलर पर सवारी की. कुछ साल पहले एक दिन हिमाचल में छोटी उम्र में ही दिल का दौरा पड़ने से किलर के इस युवा मालिक की असमय मौत हो गई. और फिर ब-रास्ते अमेरिका से भारत पहुंचकर यहां के तमाम राजा-महाराजाओं के घराने की कभी ‘शान’ रही ‘किलर’ आज फिर कई साल से सुनसान ‘गैराज’ में तन्हा खड़ी है. एक अदद उस मालिक के इंतजार में, जो उस पर सवारी करने से पहले उसके ऊपर जमी वर्षों पुरानी धूल-मिट्टी को हटाएगा.
उसी दिल्ली शहर (लक्ष्मी नगर ललिता पार्क इलाके में) की आज भीड़ भरी गलियों में, जिस दिल्ली शहर की वीरान (सन् 1930 और उसके बाद के कुछ साल) सड़कों पर उसने 70 साल पहले सफर तय करके उन्हें रौनक बख्श कर उन पर पसरा रहने वाला मातमी सन्नाटा दूर किया था.
(साभार:-फर्स्ट पोस्ट )
संपादक - स्वतंत्र भारत न्यूज़
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