विशेष: भारत-पाक के बीच एलओसी ट्रेड जारी: माजिद जहांगीर
श्री नगर: भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तनाव और सीमा पर गोलीबारी के बावजूद दोनों देशों के बीच जारी एलओसी ट्रेड पर कोई असर नहीं पड़ा है।
अब से 11 साल पहले जब भारत और पाकिस्तान ने आपस में भरोसा कायम रखने के लिए ये व्यापार शुरू किया, तब 42 वर्षीय अब्दुल रज़ाक़ बेरोजगारी की समस्या से जूझ रहे थे।
लेकिन जब ये व्यापार शुरू हुआ तो रज़ाक़ वो पहले मज़दूर थे जिन्होंने भारत से पाकिस्तान जाने वाले ट्रक में माल को चढ़ाया और पाकिस्तान से आने वाले सामान को उतारने का काम किया।
काफ़ी वक़्त तक यही काम करने के बाद रज़ाक़ अब खुद भी एक ट्रेडर बन चुके हैं।
एक दौर था जब रज़ाक़ के लिए बीस हज़ार रुपये प्रतिमाह कमाना किसी सपने से कम नहीं था।
रज़ाक़ बताते हैं, "अपनी ज़िंदगी में मैंने बहुत ही बुरे दिन देखे हैं", मेरे लिए घरवालों का भरण-पोषण भी एक चुनौती थी। लेकिन मैं अल्लाह का शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होंने मेरी ज़िंदगी बदल दी। ये सिर्फ क्रॉस एलओसी ट्रेड की वजह से हो पाया है। अब मैं हर महीने 15 से 20 हज़ार रुपये कमाता हूं।
इस समय रज़ाक़ के लिए कम से कम 100 मज़दूर काम करते हैं।
अहम है व्यापार लेकिन......
एलओसी ट्रेड से अपनी कमाई बढ़ाने वाले रज़ाक़ मानते हैं कि लोग जब सीमा पार करके अपने रिश्तेदारों से मिलते हैं तो उनके चेहरे पर भावनाओं का समंदर उमड़ता हुआ दिखाई देता है।
वह कहते हैं, "ब्यापार और साप्ताहिक बस सेवा शुरू होने के बाद दोनों ओर के लोग अपने-अपने रिश्तेदारों से मिल सकते हैं। ये उन लोगों के लिए काफ़ी अच्छा था जिनके रिश्तेदार सीमा के दोनों ओर रहते हैं"।
रज़ाक़ बताते हैं कि जब दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ जाता है तो हमें इसका सामना करना पड़ता है।
वो कहते हैं, "जब भी ऐसा कुछ होता है तो हम इसका सामना करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं। आप ये कह सकते हैं कि हम अभी असहाय है। हम वो लोग हैं जो दिन भर काम करने के बाद शाम को खाना खा पाते हैं, और अगर हम एक दिन भी काम न करें तो हमारे लिए अगले दिन के खाने का पैसा नहीं होता है"।
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफ़ी आम है। दोनों ही देश एक-दूसरे पर युद्धविराम का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हैं।
कैसे होता है ये व्यापार
साल 2008 में दोनों देशों ने आपसी भरोसा कायम करने के मकसद से नियंत्रण रेखा के आर-पार व्यापार शुरू किया था।
नियंत्रण रेखा के आर-पार से होने वाले इस व्यापार के तहत सीमा के दोनों ओर आम लोग विनिमय प्रक्रिया के तहत सामान भेजते हैं।
पुंछ ज़िले में लगभग 364 ट्रेडर ये काम करते हैं।
बीती 14 फरवरी को हुए पुलवामा अटैक के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफ़ी बढ़ गया है।
बीते दिनों में पुंछ, उरी, राजौरी समेत कई जगहों पर नियंत्रण रेखा के पार हुई शेलिंग से तीन आम लोगों की मौत हो गई है।
रज़ाक़ की तरह एलओसी ट्रेड की वजह से कृष्ण लाल सिंह जैसे व्यापारियों की आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है।
कृष्ण लाल कहते हैं, "ईमानदारी से कहूं तो जब तक ये व्यापार शुरू नहीं हुआ था, मैं अपने घर का खर्चा नहीं चला पा रहा था। हम तीन भाई थे। हम तीनों ने पुँछ कस्बे में प्रिंटिंग प्रेस का काम शुरू किया। लेकिन इससे भी घर चलाने के लिए पर्याप्त कमाई नहीं हुई। इसके बाद जब एलओसी ट्रेड शुरू हुई तो हमारी ज़िंदगी बदल गई"।
वो कहते हैं, "सेलिंग के टाइम पर हमेशा स्थिति काफ़ी तनावपूर्ण हो जाती है, लेकिन इसके बाद भी हम अपना काम जारी रखते हैं। पुलवामा हमले के बाद भी हमने अपना व्यापार बंद नहीं रखा और हम काम बंद भी नहीं करना चाहते हैं। इससे हमारी ज़िंदगी बदली है और सीमा पार भी यही हाल है"।
लाल सिंह बताते हैं कि जब भी दोनों ओर के ट्रेडर्स के बीच तिमाही मुलाक़ात होती है तो हम इस व्यापार के बेहतर होने की कामना करते हैं।
एक अन्य ट्रेडर अनिल कुमार कहते हैं कि अगर ये व्यापार बंद हो जाता है तो उनकी ज़िंदगी पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
वो कहते हैं, "बीते बुधवार को जब सीमा पर तनाव काफ़ी बढ़ गया तो हमने सोचा कि हमें जम्मू जाकर आधे दामों पर अपना माल बेचना चाहिए।" ये स्थिति काफ़ी दिनों तक जारी रही जिससे हम काफ़ी चिंतित थे।
पुंछ जिले में चाकन दा बाग ट्रेड सेंटर के कस्टोडियन तनवीर अहमद ने बीबीसी को बताया है कि व्यापार आसानी से चल रहा है और अब तक कोई रोक नहीं लगी है।
बीते दस साल में उरी-मुजफ्फराबाद रूट से लगभग 5200 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ है।
बीते साल अगस्त महीने तक 2800 करोड़ रुपये का माल निर्यात किया गया था और 2400 करोड़ रुपये का माल आयात किया गया था।
(साभार- बीबीसी न्यूज)
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