कैबिनेट ने अंतर राज्य नदी जल विवाद (आईएसआरडब्ल्यूडी) कानून, 1956- तेलंगाना राज्य के अनुरोध के तहत कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II की संदर्भ शर्तों को मंजूरी दी: मंत्रिमण्डल
नई-दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के बीच न्यायिक फैसले के लिए आईएसआरडब्ल्यूडी कानून की धारा 5 (1) के अन्तर्गत मौजूदा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण- II (केडब्ल्यूडीटी-II) की आगे की संदर्भ शर्तों (टीओआर) को मंजूरी दे दी। अंतर राज्य नदी जल विवाद (आईएसआरडब्ल्यूडी) कानून, 1956 की धारा (3) के तहत शिकायत में तेलंगाना सरकार (जीओटी) द्वारा उठाए गए मुद्दों पर कानूनी राय लेने और उसी पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण है।
कृष्णा नदी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण पर दोनों राज्यों के बीच विवाद के समाधान से तेलंगाना और आंध्र प्रदेश दोनों राज्यों में विकास के नए रास्ते खुलेंगे और इसका दोनों राज्यों के लोगों को लाभ मिलेगा, जिससे देश को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी।
केंद्र सरकार ने आईएसआरडब्ल्यूडी कानून, 1956 की धारा 3 के तहत पक्षकार राज्यों के अनुरोध पर 02.04.2004 को कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण-II का गठन किया था। इसके बाद, 02.06.2014 में तेलंगाना भारत का एक राज्य बनकर अस्तित्व मे आया। आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून (एपीआरए), 2014 की धारा 89 के अनुसार, एपीआरए, 2014 की उक्त धारा के खंड (ए) और (बी) के समाधान के लिए केडब्ल्यूडीटी-II का कार्यकाल बढ़ाया गया था।
इसके बाद, तेलंगाना सरकार (जीओटी) ने 14.07.2014 को जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प विभाग (डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर), जल शक्ति मंत्रालय (एमओजेएस), को एक शिकायत भेजी, जिसमें कृष्णा नदी के पानी के उपयोग, वितरण या नियंत्रण पर विवाद का जिक्र किया गया था। इस मामले में तेलंगाना सरकार द्वारा 2015 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय में एक रिट याचिका भी दायर की गई थी। 2018 में, तेलंगाना सरकार ने डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर, एमओजेएस से शिकायत को मौजूदा केडब्ल्यूडीटी-II तक केवल तेलंगाना और आंध्र प्रदेश राज्यों के बीच सीमित करने का अनुरोध किया। इस मामले पर 2020 में जलशक्ति मंत्री की अध्यक्षता में शीर्ष परिषद की दूसरी बैठक में चर्चा की गई। तेलंगाना सरकार ने 2021 में उक्त रिट याचिका वापस ले ली और बाद में, मामले में डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर द्वारा कानून और न्याय मंत्रालय की कानूनी राय मांगी गई।
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