लहू बोलता भी है: जंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार: एम• के• एम• हमज़ा
आइए जानते हैं, जंंगे-आजादी-ए-हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार - एम•के•एम• हमज़ा
एम• के• एम• हमजा की पैदाइश सन् 1914 में चेन्नई के कारोबारी खानदान में हुई थी। शुरू में आपने चेन्नई में ही इन्टर तक पढ़ाई की और उसके बाद 30 के दशक में अपने वालिद के साथ रंगून चले गये जहां बिस्कुट का कारोबार करने लगे और साथ ही पढ़ाई भी शुरू कर दी थी। उसी दौरान हिन्दुस्तान की जंगे-आजादी के लिए वहां रहनेवाले हिन्दुस्तानियों में इण्डियन इंडिपेंडेन्स लीग की सरगर्मी शुरू हो गयीं, जिनमें आप भी दिलचस्पी लेने लगे और जंगे-आजादी के लिए जो भी मीटिंगें होतीं उन सब में अहम किरदार निभाने लगे, लिहाज़ा कारोबार व पढ़ाई से आपका ज़हन हट गया।
सन् 1941 से 1942 के बीच रंगून पर कई हमले हुए बमबारी की वजह से बाहर के रहने वाले लोगों मे भगदड़ मच गयी। आपका घराना भी सन् 1942 में थिंगनग्यून (जहां भारतीय मुसलमानों और कुछ हिन्दुओं की भी आबादी पहले से थी) चला गया। वहां भारतीयों के बीच रहकर आज़ादी के आंदोलन में हिस्सेदारी की योजनाएं बनने लगी, इसी बीच नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के आने की ख़बर से हिन्दुस्तानियों में जोश आ गया और उन लोगों ने इकठ्ठा होकर ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ मेयर को मेमोरन्डम दिया। नेताजी तो थिंगनग्यून नहीं आये, लेकिन उनकी आई•एन•ए• की तरफ से मोहम्मद हयात खान को भेजा गया। उन्होंने नेताजी के संदेश को सुनाया। इसके बाद हमजा साहब के साथ कुछ और नौजवान हयात खान के साथ आई•एन•ए• में शामिल हो गये। जब नेताजी की जंग खत्म हो गयी तो हमजा लौट गये। लौटने पर जब आपका मन नहीं लगा, तो परिवार छोड़कर सन् 1960 में चेन्नई आ गये।
हमजा साहब अपने इलाके़ में पुरानी कहानियों के हीरो माने जाते थे और मुक़ामी लोगों में बहुत मशहूर थे। आपने स्वंतत्रता-संग्राम-सेनानियों को मिलनेवाली मरात व सहूलते लेने से इन्कार कर दिया था। 1 जनवरी सन् 2016 को स्वंतत्रता-सेनानी व आजाद हिन्द फ़ौज के इस नायक ने अपने छोटे से मकान में अपनी आखिरी सांसें लीं और 102 वर्ष की उम्र में आप इन्तक़ाल कर गये।
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