नवसंवत्सर विशेष: आओ नव-नीड़ सजाएं......
लखनऊ: आज 'विशेष' में प्रस्तुत है - "नवसंवत्सर विशेष: आओ नव-नीड़ सजाएं" शीर्षक से एक गीत जिसे लिखा है उत्तराखंड के फ्रीलांस राइटर, कॉलमिस्ट व युवा साहित्यकार - सुनील कुमार महला।
नवसंवत्सर विशेष: आओ नव-नीड़ सजाएं
नवसंवत्सर ने छेड़ी तान,
नया है विहान, नया है विहान।
हिंदू नववर्ष मंगलमय, हर्ष-उत्कर्ष की हो बयार।
वर्ष प्रतिपदा से हर भारतवासी को हो प्यार।।
सच्चे, नेक-भलाई के इरादे हों, मन में हो न ईर्ष्या, कटु विचार।
खुद भी जिएं और दूसरों को भी जीने दें, संयमित हो हर व्यवहार।।
सत्य-पथ के साथी बनें, निंदा-बैर भाव को कभी न चुनें।
सहृदयता पनपें हर मन में, सपने हर सुंदर बनें।।
नवसंवत्सर ने छेड़ी तान,
नया है विहान, नया है विहान।
शांति -सद्भाव का चोला पहने, नवसंवत्सर के क्या है कहने।
सभ्यता -संस्कृति और संस्कार अपने भारतवर्ष के हैं अद्भुत गहने।।
कण-कण में नवल ऊर्जा समाई, प्रकृति नव-उद्घोष करें।
सकारात्मक सोच-विचार से, स्फूर्ति रग-रग में भरें।।
दुःख,संकट के बादल सारे छंट जाएं।
द्वेष हो न, और न हो बुराई, हंसते-हंसाते जीवन बिताएं।।
नवसंवत्सर ने छेड़ी तान,
नया है विहान, नया है विहान।
सृष्टि नव-रूप धरे, हर तरफ मधु- मिठास बरसे।
दीन-दुखियों की सेवा करें, हर मुख प्रेरणा उत्थान गरजे।।
मधुर-मधुर मौसम, खेतों में फसलें लहराएं।
नई छटाएँ बिखरीं, आशाओं के अश्व दौड़ाएं।।
जश्न-उत्सव का माहौल है, आओ नये किस्से बनाएं।
चेतन चमकाएं, खुशियां बरसाएं, आओ आओ नव-नीड़ सजाएं।।
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