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Prevention Of Corruption Act लोक सेवक के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली (लाइव लॉ): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention Of Corruption Act) के तहत लोक सेवक के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले आरोपी को प्रारंभिक जांच का दावा करने का अधिकार नहीं है।
यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है। हालांकि PC Act के तहत आने वाले मामलों सहित कुछ श्रेणियों के मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय है, लेकिन यह न तो आरोपी का निहित अधिकार है और न ही आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए अनिवार्य शर्त है।
हालांकि जब सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं होती है, लेकिन कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर जांच एजेंसी के लिए यह पता लगाना वांछनीय हो सकता है कि किया गया अपराध संज्ञेय है या नहीं।
न्यायालय ने कहा,
"प्रारंभिक जांच का उद्देश्य प्राप्त सूचना की सत्यता की पुष्टि करना नहीं है, बल्कि केवल यह पता लगाना है कि क्या उक्त सूचना से संज्ञेय अपराध का पता चलता है। इस तरह की जांच का दायरा स्वाभाविक रूप से संकीर्ण और सीमित है, जिससे अनावश्यक उत्पीड़न को रोका जा सके। साथ ही यह सुनिश्चित किया जा सके कि संज्ञेय अपराध के वास्तविक आरोपों को मनमाने ढंग से दबाया न जाए। इस प्रकार, यह निर्धारित करना कि प्रारंभिक जांच आवश्यक है या नहीं, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग होगा।"
मामला
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ आय से अधिक संपत्ति के मामले में प्रतिवादी-लोक सेवक के खिलाफ FIR रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कर्नाटक राज्य की अपील पर सुनवाई कर रही थी।
कर्नाटक लोकायुक्त पुलिस ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (PC Act) के तहत विशेष रूप से धारा 13(1)(बी) और धारा 12 के साथ धारा 13(2) के तहत उनके खिलाफ FIR दर्ज की।
कर्नाटक हाईकोर्ट ने FIR खारिज की, जिसके कारण कर्नाटक राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मुद्दा
न्यायालय के समक्ष विवादास्पद प्रश्न यह था कि क्या PC Act के तहत एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य है, या क्या स्रोत सूचना रिपोर्ट प्रारंभिक जांच का विकल्प हो सकती है।
तर्क
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष राज्य ने तर्क दिया कि यदि स्रोत सूचना रिपोर्ट में संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। इसने आगे तर्क दिया कि पुलिस अधीक्षक ने अपने विवेक का प्रयोग किया और स्रोत सूचना रिपोर्ट के आधार पर प्रथम दृष्टया मामला पाया।
राज्य के तर्कों का विरोध करते हुए प्रतिवादी-लोक सेवक ने ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि भ्रष्टाचार के मामलों में तुच्छ शिकायतों से बचने के लिए प्रारंभिक जांच अनिवार्य है।
निर्णय
हाईकोर्ट के निर्णय को निरस्त करते हुए जस्टिस मेहता द्वारा लिखित निर्णय ने केन्द्रीय जांच ब्यूरो बनाम थोम्मांद्रू हन्ना विजयलक्ष्मी के निर्णय में निर्धारित कानून को दोहराया, जिसमें कहा गया कि जब FIR रजिस्ट्रेशन के लिए सूचना के स्रोत से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो आरोपी प्रारंभिक जांच को अधिकार के रूप में नहीं मान सकता।
न्यायालय ने प्रतिवादी द्वारा ललिता कुमारी के मामले पर भरोसा करना गलत पाया, क्योंकि ललिता कुमारी के मामले में भ्रष्टाचार से संबंधित मामलों में प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं थी, बल्कि मामले के तथ्यों या परिस्थितियों के आधार पर जांच एजेंसी के विवेक पर छोड़ दिया गया, जब सूचना के स्रोत से संज्ञेय मामले का खुलासा नहीं होता।
ललिता कुमारी के मामले पर भरोसा करते हुए अदालत ने टिप्पणी की,
“यह माना गया कि यदि पुलिस अधिकारी/जांच एजेंसी द्वारा प्राप्त सूचना से संज्ञेय अपराध का खुलासा होता है तो प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। हालांकि, अगर प्रारंभिक जांच की जाती है तो इसका दायरा यह निर्धारित करने तक सीमित होता है कि क्या सूचना प्रथम दृष्टया किसी संज्ञेय अपराध के होने का खुलासा करती है। इसकी सत्यता की पुष्टि तक विस्तारित नहीं होती है। प्रारंभिक जांच की आवश्यकता प्रत्येक मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, भ्रष्टाचार के मामले ऐसी श्रेणी में आते हैं, जहां प्रारंभिक जांच 'की जा सकती है'।”
इसके अलावा, इस बात की पुष्टि करते हुए कि स्रोत सूचना रिपोर्ट प्रारंभिक जांच का विकल्प हो सकती है, अदालत ने स्रोत सूचना रिपोर्ट का अध्ययन करने पर पाया कि यह प्रारंभिक जांच के रूप में काम करने के लिए पर्याप्त विस्तृत थी, क्योंकि इसमें प्रतिवादी की संपत्ति और आय विसंगतियों का व्यापक विवरण दिया गया।
उपर्युक्त के संदर्भ में, अदालत ने राज्य की अपील को स्वीकार कर लिया और प्रतिवादी के खिलाफ FIR बहाल की, जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
(केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम टी.एन. सुधाकर रेड्डी)
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(समाचार & फोटो साभार- लाइव लॉ)
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