नशामुक्त भारत अभियान के अंतर्गत सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग और अखिल विश्व गायत्री परिवार के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर और सम्पादक के मन की बात!
नई-दिल्ली (PIB): आज नशामुक्त भारत अभियान के अंतर्गत "सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग और अखिल विश्व गायत्री परिवार के बीच समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर" किया गया जिसकी तमाम बोलती तश्वीरें भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय ने प्रकाशित किया है, जिसे यहां संपादक के 'मन की बात' में उनके एक प्रश्न के साथ प्रस्तुत किया जा रहा है।
क्या आज लोक-लुब्भावन शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करके सभी धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं / संगठनों का 'दुरुपयोग', इस पूंजीवादी / नई आर्थिक नीति के अंतर्गत चल रही सरकार द्वारा बाजारीकरण करके केवल WTO + IMF + WHO / संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (यूएन एसडीजी) की दिशा में प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जा रहा है ?-
-:संपादक:-
सम्पादक के मन की बात:-
मैं भी गायत्री परिवार से जुड़ा एक सदस्य हूँ और निचे प्रस्तुत इन फोटो को देखकर असीम पीड़ा हो रही है कि, प्रधानमंत्री मोदी जी और उनकी सरकार भी सब कुछ समझते और जानते हुए देश में पूर्ण नशाबंदी लागू नहीं कर रही है।
आज प्रधानमंत्री चाहें तो एक मिनट में नशे के कारखानों को बंद करके देश में पूर्ण नशाबंदी लागू कर सकते है परन्तु मोदी जी और मोदी जी की सरकार भी सब-कुछ जानते हुए देश में पूर्ण नशाबंदी लागू नहीं कर रही है!
आज ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, प्रधानमंत्री मोदी जी की सरकार भी "नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व-काल में भारत सरकार के साथ हुए WTO के करार" को ही तेजी से लागू कर 'वर्ग-भेद' पर वर्ग-भेद करते हुए आर्थिक आतंकवाद को बढ़ावा दे रही है !
क्षमा चाहते हुए हम सरकार से और आप जनता-जनार्दन से बड़े ही आदर के साथ पूछना चाहते हैं कि,
१) "क्या आज लोक-लुब्भावन शब्दों और वाक्यों का प्रयोग करके सभी धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं / संगठनों का 'दुरुपयोग', और यहां तक कि, अब 'गायत्री परिवार' तक से MOU पर हस्ताक्षर कराकर नशाबंदी का दिखावा नहीं किया जा रहा है?-"
२) क्या इस पूंजीवादी / नई आर्थिक नीति के अंतर्गत चल रही सरकार द्वारा सभी चीजों का निजीकरण और बाजारीकरण करके केवल WTO + IMF + WHO / संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (यूएन एसडीजी) की दिशा में प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जा रहा है और शराब व अन्य नशीले पदार्थों की सरकारी बिक्री करके समाज और समाज के भविष्य की हत्या नहीं की जा रही है ?-
और
इसी क्रम में लगातार तमाम प्रोग्राम / कार्यक्रम करके देश के भविष्य को अन्धकार में धकेला जा रहा है !
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संपादक
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