
Climate कहानी: बस घर नहीं , गर्भ तक पहुंच रही हैं हीट वेव्स
लखनऊ: आज विशेष में प्रस्तुत है, Climate कहानी जिसका शीर्षक है - "गर्भ तक पहुंच रही हैं हीट वेव्स"।
जलवायु परिवर्तन अब माँ की कोख तक आ गया है—जहाँ जीवन की शुरुआत होती है , वहीं अब संकट भी जन्म ले रहा है।
कोख में पल रही जिंदगी पर भी वार कर रही हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण मोटी गर्मी अब गर्भवती महिलाओं के लिए अभिशाप साबित हो रही है। पिछले पांच वर्षों में , दुनिया के 90% देशों में गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्म दिनों की संख्या होती है। और ये बदलाव सिर्फ सीज़न की बात नहीं है—ये हमारी कंपनी , हमारे ऊर्जा संसाधन और हमारी कंपनियों का नतीजा है।
ज़रा सोचिये—जहाँ माँ की कोख को सबसे सुरक्षित माना जाता है , वहाँ अब सूरज की तपिश और हमारे दोस्तों की आँचल लगी है। एक ऐसा आँचल , जो न समय से पहले जन्म ले रहे बच्चों को बचा पा रही है , न भूख को।
क्लाइमेट सेंट्रल की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के 90% से ज्यादा देशों में जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्भवती महिलाएं अब हर साल दोगुने से ज्यादा दिनों तक खतरनाक गर्मी झेलनी पड़ रही हैं।
इस पांच साल की स्टडी ( 2020 से 2024) ने साफ किया कि इंसानों ने पैदा किया जलवायु व जलवायु ने वो गर्मी पैदा की है जो पहले कभी इस हद तक नहीं थी। रिपोर्ट के मुताबिक , 247 देशों और 940 शहरों के तापमान का विश्लेषण किया गया, और पाया गया कि अब हर साल कई दिनों में औसत तापमान होता है, जब तापमान किसी भी क्षेत्र में अपने इतिहास के 95% से अधिक होता है - और इसी दिन गर्भवती महिलाएं सबसे खतरनाक मानी जाती हैं।
डरने वाली ये बात क्यों है ?
ऐसे "हिट-रिस्क डे" अर्थात गर्भावस्था के लिए खतरनाक गर्मी वाले दिन समय से पहले बच्चे के जन्म ( समय से पहले जन्म) के खतरे को बढ़ाया जाता है। और एक बार समय से पहले जन्म हुआ, तो ना सिर्फ बच्चे की सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि मां को भी बाद में कई तरह की जटिल स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
कुछ अहम खुलासे:
- हर देश में ऐसे गर्म दिनों का जलना है - और इसका सबसे बड़ा कारण कोयला, तेल और गैस है।
- 247 में से 222 देशों और पूर्वी एशिया में, पिछले पांच दशकों में इतनी खतरनाक गर्मी वाले दिन दोगुने से ज्यादा हो गए हैं।
- 78 देशों में , जलवायु परिवर्तन ने हर साल एक अतिरिक्त महीने में 30 और दिन जो गंभीर महिलाओं के लिए खतरनाक माने जाते हैं।
- कई देशों और शहरों में, सारे के सारे गर्मी-जोखिम वाले जलवायु परिवर्तन के कारण ही हुए। अगर ये बदलाव नहीं हुआ , तो ऐसी गर्मी शायद ही होगी।
सबसे ज़्यादा असरदार कहाँ ?
जो देश पहले से ही स्वास्थ्य सेवाओं के दावे से पीछे हैं—जैसे कैरीबियाई देश , दक्षिण अमेरिका , पैसिफिक द्वीप , दक्षिण-पूर्व एशिया और सब-सहारा अफ्रीका—वहीं सबसे ज्यादा पैसे रह रहे हैं। उदाहरण के लिए, जलवायु संकट में सबसे कम योगदान दिया गया है , लेकिन पादीना क्वेश्चन ही पड़ रहा है।
माँ और बच्चे—बेटे की सेहत पर संकट
गर्भावस्था के दौरान बच्चे को अत्यधिक गर्मी से उच्च रक्त प्रवाह , जेस्टेशनल सर्जियाँ , अस्पताल में भर्ती होने की नौबत , गर्भ में ही की मृत्यु और समय से पहले प्रसव जैसी गंभीर स्थितियाँ पैदा हो सकती हैं। और इसका असर सिर्फ जन्म तक नहीं , पूरे जीवन भर रह सकता है।
बेटियाँ क्या कहती हैं ?
महिला स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. ब्रूस बेकर ने कहा-
" आज की तारीख में चरम गर्मी वाली गंभीर महिलाओं के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है। विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में जहां पहले से स्वास्थ्य खराब होना है। अगर हमें अपनी आने वाली नस्लों को सुरक्षित रखना है , तो फिर से ज़िलों का जलाना बंद करना होगा।"
वहीं , क्लाईमेट सेंट्रल साइंसेज वीपी डॉ. क्रिस्टीना डाल की खरीददारी हैं—
"गर्भावस्था के दौरान सिर्फ एक दिन की गंभीर गर्मी भी सबसे बड़ी समस्या हो सकती है। और अब जलवायु परिवर्तन में कई दिन जोड़ दिए जा रहे हैं-जिन्हें टाला जा सकता है। अगर हम अभी भी एक कदम भी नहीं बढ़ाते हैं , तो समस्याएं और समस्याएं होंगी।"
कहानी सिर्फ तापमान की नहीं , जिंदगी के ताप की है।
हर अतिरिक्त गर्म दिन से एक माँ का सपना ख़राब हो सकता है , और एक बच्चे की शुरुआत खराब हो सकती है। और ये सब इसलिए हो रहा है क्योंकि हमने पिक-अप निर्णय नहीं लिया है।
अब भी देर नहीं हुई.
निर्णय लेना होगा—धरती को बचाना है या उसे गर्भस्थ बच्चों की कब्रगाह बनाना है।
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