लहू भी बोलता है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मोहसिने-मिल्लत मौलाना मोहम्मद हामिद अली फारूक़ी
आईये जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मोहसिने-मिल्लत मौलाना मोहम्मद हामिद अली फारूक़ी को .........
मोहसिने-मिल्लत मौलाना मोहम्मद हामिद अली फारूक़ी:
मौलाना मोहम्मद हामिद अली फारूक़ी की पैदाइश मई सन् 1889 में जंघई (इलाहाबाद) में हुई थी। आपका खानदान बसिलसिले तबलीग़े इस्लाम हरमैन शरीफ से इलाहाबाद तशरीफ लाया था और यहां की सकूनत अख़्तयार कर ली थी। आपके वालिद का नाम मौलाना हाजी मोहम्मद शाकिर अली फारूकी था। आपकी दीनी तालीमों-तरबियत उस दौर के मशहूर मदारिस और आलिमों के ज़ेरे निगरां हुई। फ़रागत के बाद आपने दीनी और सियासी मैदान में अपनी क़ाबिलियत से वो मुक़ाम हासिल किया, जो इतने कम वक़्त में किसी-किसी को ही नसीब होता है। आपकी सरगर्मियों का दायरा बहुत वसी था। आपने मस्ज़िद-मदरसों और ख़ानकाहों के साथ क़ौम के हक की बात सियासत के गालियारों तक बाआवाज़ बुलन्द पहुंचायी। अंग्रेज़ हुकमरां से आखों-में-आंखे डालकर अपनी बात कहने का अंदाज़ आपका उस दौर में लोगो की जुबान पर रहा करता था। हमेशा हक़ के लिए लड़े चाहे वो क़ौमी मामला हों। या समाजी।
आपका मानना था कि मज़हब का इस्तमाल सियासत के लिए नहीं होना चाहिए। बल्कि सियासत से मज़हबी मामले हल करने को तरजीह दी। मुल्क की जंगे-आज़ादी में आपने एक तंज़ीम बनाकर क़दम रखा जिसका नाम मुस्लिम मुत्तहदा महाज़ था। इस तंज़ीम के ज़रिये मध्य प्रदेश (मौजूदा छत्तीसगढ़) के मुसलमानों को इकट्ठा किया और आज़ादी की लड़ाई के लिए तैयार मंसूबे के मुताबिक़ हिदायते देकर लोगों को शहरों और दूरदराज़ के इलाको में वालेंटियरी फ़ौज में शामिल कराने का काम सौंपा और खुद हर जगह जाकर उसकी तैयारी का ज़ायज़ा लिया इस मुहिम में सभी मज़हब के लोगो को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने की दावत दी।
आपकी प्लानिंग के तहत जब तैयारी पूरी हो गयी तब आपने दूसरे दिन अंग्रेज़ छावनी पर हमला बोलने का प्रोग्राम तय किया। रात में ही अंग्रेज़ी फ़ौज को ये खबर लग गयी और अंग्रेज़ अफ़सरों ने बड़ी तादाद में फ़ौज लेकर आपका घर घेर लिया; तलाशी ली; लेकिन मौके पर कोई भी असलहा या गैरकानूनी चीज़ दस्तयाब नहीं हुई; फिर भी आपको रात में ही गिरफ्तार कर लिया ये वाक़िया फरवरी सन् 1922 का है। आपको रायपुर सेंट्रल जेल में बन्द कर दिया जहां आप पर कोड़े बरसाये गये जिस्म लहूलुहान कर दिया लेकिन आपकी जुबान से कुछ उगलवा नहीं सके। हफ्तो तरह-तरह की अज़ीयते देते और बग़ावत का राज़ मालूम करते। जब कुछ हासिल न कर सके तो कैद खाने में डाल दिया। आप जेल में भी कैदियों को मुल्क की आज़ादी के लिए तबलीग़ किया करते।
सज़ा पूरी हेने के बाद जब आप जेल से रिहा किये गये तो रायपुर की अवाम एक भीड़ की शक्ल में आपका ख़ैर मक़दम करने को तैयार खड़ी थी। रिहाई के बाद आपको छत्तीसगढ़ (मध्य प्रदेश) की अवाम ने अपना रहनुमा और क़ायद तसलीम कर लिया। आपकी शोहरत जब गांधीजी तक पहुंची तो वो खुद सन् 1929 में आपसे मिलने आये तक़रीबन घंटो बातचीत हुई और आज़ादी की लड़ाई के लिए राय-मशविरा हुआ। इसके बाद तो हर तहरीक में आपकी क़यादत में अवाम सड़को पर दिखायी देती थी।
सन् 1930-31 के अदमताऊन तहरीक से लेकर सन् 1942 के अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन तक आप हर जद्दोजहद में पेशोपेश रहे और जेल आते-जाते रहे। आपकी शख़्सियत और मक़बूलियत की बिना पर फिर अफ़सरों ने बेचा ज़्यादती की हिम्मत नही जुटा सके।
आपकी इस ख़िदमात के लिए आज़ादी की पचासवीं सालगिरह के मौके पर मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह ने आपके परिवार को सम्मानित कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का सार्टिफिकेट दिया। मौलाना हामिद अली फ़ारूक़ी साहब ने मुल्क बंटवारे के वक़्त छत्तीसगढ़ (मध्यप्रदेश) के मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए बहुत कोशिशें की उनकी कोशिशों के नतीजे में रायपुर व एतराफ़ से बहुत कम तादाद में मुसलमान पाकिस्तान गये आपकी इन कोशिशों का ज़िक्र मौलाना आज़ाद ने भी अपनी किताबों में किया है।
आप मौलाना मोहम्मद अली जौहर के साथ भी जेल में रहे। मौलाना की सियासी अहमियत इस बात से भी ज़ाहिर होती है कि मुल्क आज़ाद होने के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आपको मशविरे के लिए दावतनामा भेजा। ऐसे अज़ीम आलिम व मुजाहिदे-आज़ादी के नाम और क़ुर्बानी को तारीख़ी किताबों में मुनासिब जगह न मिलना भी किसी सोची समझी साजिश की ओर ईशारा करती है। हिन्दुस्तान को दौलते-आज़ादी से मालामाल कराने वाला अज़ीम मुजाहिद 25 अप्रैल सन् 1968 को दुनिया से विदा ले लेता है।
swatantrabharatnews.com