बवाना कांड: कहां गई केजरीवाल की साफ-सुथरी राजनीति?
अरविंद केजरीवाल को मरने वालों की लिस्ट देखनी चाहिए. 17 लाशों में 10 औरतों की हैं. एक महिला के पेट में पांच महीने का गर्भ था. कितने बच्चे अनाथ हो गए जिनके मां या बाप की छाया बचाई जा सकती थी
20 जनवरी की शाम बवाना के एक अवैध कारखाने में 17 मजदूर जलकर खाक हो गए. किसी हादसे के बाद सियासी दलों का झुंड जिस तरह मौके पर पहुंचता है, वैसा ही नजारा बवाना में भी दिखा. हादसे के कुछ ही घंटे बाद दिल्ली के एलजी अनिल बैजल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और नॉर्थ दिल्ली की मेयर प्रीति अग्रवाल अवैध कारखाने के बाहर खड़े पाए गए.
यहां पहुंचने पर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि वैसे तो इस नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती लेकिन फिर भी दिल्ली सरकार मरने वालों के परिजनों को 5 लाख और घायलों को 1 लाख रुपए देगी. अरविंद केजरीवाल का यह बयान गुस्से से भर देने वाला है. जब उन्हें पता है कि किसी जान की कीमत मुआवजे से अदा नहीं हो सकती तो फिर ऐसी नौबत उन्होंने क्यों आने दी?
क्या दिल्ली में अवैध कारखाने सरकारी अफसरों की मिलीभगत और रिश्वत के बिना चल सकते हैं? मान लिया जाए कि पटाखों का अवैध कारखाना उत्तरी दिल्ली नगर निगम की शह पर चल रहा था तो दिल्ली सरकार के जिम्मेदार विभाग कहां थे?
दिल्ली स्टेट इंडस्ट्रीयल एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन के चेयरमैन दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन हैं. दिल्ली सरकार का श्रम विभाग क्या कर रहा था? अवैध कारखाने में बिजली की सप्लाई कैसे हो रही थी?
अगर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मंत्री गोपाल राय, सत्येंद्र जैन और विधायक सौरभ भारद्वाज इन सवालों का जवाब देने की बजाय दोष सिविक बॉडी पर मढ़ना चाहते हैं तो यह दुखद है. यही उसी सड़ी-गली राजनीति को दुहराने जैसा है जिसे भला-बुरा कहकर केजरीवाल ने दिल्लीवालों और देशवासियों को बड़े-बड़े सपनों में बांध दिया था. केजरीवाल से ये सवाल इसलिए करने पड़ रहे हैं क्योंकि उन्होंने अन्य दलों और उनके मातहत काम करने वाली एजेंसियों को भ्रष्ट करार देते हुए खुद को पाक-साफ बताया था. लिहाजा, सवाल तो उनसे ही बनता है.
(साभार:- फर्स्ट पोस्ट)
संपादक- स्वतंत्र भारत न्यूज़
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