स्वस्थ्यवेत्ता की आवश्यकता !
लखनऊ: आज 'विशेष' में प्रस्तुत है, उत्तराखंड के युवा साहित्यकार, कालमिस्ट व फ्रीलांस राइटर - सुनील कुमार महला द्वारा "स्वस्थ्यवेत्ता की आवश्यकता !" शीर्षक से प्रस्तुति।
"स्वस्थ्यवेत्ता की आवश्यकता !"
उत्तराखंड के युवा साहित्यकार, कालमिस्ट व फ्रीलांस राइटर - सुनील कुमार महला बताते हैं कि, आज के इस युग में दिन- प्रतिदिन नई-नई व्याधियाँ सामने आ रही हैं। हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे में गुलियान बैरे सिंड्रोम के 100 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। ख़बरें बताती हैं कि इस दुर्लभ और जानलेवा बीमारी से एक मरीज़ की मौत भी हो गई।
बताया जा रहा है कि गुलियन बैरे सिंड्रोम कोई संक्रामक बीमारी नहीं है, लेकिन फिर भी आश्चर्यजनक बात यह है कि इसके मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
यह भी बताया जा रहा है कि इस बीमारी का पानी से भी पता चलता है। त्रासदी को बताता चलूं कि महाराष्ट्र में पहले से ही बर्ड फ्लू से खतरा है और अब महाराष्ट्र के साथ एक नया संकट खड़ा हो गया है।
कुछ दिन पहले देश में "एचएमपीवी वायरस" के मामले बढ़ रहे थे। गुलियन-बैरे सिंड्रोम के बढ़ते मामलों पर नजर रखने के लिए पुणे के स्वास्थ्य विभाग, सरकार से भी संपर्क करें।
दरअसल यह एक ऑटो इम्यून डिजीज है, जिसमें लाखों में से एक मरीज को शामिल किया जाता है, लेकिन पुणे में लगातार बढ़ते मामलों को लेकर हर कोई हैरान है।
हालाँकि सरकार और प्रशासन अपना काम कर रहे हैं। लेकिन आम आदमी को इस पर ध्यान देना चाहिए कि ये समय डरने का नहीं है, बल्कि स्थिर रहने और जिम्मेदारी का है।
विशेषज्ञ का कहना है कि जीबीएस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, विदेशी शरीर की इम्युनिटी (रोग लेने की क्षमता) शरीर की कोशिकाओं पर ही हमला करती है और इससे मरीज को कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं होने लगती हैं।
दरअसल, गुलियन बैरे सिंड्रोम के होने का कारण इम्युनिटी सिस्टम के शरीर की नसों पर हमला करना माना जाता है।
दोस्ती को बताता चलूं कि, दोस्ती के आधार पर बनी लैब की जांच में कैंपिलोबैक्टर जेजुनी बैक्टीरिया का पता चला है। कैंपिलोबैक्टर जेजुनी बेकर पानी में भी पाया जाता है। अगर किसी व्यक्ति को इस सुपरमार्केट में पानी मिलता है तो यह उसके शरीर में प्रकट होता है। यह उल्टी दस्त जैसे लक्षण पैदा करता है और कुछ मामलों में यह डायरिया का भी कारण बनता है।
विशेषज्ञ ने बताया कि इस बीमारी की शुरुआत में ज्यादातर मामले दांतों के सुन्न होने से होते हैं। ऐसे बीमार मरीज को हाथ की तकलीफ में झुनझुनी भी होती है और कुछ मामलों में बुखार, दिल की धड़कन की अचानक स्थिति और सांस लेने में परेशानी भी हो सकती है।
गुलियन बेयर सिंड्रोम के कारण मरीज को पारा बस (लकवा) भी हो सकता है और अगर ऐसा है ऐसा होता है तो मरीज का जान बचना मुश्किल हो जाता है।
कुछ मामलों में मरीज को हाई बीपी या फिर हार्ट अटैक तक का खतरा बना रहता है। मरीज़ को भी ज़रूरत पड़ सकती है और ये जन्मतिथि हो सकती है।
विशेषज्ञ का कहना है कि कुछ मामलों में प्लाज्मा थेरेपी और इम्यूनोग्लोबिन थेरेपी की मदद से बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
चूँकि, यह संक्रामक बीमारी नहीं है तो इसके अलावा किसी अन्य बीमारी का खतरा नहीं है, लेकिन अगर इस बीमारी का कारण यह है हो रहा है तो आने वाले दिनों में केस बढ़ने का खतरा है।
यहां यह नियंत्रण और है कि 26 जून 2023 को, पेरू के राष्ट्रीय महामारी, रोकथाम रोग केंद्र (सीडीसी) ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में गुइलेन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के विज्ञान के मामलों में असामान्य वृद्धि का कारण एक महामारी विज्ञान चेतावनी जारी की था, जैसा कि मई 2019 में, पेरू में राष्ट्रीय पर्यवेक्षण ने 1.2 मामले/100,000 जनसंख्या की आय घटना से अधिक जीबीएस मामलों में वृद्धि का पता लगाया गया था।
पेरू में साल 2023 में ही इस बीमारी के कारण देश में 90 दिनों की हेल्थ मेडिसिन की घोषणा की गई थी। लिहाजा इसे जहर में तो बिल्कुल भी नहीं लिया जा सकता है।
इसका इलाज भी महंगा है, क्यों कि इसके इलाज के लिए इम्युनोग्लोबुलिन इंजेक्शन को जरूरी बताया जा रहा है, उसके निजी अस्पताल में कीमत करीब बीस हजार रुपये है और यहां तक कि कई बार इंजेक्शन को सबसे ज्यादा इंजेक्शन लगाए जाते हैं, लेकिन यहां एक अच्छी बात यह है कि राज्य को मरीजों को मुफ्त इलाज देने की घोषणा की गई है, जो कि बहुत ही आसान तरीका है।
इससे आम आदमी को कहीं न कहीं राहत की सांस मिलती है। पाठकों को पता होगा कि कुछ समय पहले ही महाराष्ट्र के लातूर जिले में स्थित एक कुक फार्म में करीब 4200 चूजे मृत पाए गए थे।
अभी कुछ दिन पहले ही बर्ड फ्लू की वजह से 60 लोगों की मौत हो गई थी। दोष यह नहीं होगा कि पहले से ही बर्ड फ्लू के संक्रमण से महाराष्ट्र में लोग डरे हुए हैं और अब इस जीबीएस बीमारी ने वहां के स्वास्थ्य तंत्र पर दबाव बढ़ा दिया है।
ये बहुत ही काबिले-तारीफ है केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने सोमवार (27 जनवरी, 2025) को महाराष्ट्र के पुणे में गिलियन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) के गंदे और बीमार मामलों में वृद्धि के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप और प्रबंधन की शुरुआत राज्य के स्वास्थ्य अधिकारियों की सहायता के लिए की।
एक उच्च वैज्ञानिक बहु-विषयक टीम का सदस्य है। प्रोडक्ट का ज़ानकारी ऐसे उपचारों से रहस्य में कमी ही रोगी को स्वस्थ किया जा सकता है।
हमारा देश COVID-19 जैसी खतरनाक महामारी का दंश पहले ही झेल चुका है। यह कहना गलत नहीं होगा कि जी.बी.एस. से संबंधित रोग कहीं भी नहीं हैं और न ही कहीं चिंताएं पैदा करते हैं। दरअसल, किसी को भी बीमारी से बचने के लिए स्वस्थ रसायन, अच्छा खान-पान, क्लिंज प्रिन्स, शरीर को सीरम रखना, व्यायाम और इम्यूनिटी बनाए रखना बहुत जरूरी है। साफ-सफाई, स्वच्छता के सुझाव पर ध्यान देने की आवश्यकता है। अधिक लोगों के संपर्क में आने से बचना भी बहुत महत्वपूर्ण व आवश्यक है। हाथ, खाद्य सुरक्षा, समय पर विभिन्न दुकानों से छूट के लिए टीकाकरण और सबसे बड़ी बात जागरूकता बहुत जरूरी है।
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