विशेष: स्वच्छता का पर्याय बन पाएगा भारत: अनिल अनूप
आज विशेष में "स्वच्छता" का "विश्लेषण" कर एक रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं पत्रकार- अनिल "अनूप"
आज 90 फ़ीसदी से ज़्यादा घरों में टॉयलेट की सुविधा मौजूद है, जो 2014 के पहले केवल 40 फ़ीसदी घरों में थी। सितंबर 2018 में नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहा था लेकिन विपक्षी पार्टी ने इस परियोजना की आलोचना की थी।
कांग्रेस सरकार में पेयजल और स्वच्छता मंत्री रहे जयराम रमेश ने पिछले साल अक्टूबर में कहा था, "हवाई दावों को सच साबित करने के लिए बड़े पैमाने पर शौचालयों के निर्माण के लक्ष्य को पूरी तरह से भटका दिया"।
स्वच्छ भारत ग्रमीण
इसके तहत गांवों में हर घर में शौचालय बनाने और खुले में शौच मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा गया है।
स्वच्छ भारत शहरी
घरों के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर भी शौचालय हो, ये सुनिश्चित करना इस मिशन का मक़सद है। साथ ही कूड़ा-कचरा प्रबंधन पर भी मिशन में ज़्यादा फ़ोकस है।
भारत में खुले में शौच सालों से चली आ रही समस्या है, जिसकी वजह से कई बीमारियां भी फैलती हैं।
महिलाओं के लिए ये सुरक्षा से जुड़ा मामला भी है, क्योंकि घर में शौचालय नहीं होने की सूरत में महिलाओं को अंधेरे में शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है।
भारत सरकार स्वच्छ भारत मिशन को सफल बताते हुए दावा कर रही है कि लक्ष्य का 96.25 फ़ीसदी काम पूरा हो चुका है।
जबकि अक्टूबर 2014 के पहले केवल 38.7 फ़ीसदी घरों में ही शौचालय थे।
इन आंकड़ों से साफ़ है कि भाजपा के शासन में कांग्रेस के शासनकाल से मुक़ाबले दोगुनी तेजी से शौचालय बने हैं।
भारत के ग्रामीण इलाक़े, कितने खुले में शौच मुक्त हो पाए हैं, उस पर NARSS नाम की एक स्वतंत्र एजेंसी ने सर्वे किया है। नवंबर 2017 और मार्च 2018 के बीच किए गए इस सर्वे में 77 फीसदी ग्रामीण घरों में शौचालय पाए गए और ये भी बताया गया कि भारत में 93.4 फ़ीसदी लोग शौचालय का इस्तेमाल करते हैं।
इस सर्वे में 6,136 गांवों के 92,000 घरों को शामिल किया गया।
स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि देश भर के 36 में से 27 राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश खुले में शौच मुक्त हो गए हैं, जबकि 2015-16 में केवल सिक्किम ही एकमात्र ऐसा राज्य था, जो खुले में शौच मुक्त था।
केन्द्र में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश भर में कितने शौचालय बने इसके कई आंकड़े हैं, लेकिन इसका कोई आंकड़ा नहीं कि बनाए गए शौचालयों का कितने लोग इस्तेमाल करते हैं।
साफ़ है कि शौचालय बनाने का ये मतलब कतई नहीं माना जाए कि उन शौचालयों का इस्तेमाल हो भी रहा है।
नेशनल सैम्पल सर्वे ऑफ़िस के 2016 के आंकड़े के मुताबिक़ दो साल पहले जिन 45 फ़ीसदी घरों में शौचालय थे उनमें से पांच फ़ीसदी घरों में शौचालय का इस्तेमाल नहीं होता था और तीन फ़ीसदी घरों में शौचालयों में पानी का कनेक्शन नहीं था।
2015 में मोदी सरकार ने दावा किया था कि हर सरकारी स्कूल में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग.अलग शौचालय बनाए गए हैं।
लेकिन 2016 की CAG रिपोर्ट के मुताबिक़ 23 फीसदी सरकारी स्कूल में शौचालय की सुविधा है ही नहीं।
स्वच्छ भारत मिशन के कई रिपोर्ट से ये भी पता चला है कि शौचालय बनाने के टारगेट कई साल पुराने है और तब से अब तक काफी धन पानी की तरह बह चुका है।
2018 में गुजरात के स्वच्छ भारत मिशन पर जारी की गई ब्।ळ रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में शौचालय बनाने के टारगेट 2012 के हैं, लेकिन तब से अब तक वहां जनसंख्या भी बढ़ गई है और परिवार की संख्या भी।
इस मिशन की सफलता इस बात पर भी निर्भर करती है कि जनता अपने आप को बदलने के लिए कितनी तैयार है।
भारत में देखा गया है कि अमूमन जो लोग खुले में शौच के लिए जाते हैं उन्हें शौचालय का इस्तेमाल करने से परहेज़ होता है।
हालांकि ये बदलाव कितने लोगों में आया ये पता लगाने का कोई पैमाना ही नहीं है।
उत्तर प्रदेश के बरेली में हाल ही में एक टॉयलेट प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।
इस प्रतियोगिता का आयोजन कराने वाले स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी सतेन्द्र कुमार ने बीबीसी को बताया, "लोगों ने घरों में शौचालय तो बना लिए हैं लेकिन आज भी उसे अपने घर का हिस्सा नहीं मानते हैं। ये समस्या ज़्यादातर घरों में बुज़ुर्गों के साथ है। बुज़ुर्ग घरों में बने शौचालय का इस्तेमाल करने से कतराते हैं"।
इसी साल जनवरी में प्रकाशित स्वच्छ भारत के सर्वे में भी ये बात सामने आई कि बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में लोगों की "आदत में बदलाव" नहीं आ पा रहा है।
मोदी का वडनगर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्मस्थान होने की वजह से गुजरात सरकार द्वारा एक पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित किए जा रहे वडनगर के दलित बहुल्य मोहल्ले श्रो 'रोहितवास' में प्रवेश करते ही स्मार्ट फ़ोन में "वडनगर वाईफाई" का सिग्नल तो दस्तक देगा पर शौच जाने के लिए पूछते ही स्थानीय लोग आपको एक खुले मैदान की तरफ़ ले जाएँगे"।सुमन, हेत्वी, मोनिका, बिस्वा, अंकिता और नेहा वडनगर के रोहितवास में रहने वाली और रोज़ सुबह स्कूल जाने वाली लड़कियां हैं। शौच के बारे में पूछने पर यह सभी लड़कियां हमें अपने मोहल्ले के पास बने एक बड़े से खुले मैदान में ले गयीं और बताया कि उन्हें रोज़ सुबह शौच के लिए यहीं आना पड़ता है।
वडनगर निवासी तीस वर्षीय दक्षा बेन का कहना है कि वडनगर के रोहितवास के सारे गटर खुले हुए रहते हैं। वे कहती हैं, "छोटी के साथ-साथ बड़ी हो चुकी लड़कियों को भी खुले में संडास जाना पड़ता है। न ही हमारे पास रहने के लिए घर हैं और न ही हमारे यहां शौचालय बनवाने अभी तक कोई आया है"।
हालांकि, गुजरात में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता भरत पांड्या इस दावे को ग़लत बताते हैं। उन्होंने कहा, "गुजरात में लोगों का जीवन स्तर सुधरा है। टॉयलेट का काम अच्छी तरह करने के मामले में गुजरात देश में नंबर एक पर है"।
दक्षा के साथ ही खड़ी निर्मला बेन कहती हैं की मोदी सरकार ने उनसे जो भी वादे किए थे, वो अभी तक पूरे नहीं किए गए हैं। हमें कहा था कि, "सबके रहने के लिए घर होगा और शौचालय भी बनवाएं जाएंगे", पर न घर मिले और न ही शौचालय का वादा पूरा किया गया"।
बीते आठ अक्टूबर को सम्पन्न हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वडनगर दौरे का ज़िक्र करते हुए वह आगे जोड़ती हैं, "अब जब चुनाव आ गए हैं तो उनको याद आ गया कि अपने पुराने गांव वडनगर भी घूम आएं, वर्ना इतने सालों में अभी तक कोई भी हमारी फ़रियाद सुनने नहीं आया"।
वडनगर वासियों के अनुसार तीस हज़ार की जनसंख्या वाली वडनगर नगर पालिका में मौजूद लगभग 500 घरों में शौचालयों की व्यवस्था नहीं है।
बिना शौचालय के ज़्यादातर घर वडनगर के दलित तथा अन्य पिछड़ी जाति बाहुल मोहल्ले जैसे रोहितवास, ठाकुरवास, ओडवास, भोयवास तथा देविपूजक वास में मौजूद हैं।
खुली नालियोंए चोक पड़ी गटरों और टूटी फूटी सड़कों के बीच से होते हुए जब मैं रोहितवास में आगे बढता हूँ तो अपने एक.एक कमरों के घर के बाहर ही कपड़े साफ़ करती महिलाओं से बात होती है।
वडनगर को एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के साथ साथ इसे मेडिकल और तकनीकी सुविधाओं से लैस शहर बनाने के लिए केन्द्रीय सरकार ने शहर के विकास से जुड़ी विभिन्न विकास योजनाओं के लिए हाल ही में 550 करोड़ रुपयों के फंड की घोषणा की थी।
इसमें 450 करोड़ रुपयों की लागत से बनने वाला वडनगर का नया अस्पताल और मेडिकल कॉलेज भी शामिल है। पर अपने हाथ में शौच जाते हुए इस्तेमाल होने वला पानी का पुराना लाल डब्बा दिखाती हुई सत्तर वर्षीय मानी बेन के जीवन में इन तमाम घोषणाओं से अभी तक कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं आया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ग्रामीण भारत में शौचालय बनावाने के लिए "स्वच्छ भारत अभियान" के तहत जारी किए गए 1.96 लाख करोड़ के फंड का लाभ अभी तक उनके अपने गृहनगर में नहीं पहुंच पाया है।
उधर, भारतीय जनता पार्टी के गुजरात के प्रवक्ता भरत पांड्या ने बीबीसी से कहा कि शौचालय नहीं होने के दावे ग़लत हैं।
उन्होंने कहा कि सवाल आप किससे पूछ रहे हैं, जवाब उसके आधार पर मिलता है।
पांडया ने दावा किया कि शौचालय होने के बाद भी जिन लोगों की आदतें नहीं बदलीं, वो ही सवाल उठा रहे होंगे।
पांड्या ने कहा, "गुजरात में लोगों का जीवन स्तर सुधरा है। टॉयलेट का काम अच्छी तरह करने के मामले में गुजरात देश में नंबर एक पर है।"
भरत पांड्या को जब बताया गया कि वडनगर में महिलाएं और पुरुष खुले में शौच करने के जाते हैं तो उन्होंने ऐसा मानने से इंकार कर दिया, उन्होंने कहा कि ऐसा तो संभव ही नहीं है और यह जानकारी पूरी तरह से गलत है।
उन्हें वीडियो और तस्वीरों का हवाला भी दिया; तब भरत पांड्या ने कहा, "टाॅयलेट बनाने के संदर्भ में कोई भी इलाका बाकी नहीं रहा होगा, जो लोग बाहर शौच के लिए जा रहे हैं उन्हें अपनी आदत में बदलाव लाना होगा।"
उन्होंने कहा, "हम व्यवस्था देते हैं, सुविधा देते हैं, लोन देते हैं, सब्सिडी देते हैं, टॉयलेट के संदर्भ में कोई क्षेत्र बाकी नहीं रहा होगा। शायद उनकी आदत हम बदल नहीं पाए होंगे।"
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