निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय ........
"निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाय", बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय"
कबीरदास जी की उक्त पंक्तियां आमजनमानस की जिंदगी में गजब का सन्देश देती हैं और यदि जीवन मे आत्मसात किया जाय तो व्यक्तित्व और अधिक निखर कर सामने आता है।
इन पंक्तियों का अर्थ है "जो हमारी निंदा करता है उसे अपने अधिकाधिक पास ही रखना चाहिए। वह तो बिना साबुन बिना पानी के हमारी कमियां बता कर हमारे स्वभाव को साफ करता है। अमूमन जिंदगी में इसके विपरीत देखा जाता है। स्वयं की निंदा (कमियां बताने वाले) करने वाले व्यक्ति को सबसे बड़ा दुश्मन समझ कर दूरी बना ली जाती है और लोग प्रयास करते हैं कि उसका अहित कैसे करें। चापलूसए कर्ण-प्रिय व्यक्ति को नजदीक रखकर अपनी प्रशंसा से प्रसन्न सिर्फ अपनी बात रखते हैं और उन्हें लगता है वो जो कर रहे हैं वो सही है। उनकी गलतियों का भान उनके इर्द-गिर्द जमा चाटुकार होने नही देते।
संविधान का चौथा स्तम्भ मानी जाने वाली पत्रकारिता इन्ही पंक्तियों पर चलकर व्यवस्थापिका, कार्यपालिका व न्यायपालिका की कमियां बता कर उन्हें जगाने का कार्य करती थी।
लेकिन डिजिकली युग के उदय होने के बाद तमाम पत्रकार ऐसे जन्मे और उन्होंने कर्ण-प्रिय बनने का मार्ग चुना। अब आये दिन शासन, प्रशासन व सम्पन्न लोगों को खुश करने की खबरे आसानी से देखी सुनी जाती है। उनकी कमियां कम देखने सुनने को मिलती हैं और मिले भी क्यो, क्योंकि कोई अपनी बदनामी कमी व साख पर बट्टा लगने पर बजाय कमियों को सुधारने के निंदक को निशाना बनाना ज्यादा महत्वपूर्ण समझता है।
कमी को सुधारने में दिमाग लगाने के बजाय कमी को छिपाने व निंदक की आवाज दबाने में ज्यादा ध्यान केंद्रित करता है।
इसी तरह निजी/ सरकारी संस्थान हो या शिक्षा के मन्दिर उच्च-पदस्थ लोग अपने मातहतों की जुबान से सिर्फ तारीफ सुनना ज्यादा पसंद करते हैं फलस्वरूप मातहत सही आइडिया देने के बजाय बॉस को खुश करने और जी हुजूरी में विश्वास करते हैं। क्योंकि उन्हें पता है पद की गरिमा क्या होती है। बॉस इस ऑलवेज राइट के फंडे पर चलते रहो नौकरी सेफ रहेगी।
निजी संस्थानों में तो बहुचर्चित कहावत है:
'हाँ' जी की नौकरी, 'ना' जी का घर। तो बॉस के गलत निर्णय पर उंगली उठाकर, कौन अपनी नौकरी खतरे में डाले।
जबकि यह सार्वभौमिक सत्य है कि गलतियां सबसे होती हैं।
कुल मिलाकर कर निंदक को अपने सबसे नजदीक रखना चाहिए और उसकी बातों का बुरा मानने के बजाए कमियों में सुधार का प्रयास होना चाहिए।निंदक ही ऐसा होता है जो सही मायने में व्यक्तित्व को निखारने व विकास का प्रयास करता है।यदि आप गड्ढे में गिर रहे हो तो चाटुकार व्यक्ति आपकी वाह वाह करके और गड्ढे में गिरने के लिए प्रोत्साहित करेगा।सच बोलने की हिम्मत भी आलोचक में ही हो सकती है।इसलिए आलोचक की कभी हिम्मत नही तोड़नी चाहिए ताकि उसकी आलोचना से आपको नित नई सीख मिलती रहे और कमियां दूर कर स्वयं में निखार ला सकें।
(अनिल कुमार श्रीवास्तव)
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