मंत्रिमण्डल ने कंपनी अध्यादेश - दूसरा संशोधन - 2019 को अधिसूचित करने की मंजूरी दी
नई-दिल्ली: मंगलवार को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमण्डल ने कंपनी अध्यादेश (दूसरा संशोधन), 2019 को अधिसूचित करने तथा संसद में इस अध्यादेश के स्थान पर प्रतिस्थापन विधेयक लाने की मंजूरी दी। यह कंपनी अधिनियम 2013 के अंतर्गत अपराधों की समीक्षा करने वाली समिति की अनुशंसाओं पर आधारित है ताकि कंपनी अधिनियम 2013 में वर्णित कॉरपोरेट प्रशासन तथा अनुपालन रूपरेखा के महत्वपूर्ण अंतरों/ कमियों को समाप्त किया जा सके और कानून का पालन करने वाले उद्यमों को व्यापार में आसानी की सुविधा प्रदान की जा सके। इससे कानून का पालन करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा तथा उल्लंघन करने वालों को गंभीर सजा भुगतनी होगी।
ब्यौरा:
कंपनी (संशोधन) विधेयक 2018, जिसे बाद में कंपनी (संशोधन) विधेयक 2019 का नाम दिया गया, को 20 दिसंबर 2018 को लोकसभा में पेश किया गया।
4 जनवरी, 2019 को लोकसभा ने इस पर विचार किया और इसे पारित किया। विधेयक को राज्य सभा में भेजा गया परंतु शीतकालीन सत्र या बजट सत्र के दौरान ऊपरी सदन में इस पर विचार नहीं हो सका और यह पारित भी नहीं हुआ।
कुल 29 धाराओं का संशोधन हुआ और पूर्व अध्यादेश के द्वारा दो नई धाराएं जोड़ी गई जिसे 2 नवंबर 2018 (2018 का अध्यादेश 9) तथा 12 जनवरी 2019 (2019 का अध्यादेश 3) को अधिसूचित किया गया।
संशोधनों में तकनीकी तथा प्रक्रिया संबंधी छोटी गलतियों के लिए सिविल सजा का प्रावधान है। इससे कॉरपोरेट प्रशासन तथा अनुपालन रूपरेखा के अंतर्गत बहुत सारे मामलों की कमियों को दूर किया जाएगा जैसे:-
1. 16 छोटे अपराधों की पुनर्सूची बनाना और इसे पूरी तरह सिविल अपराध की श्रेणी में रखना। इससे विशेष न्यायालयों के मामलों की संख्या में कमी आएगी।
2. एनसीएलटी के कुछ रोजमर्रा कार्याकलापों को केन्द्र सरकार को स्थानांतरित करना जैसे वित्त वर्ष में बदलाव के लिए आवेदन और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी को निजी कंपनी में बदलना।
3. पंजीकृत कार्यालय को संचालित नहीं कर पाने और व्यापार की रिपोर्टिंग नहीं कर पाने जैसी स्थितियों में उनके नाम कंपनी रजिस्टर से हटा दिए जाएंगे।
4. आर्थिक दण्ड लगाने तथा इसे संशोधित करने के लिए कड़े प्रावधानों के साथ निश्चित अवधि को संक्षिप्त करना।
5. निदेशक की अधिकतम सीमा के उल्लंघन को अयोग्यता का आधार बनाना।
प्रभाव:
इन संशोधनों से कॉरपोरेट जगत को कानूनों के अनुपालन में आसानी होगी, विशेष न्यायालयों में मामलों की संख्या में कमी आएगी, एनसीएलटी पर कार्य का बोझ कम होगा और इसका उचित क्रियान्वयन होगा। वर्तमान में कुल 40,000 लंबित मामलों का 60 प्रतिशत प्रक्रियागत त्रुटियों पर आधारित हैं। इन्हें विभाग के आंतरिक व्यवस्था में स्थानांतरित किया जाएगा और उद्यमों को कानून अनुपालन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इन संशोधनों के माध्यम से एनसीएलटी के समक्ष लंबित मामलों की संख्या में कमी आएगी। विशेष न्यायालयों से मामलों को वापस ले लिया जाएगा। इसके लिए आम माफी की योजना लाई जाएगी। प्रक्रिया से जुड़े अपराधों को आपराधिक मुकदमे के स्थान पर सिविल दायित्व की श्रेणी में रखा जाएगा।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार प्रक्रियागत त्रुटियों से संबंधित मामले वित्तीय विवरण जमा नहीं करने तथा वार्षिक लेखा.जोखा पेश नहीं करने जैसी गलतियों पर आधारित हैं। यह अनुभव किया गया कि यदि ऐसे मामलों की फिर से सूची बनाई जाती है और विभाग के अंतर्गत जुर्माना अदायगी के साथ इसे सुलझाने का प्रयास किया जाता है तो विशेष अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में तेजी से कमी आएगी। इससे अधिक गंभीर मामलों की सुनवाई में प्रभावी और तेज प्रगति होगी। इससे कंपनी रजिस्ट्रार को भी गंभीर मामलों पर प्रभावी रूप से कार्य करने की सुविधा मिलेगी। यह भी प्रस्ताव दिया गया है कि कानूनों में संशोधन से यह सुनिश्चित हो सके कि न्याय अधिकारी (कंपनी रजिस्ट्रार) एक निश्चित समय सीमा में मामलों की सुनवाई कर निर्णय दें। इसका कड़ाई से पालन होना चाहिए।
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