आधार : नियामकीय अनिश्चितता पड़ रही ई-हस्ताक्षर पर भारी
नयी दिल्ली: यह माना जा रहा था कि इलेक्ट्रॉनिक सत्यापन और ई-हस्ताक्षर से भारतीय कंपनी जगत के लिए ग्राहकों को जोडऩा और सत्यापन करना आसान हो जाएगा। हालांकि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) की तरफ से नियमों में बार-बार बदलाव किए जाने का मतलब है कि कंपनियों को आधार पर निर्भर होना मुश्किल लगने लगा है। एक समय आधार पर आधारित ई-हस्ताक्षरों को बिना किसी कागजी कार्रवाई के ग्राहकों को जोडऩे और सत्यापन के लिए विश्वसनीयता का स्वर्ण मानक माना गया था। आधार ई-हस्ताक्षर शुरू होने पर कंपनियां यह मान रही थीं कि उनकी लागत में भारी कमी आएगी और धोखाधड़ी की आशंका भी कम हो जाएगी क्योंकि प्रत्येक हस्ताक्षर यूआईडीएआई के डेटाबेस से डिजिटल रूप से सत्यापित है।
वित्तीय सेवा क्षेत्र में दर्जनों ग्राहकों को ई-हस्ताक्षर सेवा मुहैया कराने वाली दो कंपनियों के मुताबिक ई-हस्ताक्षर के इस्तेमाल में भारी गिरावट दर्ज की गई है। इन कंपनियों में से एक ई-मुद्रा की एक समय 50 फीसदी से अधिक बाजार हिस्सेदारी थी। हालांकि अब कंपनी ने ई-हस्ताक्षर से जुड़े राजस्व में भारी गिरावट दर्ज की है। ई-मुद्रा के एक वरिष्ठ कार्याधिकारी ने कहा कि आधार पर आधारित ई-हस्ताक्षर का उसका राजस्व पिछले साल 13 फीसदी था, लेकिन यह इस साल करीब शून्य रहने का अनुमान है।
सवाल पैदा होता है कि पिछले एक साल में क्या बदल गया है? उद्योग से जुड़े लोग यह बदलाव नियमन बताते हैं। उदाहरण के लिए ई-मुद्रा ने इस साल की शुरुआत तक 4.5 करोड़ ई-हस्ताक्षर किए थे, लेकिन पिछले पांच महीनों में इसकी संख्या में बड़ी गिरावट आई है। अधिकारी ने कहा, 'नियमनों को लेकर अनिश्चितता और उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों से आधार ई-हस्ताक्षर की मांग और आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है।' ईमुद्रा के संस्थापक चेयरमैन वी श्रीनिवासन यह स्वीकार करते हैं, 'ईमुद्रा के लिए ई-हस्ताक्षर एक छोटा कारोबार है।'
कंपनियों द्वारा वर्चुअल आईडी के इस्तेमाल से संबंधित नियमों में बार-बार बदलाव से नियामकीय अनिश्चितता पैदा हो रही है। कोई भी ग्राहक एक दिन में एक वर्चुअल आईडी सृजित कर सकता है, लेकिन वर्चुअल आईडी के अनिवार्य इस्तेमाल से संबंधित यूआईडीएआई के नियम लगातार बदल रहे हैं। यूआईडीएआई ने 11 जनवरी को एक परिपत्र के जरिये घोषणा की थी कि कंपनियों को आधार संख्या के बजाय वर्चुअल आईडी स्वीकार करने की दिशा में बढऩा चाहिए। इस परिपत्र में कहा गया कि 1 जून तक सभी सत्यापन उपयोगकर्ता एजेंसियों (एयूए) को आधार संख्या की जगह वर्चुअल आईडी स्वीकार करनी होंगी।
प्राधिकरण ने आधार का इस्तेमाल करने वाली एजेंसियों को वैश्विक और घरेलू एयूए में 16 मई को वर्गीकृत किया था। अब प्राधिकरण ने कहा है कि स्थानीय एयूए के लिए ओटीपी आधारित सत्यापन के लिए वर्चुअल आईडी का इस्तेमाल करना जरूरी है, जबकि वे अब भी बायोमेट्रिक सत्यापन के लिए आधार संख्या का इस्तेमाल कर सकती हैं। हालांकि वे इन संख्याओं को स्टोर नहीं कर सकतीं। इस परिपत्र की अनिवार्य अनुपालना के लिए अंतिम तिथि एक महीने बढ़ाकर 1 जुलाई, 2018 की गई थी।
इसके बाद जल्द ही 29 जून को यूआईडीएआई ने एक अन्य परिपत्र जारी किया। इसमें कहा गया कि वैश्विक एयूए को भी अपनी ऐप्लीकेशन विकसित इस तरह विकसित करनी चाहिए कि अगर उनका वर्गीकरण बदल भी जाए तो उनकी आधार आधारित सेवाएं जारी रहें। इस मुद्दे पर बिज़नेस स्टैंडर्ड की तरफ से यूआईडीएआई को भेजे गए सवालों का कोई जवाब नहीं मिला। जो कंपनियां बहुत से पक्षों के साथ लेनदेन करती हैं, जहां प्रक्रिया के विभिन्न स्तरों पर ग्राहक के ई-हस्ताक्षरों की जरूरत पड़ती है, उनके लिए वर्चुअल आईडी अवैध हो जाती है क्योंकि इससे आधार संख्या का पता नहीं लगाया जा सकता। साइनडेस्क के सामने यही दिक्कत आई थी। साइनडेस्क भी आधार ई-हस्ताक्षर मुहैया कराती है।
साइनडेस्क के सीईओ कृपेश भट ने कहा, 'यह प्रक्रिया एक आदमी के लिए बहुत जटिल है। एक यूजर को तीसरे पक्ष के पास जाना होगा, इसे जनरेट करना होगा और फिर हमारी ऑनबोर्डिंग प्रक्रिया पर आना होगा।' भाट ने कहा कि उनके प्लेटफॉर्म पर ई-हस्ताक्षर की संख्या में 25 से 30 फीसदी कमी आई है। उन्होंने कहा कि जब तक इस मुद्दे पर यूआईडीएआई की तरफ से स्पष्ट दिशानिर्देश जारी नहीं कर दिए जाते और उच्चतम न्यायालय आधार की संवैधानिक वैधता का फैसला नहीं करता है, तब तक यह मुद्दा हल नहीं होगा।
उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि बहुत सी कंपनियों ने आधार स्वीकार करने के बुनियादी ढांचे की जगह वर्चुअल आईडी का बुनियादी ढांचा अपना लिया है। लेकिन अब वर्चुअल आईडी की तारीख आगे बढ़ा दी गई है, इसलिए उन्हें फिर से आधार को अपनाना होगा। लेकिन साथ ही वर्चुअल आईडी को स्वीकार करने के लिए तैयार भी रहना होगा।
(साभार- बी.एस.)
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