लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार 2024 के अवसर पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ: उप राष्ट्रपति सचिवालय
नई-दिल्ली (PIB): उप राष्ट्रपति सचिवालय ने "लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार 2024 के अवसर पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ" जारी किया।
लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय उत्कृष्टता पुरस्कार 2024 के अवसर पर उपराष्ट्रपति के संबोधन का मूल पाठ:
आप सभी को सुप्रभात!
लाल बहादुर शास्त्री प्रबंधन संस्थान के चेयरमैन श्री अनिल शास्त्री जी। हम लंबे समय से एक साथ हैं। हम दोनों ही वर्ष 1989 में लोकसभा के लिए चुने गए थे।
हम दोनों एक ही समय में मंत्रिपरिषद में शामिल हुए थे और तब मुझे पता चला कि उनमें अपने पिता श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के उच्च मूल्य परिलक्षित होते थे। श्री लाल बहादुर शास्त्री जी इस देश के प्रधानमंत्री थे जो आज भी हमारी स्मृतियों और दिलों में जीवित हैं ।
आपने मुझे इस प्रतिष्ठित पुरस्कार को देश के सबसे बेहतरीन लोगों में से एक, मानवता के सभी पहलुओं के लिए प्रतिबद्धता की उदाहरण, श्रीमती राजश्री बिड़ला को प्रदान करने का अवसर दिया। इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। सौभाग्य से, यह 25वां पुरस्कार है जो पूरी तरह से अर्जित है और योग्यता के आधार पर दिया गया है।
उपराष्ट्रपति के सचिव श्री सुनील कुमार गुप्ता, शास्त्री परिवार के गणमान्य सदस्य, मैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता हूं, राजश्री जी के साथ आए गणमान्य सदस्य, निर्णायक मंडल के सदस्य, आप सब बधाई के पात्र हैं जो यह मानते है कि यह पुरस्कार समारोह पूरी तरह से जनता और बोर्ड ऑफ गवर्नर्स की भावना के अनुरूप है।
मैं बिड़ला परिवार से अपने सम्बंधों के बारे में बताना चाहता हूं। यह 1970-71 की बात है। हमारे एक रिश्तेदार द्वारा झुंझुनू जिले के एक सुदूर गांव में स्वर्गीय श्री जी.डी. बिड़ला जी का स्वागत किए जाने का यह अवसर था।
वहां फोटो खिंचवाई जानी थी। सभी लोग कतार में खड़े थे। पहली पंक्ति के बीच में जीडी बिड़ला जी थे। मेरी उम्र, आपसी सम्बंधों और परिस्थिति को देखते हुए, मैं आखिरी पंक्ति में था। तो परिवार के सदस्यों का प्रभुत्व था, फिर जीडी बिड़ला जी के बड़े भाई आगे आए। अब आगे की पंक्ति में कोई भी अपनी सीट छोड़ने को तैयार नहीं था।
जीडी बिड़ला जी के साथ फोटो खिंचवाने का मौका कौन चूकना चाहेगा? जीडी बिड़ला जी ने चुपचाप अपने बड़े भाई को अपनी सीट दे दी। और वे आखिरी पंक्ति में आ गए। और मेरे युवा कंधे पर हाथ रखा। मुझे लगा कि वो मेरे लिए आशीर्वाद है।
फिर मुझे उनके बारे में और पता चला और देश के लिए उनके त्याग के बारे में भी। दबावपूर्ण, दमनकारी, पूर्ण प्रतिशोध के वाले उन कठिन दिनों, भयावह परिदृश्य और अंग्रेजों के शासन की कल्पना करें। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन को आर्थिक सहायता देकर बढ़ावा दिया। वह और महान गांधीजी धन का विवेकपूर्ण उपयोग करने में इतने मितव्ययी थे कि वे बैंकिंग कमीशन का भुगतान करके लेनदेन की लागत बचा लेते थे।
इसलिए, रिकॉर्ड है कि प्रामाणिक रिकॉर्ड के अनुसार ही धनराशि हस्तांतरित की गई। यदि किसी स्थान पर इसकी आवश्यकता होगी, तो यह किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी जाएगी, ताकि प्रत्येक योगदान का अधिकतम उपयोग किया जा सके।
जीडी बिड़ला जी का जीवन हमारे लिए अनुकरणीय है । हमें आजादी मिली और फिर सम्बंध चलता रहा। मेरा अगला जुड़ाव आदित्य बिड़ला जी के साथ रहा। जैसा कि मैंने कहा, मैं अनिल के साथ चुना गया था। वर्ष 1989 में मैं मंत्री था। वर्ष 1990 में फिक्की में एक समारोह था। मुझे महान व्यक्तित्व के धनी जीडी बिड़ला जी के साथ कुछ करना था।
उस दिन पूरा मंत्रिपरिषद बैठक कर रहा था और इसलिए जाहिर है कि कोई मंत्री उसमें शामिल होने के लिए उपलब्ध नहीं था। मुझे किसी से संदेश मिला। मैं झुंझुनू से सांसद था और इस क्षेत्र का जीडी बिड़ला परिवार के साथ अच्छी तरह से जुड़ाव रहा है और आज भी यह जुड़ाव बरकरार है।
बिड़ला जी ने इसे राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर करके दिखाया है। मैंने उस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए अपने तत्कालीन प्रधानमंत्री से छुट्टी मांगी। इससे आदित्य बिड़ला जी के साथ एक गहरे भावनात्मक सम्बंध की शुरुआत हुई और जैसा कि हम देखते हैं उनका राजनीति में कभी भी हस्तक्षेप नहीं रहा, लेकिन फिर भी उन्होंने मेरे राजनीतिक झुकाव के बारे में बातचीत की और मुझे उद्योग घराने में आमंत्रित किया।
मुझे वहां दो चीज़ें देखने का मौक़ा मिला। एक, हमने दोपहर का भोजन किया, जबकि दूसरे लोग भी वहां दोपहर का भोजन कर रहे थे और भोजन, दोपहर के भोजन के बाद उच्च उत्पादकता और पोषण मूल्य को ध्यान में रख कर बनाया गया था। और फिर मैंने पहली बार देखा कि आदित्य बिड़लाजी ने व्यावसायिकता में एक बड़ा बदलाव किया है। उन्होंने मज़बूत नींव रखी। हमने उन्हें जल्दी खो दिया। लेकिन उन्होंने काम करने के दौरान ऐसा समूह बनाया जो उच्चतम नैतिक मानकों और वैश्विक उपस्थिति के लिए जाना जाता है।
कुमार मंगलम जी से मेरी मुलाक़ात पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनने के बाद हुई। कोविड के कारण वे बिड़ला पार्क में फंसे हुए थे। मैंने उनकी मदद करने का बीड़ा उठाया, लेकिन वे वहां से नहीं हटे क्योंकि वह कानूनी व्यवस्था को लेकर बहुत सजग थे।
फिर एक बहुत ही संवेदनशील क्षण आया और वह क्षण यह था कि उनका कोई परिचित, उनसे मिलने जाना चाहता था क्योंकि वे बीमार थे। सिर्फ 300 मीटर की दूरी थी। लेकिन चूंकि प्रतिबंध थे, कानूनी मंजूरी के बिना, कुमार उन 300 मीटर के फासले को खत्म नहीं कर सकते थे। मुझे उस समय कई मौकों पर उनके साथ बातचीत करने का अवसर मिला। उन्होंने केवल प्रेम का मार्ग अपनाया। यह मुझे याद दिलाता है कि किसी ने सही कहा है, यदि आप चाहते हैं कि लोकतंत्र फले-फूले। कभी भी शॉर्टकट न अपनाएं। ये शॉर्टकट बहुत दर्दनाक होते हैं। जरूरत के समय ये सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण, सबसे लंबे और कभी खत्म न होने वाले बन जाते हैं। जब आपको जरूरत पड़ेगी, ये शॉर्टकट आपको उस समय एक सुरंग में ले जा कर खड़ा कर देते हैं जहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं होता।
फिर, मैं इस पद पर आसीन हुआ और परिवार के साथ बातचीत करने का एक और मौका मिला। मैंने अपने जीवन के कुछ सबसे सुखद पल परिवार के सदस्यों के साथ बिताए और व्यक्तिगत रूप से परिवार के साथ बातचीत करने का अवसर मिला। इसका श्रेय निश्चित रूप से पुरस्कार विजेता को जाता है। इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित हस्ती।
पिछले तीन दशकों से, वे हमारी सभ्यता की गहरी नींव और लोकाचार को दर्शाने वाली प्रतिबद्धता के साथ बहुत ही व्यापक तरीके से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा के विभिन्न रूपों में मानवता की सेवा कर रही हैं और सार्वजनिक कार्यक्रमों को कम से कम महत्व दे रही हैं। यह सही कहा गया है कि बुद्धिमता केवल जो लिखित है उससे दिखाई नहीं देती बल्कि...
सबसे अच्छा राजदूत वह है जो किसी विचार को मौखिक रूप से आगे बढ़ाता है। इसलिए मैं कह सकता हूं कि वह इस समय उन लोगों में सबसे ऊपर है जो कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व को निभाते हुए जहां इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है वहां इसके वित्तपोषण का पालन करते हुए मानवता की सेवा कर रहे हैं और इसलिए यह पुरस्कार पूरी तरह से अर्जित है और योग्यता के आधार पर प्राप्त किया गया है ।
उन्हें कई पुरस्कार मिले हैं, जैसा कि मैंने बताया, पद्म भूषण। उनके बेटे को पद्म भूषण मिला है, जब मुझे उपराष्ट्रपति के रूप में परिवार को बधाई देने का अवसर मिला था। लेकिन कुछ लोग होते हैं जो न्याय करते हैं। यह हमें सोचने के लिए बाध्य करता है। हां, यह सही व्यक्ति को दिया गया है और इसलिए निर्याणक मंडल को मेरी बधाई कि उन्होंने सही समय पर एक को चुना क्योंकि हमें इसकी देश में आवश्यकता है। इस चुनौतीपूर्ण परिदृश्य में, जब देश आगे बढ़ रहा है, तो ऐसी वृद्धि पहले कभी नहीं हुई है, यह वृद्धि घातीय और वृद्धिशील है।
इस प्रक्रिया में हमें, हमारे मूल्यों की याद दिलाने वाले मार्गदर्शक सिद्धांत और प्रकाश स्तंभ को नहीं खोना चाहिए। हम जो देखते हैं वह है सादगी की परिभाषा, आकर्षण, एक ऐसा जुड़ाव जो दूसरे व्यक्ति को सहज बनाता है और फिर मैं उस व्यक्ति की बात करता हूं जिसकी याद में यह पुरस्कार दिया गया है, लाल बहादुर शास्त्री। उनका नाम ही देशभक्ति की याद दिलाता है, उनका नाम ही एक ऐसी व्यवस्था की याद दिलाता है कि हां, यह है प्रतिबद्धता ।
शास्त्री जी ने जन सेवा को परिभाषित किया, शास्त्री जी आत्म-बलिदान के प्रतीक थे, शास्त्री जी ने उपदेशों के माध्यम से नहीं बल्कि आचरण के माध्यम से उदाहरण प्रस्तुत किया। जब हम भूखमरी के संकट से जूझ रहे थे, तब पूरा देश उनके साथ खड़ा था। वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने लोगों को भागीदारी निभाने का आह्वान किया। अगर मैं सही कह रहा हूं तो भोजन टालने को कहा था।
कुछ लोग ऐसे होते हैं साधारण कदकाठी के, लेकिन व्यक्तित्व बहुत बड़ा, ये ऐसे लोग होते हैं जिन्हें किसी कार्यक्रम प्रबंधन या काम के दिखावे की जरूरत नहीं होती। वे हमारी यादों में रहते हैं, हमारा मार्गदर्शन करते हैं, हमें प्रेरित करते हैं। उनका यह आह्वान कि मैं दोनों श्रेणियों में आता हूं, दरअसल जवान और किसान, सिर्फ एक आह्वान नहीं था। यह आह्वान उस समय के परिदृश्य और अकल्पनीय खतरे की आशंका से उपजा था।
कल्पना कीजिए उस मंजर की, जब उन्होंने कार्यभार संभाला, वे अकेले व्यक्ति थे जो इसे संभाल सकते थे। सार्वजनिक जीवन के उच्चतम मानकों को देखें, जब वे मंत्री पद पर थे और फिर एक चूक हुई, न कि उनकी वजह से बल्कि उन्होंने तय नियमों से परे जाकर काम किया। उन्होंने पूरी जिम्मेदारी ली और बिना पोर्टफोलियो के मंत्री बनने के लिए राजी हुए। मैं देखता हूं कि परिवार उसी धारा को लेकर आगे बढ़ रहा है, वे उनके सिद्धांतों पर चल रहे हैं।
हम ऐसे समय में जी रहे हैं जहां कार्यक्रम प्रबंधन द्वारा प्रतिष्ठित दर्जा ऐसे मापदंडों के आधार पर दिया जाता है जो हैरान करने वाले होते हैं। लोगों को उस स्तर पर ऊपर उठा दिया जाता है जिसे हम पचा नहीं पाते। वे सार्वजनिक तौर पर अपनी पहचान बना लेते हैं लेकिन एक प्रतिमान में बदलाव है। उदाहरण के लिए, पद्म पुरस्कार, हमारे नागरिक पुरस्कार, हमारे प्रतिष्ठित नागरिक पुरस्कार। ये उन लोगों को दिए जा रहे हैं जो इनके योग्य हैं और इसलिए इस पुरस्कार की विश्वसनीयता अधिक है।
ये भी उसी धारा में है, मैं दो अवसरों में शामिल हुआ हूं, शायद उससे भी ज़्यादा और मेरे लिए, जीवन में इससे बड़ी उपलब्धि क्या हो सकती है। मैं, सैनिक स्कूल की सातवीं कक्षा में था, जब हमने शास्त्री जी को खो दिया था। मैनें महान बिड़ला परिवार की परंपराओं को बड़े आदर से देखा और आज इस स्थिति में हूं। एक पल मेरी यादों में हमेशा रहेगा कि मैं, मानवता के लिए समर्पित श्रीमती राजश्री बिड़ला परिवार के सबसे महान योगदानकर्ताओं में से एक हूं, और इस पुरस्कार के साथ धरती के सबसे बेहतरीन सपूतों में से एक का तमगा जुड़ा है, जिसकी याद कभी मिट नहीं सकती।
मैं हमेशा आपके साथ रहूंगा, जैसे आप मेरे साथ थे जब मैं मंत्री पद पर था। एक बार फिर, मैं खुद को विनम्र, सम्मानित और बहुत ही सौभाग्यशाली महसूस कर रहा हूं। मेरे लिए यह दुर्लभ अवसर है जब मैं श्रीमती राजश्री बिड़ला को लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर एक पुरस्कार प्रदान कर रहा हूं।
नमस्कार
धन्यवाद।
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