संसद के केंद्रीय कक्ष में सांसदों को प्रधानमंत्री के संबोधन का मूलपाठ: प्रधानमंत्री कार्यालय
नई दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री कार्यालय ने "संसद के केंद्रीय कक्ष में सांसदों को प्रधानमंत्री के संबोधन का मूलपाठ" जारी किया।
"संसद के केंद्रीय कक्ष में सांसदों को प्रधानमंत्री के संबोधन का मूलपाठ"
आदरणीय उपराष्ट्रपति जी! आदरणीय स्पीकर महोदय! मंच पर विराजमान सभी वरिष्ठ महानुभाव और 140 करोड़ देशवासियों के प्रतिनिधि सभी माननीय सांसदगण।
आपको और देशवासियों को गणेश चतुर्थी की अनेक-अनेक शुभकामनाएं। आज नए संसद भवन में हम सब मिलकर के नए भविष्य का श्रीगणेश करने जा रहे हैं। आज हम यहां विकसित भारत का संकल्प दोहराना फिर एक बार संकल्पबद्ध होना और उसको परिपूर्ण करने के लिए जी-जान से जुटने के इरादे से नए भवन की तरफ प्रस्थान कर रहे हैं। सम्माननीय सभागृह, ये भवन और उसमें भी ये सेंट्रल हॉल एक प्रकार से हमारी भावनाओं से भरा हुआ है। हमें भावुक भी करता है और हमें हमारे कर्तव्य के लिए प्रेरित भी करता है। आजादी के पूर्व ये खंड एक प्रकार से लाइब्रेरी के रूप में इस्तेमाल होता था। लेकिन बाद में संविधान सभा की बैठक यहां शुरू हुई और उन संविधान सभा के बैठकों के द्वारा गहन चर्चा, विचार करके हमारे संविधान ने यही पर आकार लिया। यही पर 1947 में अंग्रेजी हुकूमत ने सत्ता हस्तांतरण किया, उस प्रक्रिया का भी साक्षी हमारा ये सेंट्रल हॉल है। इसी सेंट्रल हॉल में भारत के तिरंगे को अपनाया गया, हमारे राष्ट्रगान को अपनाया गया। और ऐतिहासिक अवसरों पर आजादी के बाद भी सभी सरकारों के दरमियान अनेक अवसर आए जब दोनों सदनों ने मिलकर के यहां पर भारत के भाग्य को गढ़ने की बात पर विचार किया, सहमति बनाई और निर्णय भी लिए।
1952 के बाद दुनिया के करीब 41 राष्ट्राध्यक्षों ने इस सेंट्रल हॉल में हमारे सभी माननीय सांसदों को संबोधित किया है। हमारे राष्ट्रपति महोदयों के द्वारा 86 बार यहां संबोधन किया गया है। बीते 7 दशकों में जो भी साथी इन जिम्मेदारियों से गुजरे हैं, जिम्मेदारियों को संभाली हैं, अनेक कानूनों, अनेक संशोधन और अनेक सुधारों का हिस्सा रहे हैं। अभी तक लोकसभा और राज्यसभा ने मिलकर करीब-करीब 4 हजार से अधिक कानून पास किए हैं। और कभी जरूरत पड़ी तो Joint Session के माध्यम से भी कानून पारित करने की दिशा में रणनीति बनानी पड़ी और उसके तहत भी दहेज रोकथाम कानून हो, बैंकिग सर्विस कमिशन बिल हो, आतंक से लड़ने के लिए कानून हो, ये संयुक्त सत्र में पास किए गए हैं, इसी गृह में पास किए गए हैं। इसी संसद में मुस्लिम बहन, बेटियों को न्याय की जो प्रतीक्षा थी, शाहबानो केस के कारण गाड़ी कुछ उल्टी पाटी पर चल गई थी, इसी सदन ने हमारी उस गलतियों को ठीक किया और तीन तलाक के विरूद्ध कानून हम सबने मिलकर के पारित किया। संसद ने बीते वर्षों में ट्रांसजेंडर को न्याय देने वाले कानूनों का भी निर्माण किया। इसके माध्यम से हम ट्रांसजेंडर के प्रति सद्भाव और सम्मान के भाव के साथ उनको नौकरी, शिक्षा, स्वास्थ्य बाकी जो सुविधाएं हैं, एक गरिमा के साथ प्राप्त कर सकें, इसकी दिशा में हम आगे बढ़े हैं। हम सभी ने मिलकर हमारे दिव्यांगजनों के लिए भी, उनकी जरूरतों को देखते हुए, उनके aspirations को देखते हुए ऐसे कानूनों को निमार्ण किया जो उनके उज्ज्वल भविष्य की गारंटी बन गए। आर्टिकल-370 हटाने से लेकर, वो विषय ऐसा रहा शायद ही कोई दशक ऐसा होगा कि जिसमें चर्चा न हुई हो, चिंता न हुई हो और मांग न हुई हो, आक्रोश भी व्यक्त हुआ, सभागृह में भी हुआ, सभागृह के बाहर भी हुआ, लेकिन हम सबका सौभाग्य है कि हमें इस सदन में आर्टिकल-370 से मुक्ति पाने का, अलगावाद आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ने का एक बड़ा महत्वपूर्ण कदम। और इस महत्वपूर्ण काम में माननीय सांसदों की, संसद की बहुत बड़ी भूमिका है। जम्मू-कश्मीर में इसी सदन में निर्मित हुआ संविधान, हमारे पूर्वजों ने जिसे दिया वो महामूल्य दस्तावेज, जम्मू-कश्मीर में लागू करते हैं तो इस मिट्टी को प्रणाम करने का मन कर रहा है।
आज जम्मू और कश्मीर शांति और विकास के रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध हुआ है और नए उमंग, नए उत्साह, नए संकल्प के साथ जम्मू-कश्मीर के लोग आगे बढ़ने का कोई मौका अब छोड़ना नहीं चाहते हैं। ये दिखाता है कि संसद के सदस्यों ने मिलकर के संसद के भवन में कितने महत्वपूर्ण काम किए हैं। माननीय सांसदगण लालकिले से मैंने कहा था, यही समय है, सही समय है। एक के बाद एक घटनाओं की तरफ हम नजर करेंगे, हर घटना इस बात का गवाह दे रही है कि आज भारत एक नई चेतना के साथ पुर्नजागृत हो चुका है। भारत नई ऊर्जा से भर चुका है और यही चेतना यही ऊर्जा इस देश के कोटि-कोटि जनों के सपनों को संकल्प में परिवर्तित कर सकती है और संकल्प को परिश्रम की पराकष्ठा कर-करके सिद्धी तक पहुंचा सकती है, ये हम देख सकते हैं। और मेरा विश्वास है, देश जिस दिशा में चल पड़ा है इच्छित परिणाम अवश्य प्राप्त होंगे। हम गति जितनी तेज करेंगे, परिणाम उतने जल्दी मिलेंगे।
आज भारत पांचवी अर्थव्यवस्था पर पहुंचा है। लेकिन पहले तीन में पहुंचने के संकल्प के साथ बढ़ रहा है। और मैं जिस स्थान पर बैठा हूं, जो जानकारियां प्राप्त होती हैं उसके आधार पर, विश्व के गणमान्य लोगों से बातचीत करता हूं उसके आधार पर, मैं बड़े विश्वास से कह रहा हूं, हम में से कुछ लोगों को निराशा हो सकती है। लेकिन दुनिया आश्वस्त है, ये भारत टॉप-3 में पहुंच कर रहेगा। भारत का बैंकिंग सेक्टर आज अपनी मजबूती के कारण से फिर एक बार दुनिया में सकारात्मक चर्चा का केंद्र बना हुआ है। भारत का गर्वनेंस का मॉडल, यूपीआई , डिजिटल स्टेक। मैं इस जी-20 में देख रहा था, मैंने बाली में भी देखा। टेक्नॉलोजी की दुनिया को लेकर के भारत का नौजवान जिस प्रकार से आगे बढ़ रहा है, पूरे विश्व के लिए कौतुहल भी है, आकर्षण भी है और स्वीकृति भी है। हम सब उस ऐसे कालखंड में हैं। मैं कहूंगा हम लोग एक भाग्यवान लोग हैं। ऐसी भाग्यवान समय में हमें कुछ दायित्व निभाने का अवसर आया है और हमारा सबसे बड़ा भाग्य है कि आज Indian Aspirations उस ऊंचाई पर है जो शायद पिछले हजार साल में नहीं रहे होंगे। गुलामी की जंजीरों ने उसके Aspirations को दबोच कर रखा था, उसकी भावनाओं को तहस-नहस कर दिया था। आजाद भारत में वो अपने सपने संजों रहा था, चुनौतियों से जूझ रहा था, लेकिन मिलकर के आज जहां पहुंचे हैं अब वहां वो रुकना नहीं चाहता है। वो Aspirational society के साथ नए लक्ष्य गढ़ना चाहता है। जब Aspirational societies सपने संजोते हों, संकल्प लेकर के निकल पड़ी हो, तब पुराने कानूनों से मुक्ति पाकर नए कानूनों का निर्माण करके उज्ज्वल भविष्य के लिए एक मार्ग प्रशस्त करने का दायित्व हम सभी सांसदों का सविशेष होता है। संसद में बनने वाला हर कानून, संसद में होने वाली हर चर्चा, संसद से जाने वाला हर संकेत Indian Aspiration को बढ़ावा देने के लिए ही होना चाहिए, ये हम सब की भावना भी है, कर्तव्य भी है और एक-एक देशवासी की हमसे अपेक्षा भी है। हम जो भी रिफार्म करेंगे उसके मूल में Indian Aspirations सबसे सर्वोच्च पद पर होना चाहिए, प्राथमिकता पर होना चाहिए। लेकिन मैं बहुत सोच समझकर के कहना चाहता हूं, क्या कभी छोटे कैनवास पर कोई बड़ा चित्र बना सकता है क्या? जैसे छोटे कैनवास पर बड़ा चित्र नहीं बन सकता, वैसे हम भी अगर हमारे अपने सोचने के कैनवास को बड़ा नहीं कर सकते तो भव्य भारत का चित्र भी हम नहीं अंकित कर सकते। 75 साल का हमारे पास अनुभव है। हमारे पूर्वजों ने जो कुछ भी रास्ते बनाए उससे हमने सिखा है। हमारे पास एक बहुत बड़ी विरासत है। इस विरासत के साथ अगर हमारे सपने हमारे संकल्प जुड़ जाए, हमारा सोचने का दायरा बदल जाए, हमारा कैनवास बड़ा हो जाए तो हम भी उस भव्य भारत के चित्र को अंकित कर सकते हैं, उस तस्वीर का खाका खींच सकते हैं, उसमें रंग भरने का काम हम भी कर सकते हैं और आने वाली पीढ़ी को वो भव्यता दिव्य मां भारती की, हम उनको सुपुर्द कर सकते हैं दोस्तों।
अमृतकाल के 25 वर्षों में भारत को अब बड़े कैनवास पर काम करना ही होगा। अब हमारे लिए छोटी-छोटी चीजों में उलझना, वो वक्त चला गया है। हमें आत्मनिर्भर भारत बनाने के लक्ष्य को सबसे पहले परिपूर्ण करना चाहिए। और हमसे शुरूआत होती है, हर नागरिक से शुरूआत होती है, और आज दुनिया में भी एक समय ऐसा था कि लोग मुझे कहते थे। हमारे बड़े-बड़े बुद्धिजीवी और अर्थशास्त्री लिखते थे कि मोदी आत्मनिर्भर की बात करता है तो multilateralism के सामने चुनौती तो बन नहीं जाएगा। ग्लोबल इकॉनामी के जमाने में ठीक तो नहीं होगा, लेकिन पांच साल के भीतर-भीतर देखा, दुनिया भारत के आत्मनिर्भर मॉडल की चर्चा करने लगी है। और कौन हिन्दुस्तानी नहीं चाहेगा कि डिफेंस सेक्टर में आत्मनिर्भर हों, एनर्जी सेक्टर में हम आत्मनिर्भर हों, एडिबल हो ही, क्या इस देश को आत्मनिर्भर नहीं होना चाहिए। कृषि प्रधान देश हम कहते हैं। खाने का तेल क्या अब देश बाहर से लाएगा? बहुत समय की मांग है कि हमें आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को पूरा करना, ये हम सबका दायित्व है, उसमें दल आड़े नहीं आते हैं, सिर्फ दिल चाहिए, देश के लिए चाहिए।
हमें अब manufacturing sector में दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनने की दिशा में ही कदम रखने होंगे। और मैंने एक बार लालकिले से कहा था zero defect, zero effect, हमारे प्रोडक्ट में कोई डिफेक्ट न हो, हमारी प्रक्रिया में पर्यावरण में कोई इफैक्ट न हो, ऐसा zero defect, zero effect वाला हमें दुनिया के सामने manufacturing क्षेत्र में जाना होगा। हमारे डिजाइनर, हमारे यहां निर्माण हो रही डिजाइंस, हमारे सॉफ्टवेयर, हमारे एग्रीकल्चर प्रोडक्टस, हमारे हस्तशिल्प, हर क्षेत्र में अब हमें वैश्विक मापदंडों को पार करने के इरादे से ही चलना चाहिए तब जाकर के विश्व के अंदर हम अपना झंडा फहरा सकते हैं। मेरे गांव में मेरा सबसे अच्छा मान हो इतनी बात नहीं चलेगी, मेरे राज्य में मेरा सबसे अच्छा प्रोडक्ट नहीं चलेगा, मेरे देश में मेरा सबसे अच्छा प्रोडक्ट नहीं चलेगा, दुनिया में मेरा प्रोडक्ट सबसे अच्छा होगा, ये भाव हमें पैदा करना होगा। हमारी यूनिवर्सिटिज दुनिया के अंदर टॉप रैंकिंग में आए, अब इसमें हमें पीछे नहीं रहना है। हमारे शिक्षा जगत को नई National Education Policy मिली है, एक खुलापन है, सर्व स्वीकृत बनी है। उसके सहारे अब हमें चल पड़ना है और दुनिया के इस टॉप यूनिवर्सिटिज में, अभी जब जी-20 में जब विश्व के मेहमान आए तो मैंने नालंदा की एक तस्वीर रखी थी वहां और जब मैं दुनिया को कहता था 1500 साल पहले मेरे देश में दुनिया की उत्तम से उत्तम यूनिवर्सिटी हुआ करती थी, तो वो सुनते ही रह जाते थे। लेकिन हमें उससे प्रेरणा लेनी है पर प्राप्त तो अभी करके रहना है, ये हमारा संकल्प है।
आज हमारे देश का नौजवान खेल जगत के अंदर दुनिया में हमारी पहचान बना रहा है। Tier-2, Tier-3 city से, गांव गरीब परिवारों से, गांव से देश के नौजवान, देश के बेटे-बेटियां आज खेलकूद के जगत में हमारा नाम रोशन कर रहे हैं। लेकिन देश चाहता है और देश का संकल्प होना चाहिए कि अब खेलकूद के हर पोडियम पर हमारा तिरंगा भी लहराएगा। हमें अब हमारे पूरे दिमाग को क्वालिटी पर फ़ोकस करना ही होगा, ताकि हम विश्व की आशा अपेक्षाओं के अनुकूल और भारत के सामान्य मानवीय के जीवन में भी quality of life के प्रति जो aspiration बढ़ा है, उसको हम एड्रेस कर पाएं। और जैसे मैंने कहा कि हम भाग्यवान हैं कि हम उस समय काम कर रहे हैं जब समाज अपने आप में एक aspirational society है। हमारा और भी एक भाग्य है कि हम उस समय में हैं जब हिन्दुस्तान युवा देश है। हम दुनिया में सबसे ज्यादा जन आबादी वाला तो देश बने ही हैं लेकिन सबसे बड़ी आबादी उसमें भी सबसे बड़े युवा ये पहली बार हुआ है। जिस देश के पास ये युवा शक्ति हो, युवा सामर्थ्य हो तब हमें उसके टैलेंट पर भरोसा है, हमें उसकी संकल्पशक्ति पर भरोसा है, उसकी साहस में हमें भरोसा है और इसलिए हम चाहते हैं कि दुनिया में भारत का युवा अग्रिम पंक्ति में नजर आना चाहिए, वो स्थिति पैदा होनी चाहिए। आज पूरी दुनिया को स्किल मैनपॉवर की बहुत बड़ी जरूरत है और भारत विश्व की इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए अपने आप को सज्ज कर सकता है और उन आवश्यकताओं की पूर्ति करके दुनिया में अपनी एक जगह भी बना सकता है। और इसलिए विश्व में उनकी आवश्यकता के लिए किस प्रकार के मैनपॉवर की जरूरत है, किस प्रकार के उनको human resource की जरूरत है। स्किल मैपिंग का काम भी चल रहा है और उस स्किल मैपिंग के अनुसार भारत के अंदर skill development की तरफ हम बल दे रहे हैं और जितना ज्यादा हम skill development पर बल देंगे, भारत के नौजवानों का सामर्थ्य विश्व में अपना डंका बजाने में कोई कमी नहीं रखेगा। और हिन्दुस्तानी जहां गया है, जहां गया है, उसने अच्छाई की छाप छोड़ी है, कुछ कर गुजरने की छाप छोड़ी है। ये सामर्थ्य हमारे अंदर पहले से पड़ा हुआ है, और हमारे पहले जो लोग गए हुए हैं उन्होंने इससे यही छवि भी बनाकर रखी हुई है। आपने देखा होगा पिछले दिनों करीब 150 nursing college एक साथ खोलने का निर्णय किया। पूरी दुनिया में बहुत बड़ी requirement है nursing की। हमारी बहन, हमारी बेटियां, हमारे बेटें उस क्षेत्र में दुनिया में पहुंच सकते हैं, आसानी से पहुंच सकते हैं, पूरे विश्व की जरूरत है और ये तो मानवता का काम है जिसमें हम पीछे नहीं रहेंगे। आज medical colleges का इतना व्यापक रूप से निर्माण देश की आवश्यकता तो पूरी करनी ही करनी है, दुनिया की आवश्यकताओं में भी योगदान दे सकते हैं। कहने का तात्पर्य यही है हर छोटी चीज पर बारीकी से ध्यान देते हुए, उस पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए हमें आगे बढ़ना है। हमें भविष्य के लिए सही समय पर सही फैसले भी लेने होते हैं। हम फैसलों को टाल नहीं सकते हैं। हम राजनीतिक लाभ नुकसान के गुणा भाग के भाग के अंदर अपने आपको बंधक नहीं बना सकते हैं। हमें तो देश के aspiration के लिए हिम्मत के साथ नए निर्णय करने होते हैं।
आज सोलर पॉवर के सफल मूवमेंट हमारी भावी पीढ़ी के लिए energy crisis से मुक्ति की गारंटी दे रहा है। आज mission hydrogen आने वाले दिनों में जो environment की चिंता है जो technology में बदलाव आ रहा है उसके समाधान का रास्ता देने का सामर्थ्य रखती है। आज हमारा सेमीकंडक्टर जिस प्रकार से जीवन चलाने में हमारे हृदय की जरूरत रहती है, वैसे ही आज हमारी technology chips के बिना चल नहीं सकती है और semiconductor उसके लिए बहुत अनिवार्य है, उस दिशा में हम आगे जाकर के electronic manufacturing में कोई रुकावट न आए और जीवन कहीं अटक न जाए, उसके लिए एक बहुत बड़ी मात्रा में हम काम कर रहे हैं। जल जीवन मिशन, हर जिले में 75 अमृत सरोवर, हमारी भावी पीढ़ी को, हमारे बच्चों को, उनके भी बच्चे को उनको कभी पानी के बिना तरसना ना पड़े, इसकी चिंता हम आज कर रहे हैं। विश्व के बाजार में हमारा हर व्यापार कारोबार पहुंचे, competitive ताकत के साथ खड़ा रहे। Logistic system को और अधिक कम खर्च वाला बनाना, efficient बनाना, उस दिशा में हम बहुत नीतियां लेकर के चल रहे हैं। आज समय की मांग है कि हम ऐसे भारत का निर्माण करें, जिसमें knowledge innovation हो, ये समय की मांग है। और दुनिया में हमें अग्रिम पंक्ति तक जाने का ये रास्ता भी है। और इसलिए पिछले समय हमने National Education Policy के साथ साथ technology के बढ़ावे के लिए हमने research और innovation का एक कानून भी पारित किया है। ताकि हमारे देश के नौजवानों को इस innovation के और चंद्रयान -3 की सफलता के बाद देश के नौजवानों के मन में विज्ञान की तरफ आकर्षण बढ़ रहा है, हमें मौका गंवाना नहीं है। हमारी युवा पीढ़ी को हमें research और innovation के लिए पूरे अवसर देने हैं। और इस ecosystem को बनाने के लिए हमने एक उज्ज्वल भविष्य के निर्माण की नींव रखी है।
आदरणीय बंधुगण,
सामाजिक न्याय, ये हमारी पहली शर्त है। बिना सामाजिक न्याय, बिना संतुलन, बिना समभाव, बिना समत्व हम इच्छित परिणामों को घर के भीतर प्राप्त नहीं कर सकते हैं। लेकिन सामाजिक न्याय की चर्चा बहुत सीमित बनकर रह गई है, हमें उसको व्यापक रूप में देखना होगा। हम किसी गरीब को कोई सुविधा दें, किसी समाज में दबे-कुचले व्यक्ति को कोई सुविधा दें, वो तो सामाजिक न्याय की एक प्रक्रिया है, लेकिन उसके घर तक पक्की सड़क बन जाए ना वो भी सामाजिक न्याय के लिए उसको मजबूती देती है। उसके घर के नजदीक में बच्चों के लिए अगर स्कूल खुल जाएं तो वो भी उसको सामाजिक न्याय की मजबूती देती है। उसको बिना खर्च अगर आरोग्य में, समय के जरूरत पड़ने पर वो मिले, तब जाकर के सामाजिक न्याय की मजबूती मिलती है। और इसलिए जिस प्रकार से समाज व्यवस्था में सामाजिक न्याय की जरूरत है, वैसी ही राष्ट्र व्यवस्था में सामाजिक न्याय की आवश्यकता है। अब देश का कोई हिस्सा पीछे रह जाए, अविकसित रह जाए, ये भी सामाजिक न्याय के खिलाफ है। दुर्भाग्य से देश का पूर्वी इलाका, भारत का पूर्वी भाग जो समृद्धि से भरा हुआ है, लेकिन वहां के नौजवानों को रोजगार के लिए दूसरे इलाके में जाना पड़ रहा है, ये स्थिति हमें बदलनी है। हमारे देश के उस पूर्वी भाग के इलाके को समृद्ध बनाकर के सामाजिक न्याय की मजबूती भी हमें लेनी है। असंतुलित विकास, शरीर कितना भी स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन एक उंगली को भी अगर लकवा मार गया है तो शरीर स्वस्थ नहीं माना जाता है। भारत कितना ही समृद्ध हो, लेकिन कोई अंग भी उसका दुर्बल रह जाए तो भारत समृद्धि में पीछे है मानना पड़ेगा और इसलिए हम सर्वांगीण विकास के पक्ष में सामाजिक न्याय की उस ऊंचाई को प्राप्त करने पक्ष की दिशा में हमें आगे बढ़ना है। चाहे पूर्वी भारत हो, चाहे नॉर्थ ईस्ट हो, हमें उन चीजों को प्राप्त करना है और उसी के लिए जो रणनीति कितनी सफल हुई है, 100 aspirational districts पर विशेष काम किया, नौजवान अफसरों को लगाया गया, strategy बनाई गई, आज दुनिया उस मॉडल की चर्चा कर रही है। और आज 100 districts देश के कोने-कोने में जो पीछे माने जाते थे, उसको बोझ मान लिया गया था, आज स्थिति ये बनी है वो 100 districts अपने-अपने राज्य में लीड़ कर रहे हैं, राज्य की average से भी ऊपर जा रहे हैं। और इस सफलता को देखकर के सामाजिक न्याय की इस भावना को मजबूत करते हुए 100 districts में से आगे बढ़कर के जमीनी स्तर पर ले जाने के लिए 500 ब्लॉक तक उनको aspirational districts ब्लॉक के नाते identify करके उसको मजबूती देने का काम चल रहा है। और मुझे विश्वास है जो ये aspirational blocks हैं, वो एक विकास का नया मॉडल बनने वाले हैं। वो एक प्रकार से देश के विकास की एक नए ऊर्जा केंद्र बनने की संभावना रखते हैं, और उस दिशा में भी हम आगे बढ़ रहे हैं।
माननीय सांसद गण,
आज विश्व की नजर भारत पर है। शीत युद्ध के समय हमारी पहचान गुटनिरपेक्ष देश के रूप में रही है। उस समय की जो जरूरत थी, उसके जो लाभ होने थे, उस समय से हम गुजरे हैं। लेकिन अब भारत का स्थान कुछ और बना है। और इसलिए उस समय गुट निरपेक्ष की आवश्यकता अवश्य रही होगी, आज हम उस नीति को ले करके चल रहे हैं, जिस नीति को अगर हमें पहचानना है तो विश्वमित्र के रूप में हम आगे बढ़ रहे हैं, हम दुनिया से मित्रता कर रहे हैं। दुनिया हमारे में मित्र खोज रही है। ये शायद विश्व में भारत ने और दूरी नहीं, जितनी हो सके उतनी निकटता के जरिए, उस रास्ते पर चल करके हम अपने विश्वमित्र के भाव को आज सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रहे हैं और मुझे लगता है कि इसका लाभ आज भारत को हो रहा है। भारत आज दुनिया के लिए एक स्टेबल सप्लाई चेन के रूप में उभर रहा है और आज विश्व की ये जरूरत है। और उस आवश्यकता की पूर्ति करने का काम जी-20 में भारत ग्लोबल साउथ की आवाज बनकर उभरा है। ये बीज, जी-20 समिट में जिसे बोया गया है, मेरे देशवासी आने वाले समय में देखेंगे, वो ऐसा वटवृक्ष बनने वाला है, विश्वास का ऐसा वटवृक्ष बनने वाला है, जिसकी छाया में आने वाली पीढ़ियां सदियों तक एक गर्व के साथ अपना सीना तान करके खड़ी रहेंगी, ये मुझे विश्वास है।
इस जी-20 में एक बहुत बड़ा काम हमने किया है, बायोफ्यूल एलाएंस का। हम विश्व का नेतृत्व कर रहे हैं, दिशा दे रहे हैं। और विश्व को बायोफ्यूल एलासंस में दुनिया के सभी मित्र देश देखते ही देखते उसकी सदस्यता ले रहे थे, और एक बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा होने जा रहा है और जिसका नेतृत्व ये हमारा भारत कर रहा है। छोटे-छोटे महाद्वीप उनके साथ भी आर्थिक कॉरिडोर बनाने की दिशा में हमने बड़ी मजबूती के साथ कदम उठाए हैं।
आदरणीय बंधुगण, आदरणीय उपराष्ट्रपति जी, आदरणीय स्पीकर महोदय,
आज हम यहां से विदाई ले करके नए भवन में जा रहे हैं। संसद के नए भवन में बैठने वाले हैं। और ये शुभ है, गणेश चतुर्थी के दिन बैठ रहे हैं। लेकिन मैं आप दोनों महानुभावों को एक प्रार्थना कर रहा हूं, एक विचार आपके सामने रख रहा हूं। मैं आशा करता हूं कि आप दोनों मिल करके उस विचार पर जहां भी जरूरत पड़े मंथन करके कुछ निर्णय अवश्य करिए। और मेरी प्रार्थना है, मेरा सुझाव है कि अब हम जब नए सदन में जा रहे हैं, तब इसकी गरिमा कभी भी कम नहीं होनी चाहिए। इसे सिर्फ पुरानी पार्लियामेंट कह करके छोड़ दें, ऐसा नहीं होना चाहिए। और इसलिए मेरी प्रार्थना है कि भविष्य में अगर आप सहमति दें दोनों महानुभाव, तो इसको संविधान सदन के रूप में जाना जाए। ताकि ये हमेशा-हमेशा के लिए हमारी जीवन प्रेरणा बना रहेगा और जब संविधान सदन कहेंगे तब उन महापुरुषों की याद इसके साथ जुड़ जाएगी जो कभी संविधान सभा में यहां बैठा करते थे, गणमान्य महापुरुष बैठा करते थे, और इसलिए भावी पीढ़ी को ये तोहफा भी देने का अवसर हमें जाने नहीं देना चाहिए।
मैं फिर एक बार इस पवित्र भूमि को प्रणाम करता हूं। यहां पर जो तपस्या हुई है, जनकल्याण के लिए संकल्प हुए हैं, उसको परिपूर्ण करने के लिए सात दशक से भी अधिक समय से जो पुरुषार्थ हुआ है, उन सबको प्रणाम करते हुए मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं और नए सदन के लिए आप सबको शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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