रिजर्व बैंक से मिलेगा केंद्र को नकदी का सहारा
"केंद्र सरकार ने लगातार तीसरी बार अपना राजकोषीय-घाटा कम करने के वास्ते वित्त-वर्ष 2019-20 के लिए रिजर्व बैंक से 10 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त लाभांश माँगा।"
"जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ हो गया था कि सरकार जो चाहेगी उसे आरबीआई को करना होगा।"
नई-दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने विमल जालान समिति की सिफारिशों के आधार पर अतिरिक्त धनराशि हस्तांतरित करने का नया फॉर्मूला पिछले साल स्वीकार किया था, जिससे केंद्र की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार को चालू वित्त वर्ष में 1 लाख करोड़ रुपये मिलेंगे।
बिजनेस स्टैंडर्ड ने उन दस्तावेजों को देखा है, जिससे पता चलता है कि अगर केंद्रीय बैंक ने आर्थिक पूंजी मसौदा (ईसीएफ) स्वीकार किया तो केंद्र को ७३,984 करोड़ रुपये मिलेंगे। ईसीएफ में जोखिम को देखते हुए रिजर्व बैंक के धन रखने के स्तर का निर्धारण किया गया है।
गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाले रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड ने पिछले साल विमल जालान समिति की सिफारिशों को मंजूरी दी थी, जिसने केंद्रीय बैंक के लिए नए ईसीएफ की सिफारिश की है। परिणामस्वरूप रिजर्व बैंक सरकार को कुल 1.76 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित करेगा, जिसमें 1.23 लाख करोड़ रुपये अतिरिक्त नकदी और 52,637 करोड़ रुपये 'अतिरिक्त प्रावधान' के माध्यम से मिलेगा।
दस्तावेजों से पता चलता है कि अगस्त 2019 में हुई रिजर्व बैंक की सेंट्रल बोर्ड की बैठक के पहले ऑडिट एवं जोखिम प्रबंधन उप समिति ने एक बैठक कर रिजर्व बैंक के सालाना बही खाते और सरकार को अतिरिक्त नकदी दिए जाने को मंजूरी दी थी।
इस समिति की अध्यक्षता रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड के सदस्य भरत एन दोशी ने की, जो जालान समिति में भी शामिल थे। ऑडिट समिति में जालान समिति के दो और सदस्य- रिजर्व बैंक बोर्ड के सदस्य सुधीर मनकड़ और रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर एन एस विश्वनाथन भी शामिल हैं।
समिति ने रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड को सिफारिश की है कि ईसीएफ में 'शुद्ध आय 1.23 लाख करोड़ रुपये में से 40 प्रतिशत (49,366 करोड़ रुपये) का जोखिम प्रावधान किया गया है। ऐसे मे सरकार को हस्तांतरित की जाने वाली अतिरिक्त राशि 73, 974 करोड़ रुपये होगी', यह 26 अगस्त 2019 को हुई बैठक के ब्योरे से पता चलता है।
इसमें कहा गया है कि जालान समिति के सुझाए तरीकों का पालन करने पर जोखिम प्रावधानों के तहत राशि हस्तांतरित करने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसे में सरकार को पूरी 1.23 लाख करोड़ राशि हस्तांतरित की जा सकती है। ऑडिट समिति ने आकस्मिक जोखिम भंडार (सीआरबी) बरकरार रखने के मामले में रिजर्व बैंक की बैलेंस सीट में कम बैंड को चुनने का फैसला किया है, ऐसे में रिजर्व से अतिरिक्त हस्तांतरण की राशि 52,637 करोड़ रुपये और हो जाएगी। जालान समिति ने सिफारिश की है कि सीआरबी बैलेंस सीट का 5.5 से 6.5 प्रतिशत होना चाहिए।
सीआरबी और जोखिम प्रावधान की सिफारिशें विश्वनाथन द्वारा तैयार किए गए ज्ञापन का हिस्सा बन चुकी हैं, जिसे रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड के समक्ष मंजूरी के लिए रखा गया था। विश्वनाथन के नोट में रिजर्व बैंक के 'अतिरिक्त प्रावधान' के तहत अलग-अलग राशियों का ब्योरा है, जिसे सीआरबी के विभिन्न स्तरों पर रिजर्व बैंक केंद्र को हस्तांतरित कर सकता है। अगर रिजर्व बैंक ने सीआरबी की ऊपरी सीमा यानी बैलेंस सीट का 6.5 प्रतिशत बहाल करने का फैसला किया है तो अतिरिक्त प्रावधान के तहत केंद्र को सिर्फ 11,608 करोड़ रुपये हस्तांतरित करने होंगे।
रिजर्व बैंक के सेंट्रल बोर्ड की बैठक के ब्योरे से पता चलता है कि 'विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के कुछ पहलुओं की निदेशकों ने जांच की, जिसमें मॉडल रिस्क पर विचार, सीआरबी से जुड़े वैकल्पिक परिदृश्य, बेहतर अंतरराष्ट्रीय कानून और अपॉर्चुनिटी कॉस्ट आदि से जुड़े मसले शामिल हैं।' दस्तावेजों से पता चलता है कि 'सभी मसलों को स्पष्ट किया गया' और बोर्ड ने जालान समिति की रिपोर्ट लागू करने को मंजूरी दे दी।
उपरोक्त जानकारी बिजनेस स्टैण्डर्ड द्वारा प्रकाशित समाचारों में दी गयी है।
यहां यह भी बताना आवश्यक है कि, मीडिया में 28अगस्त 2019 को प्रकाशित खबरों में बताया गया था कि, "शक्तिकांत दास को गवर्नर बनाए जाने पर बीबीसी संवाददाता दिलनवाज पाशा से अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव को गहराई से समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता ने कहा, 'जिस दिन शक्तिकांत दास आरबीआई के गवर्नर बने उसी दिन साफ हो गया था कि सरकार जो चाहेगी उसे आरबीआई को करना होगा।'
ठाकुरता कहते हैं, 'शक्तिकांत दास आईएएस अधिकारी रहे हैं और वो वित्त मंत्रलाय में प्रवक्ता के तौर पर काम करते थे। जब नोटबंदी हुई तो दास ने समर्थन किया था। शक्तिकांत दास दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में इतिहास पढ़ रहे थे। दास ने सरकारी अधिकारी के तौर पर काम किया है। रिजर्व बैंक के पास पैसे का होना बहुत जरूरी है क्योंकि विदेशी मार्केट में कुछ होगा तो रुपया और कमजोर होगा। सरकार के आंकड़े पहले से ही संदिग्ध हैं। इस बात को मोदी सरकार के पूर्व आर्थिक सलाहकार भी उठा चुके हैं।"
(साभार- मल्टी मीडिया)
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