72 वाॅ स्वाधीनता दिवस 2018: स्वतंत्रता दिवस में उपेक्षित होते गाॅधी: रघुठाकुर
नयी दिल्ली: देश में 72 वाॅ स्वाधीनता दिवस हर्ष-उल्लास के साथ मनाया गया। वैसे स्वाधीनता दिवस का आना-जाना एक नियमित वार्षिक प्रक्रिया है और पर्व के रुप में भी इसे देश और हम लोग प्रतिवर्ष मनाने की औपचारिकता निभाते हैं। परन्तु इस बार रघु ठाकुर, जो देश के महान समाजवादी चिंतक व विचारक के साथ- साथ राजनैतिक पार्टी- लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक और वर्तमान में राष्ट्रीय संरक्षक भी हैं, इस बार मनाये गए स्वाधीनता दिवस से बहुत ही आहत हुए हैं और लेख के जरिये अपने खट्टे- मीठे अनुभव को सार्वजनिक करना आवश्यक ही नहीं बल्कि इस देश-हित में आवश्यक भी समझते हैं।
स्वतंत्र भारत न्यूज़ के साथ साझा किये गए रघु ठाकुर के खट्टे- मीठे अनुभव और लेख को उन्ही के शब्दों में निचे प्रस्तुत किया जा रहा है:-
देश में 72 वाॅ स्वाधीनता दिवस हर्षउल्लास के साथ मनाया गया। वैसे स्वाधीनता दिवस का आना-जाना एक नियमित वार्षिक प्रक्रिया है और पर्व के रुप में भी इसे देष और हम लोग प्रतिवर्ष मनाने की औपचारिकता निभाते है।
परन्तु इस 72वें स्वतंत्रता दिवस के दौरान कुछ खट्टे-मीठे अनुभव हुये है जिन्हें मैं सार्वजनिक रुप से दर्ज कराना आवश्यक मानता हूँ।
एक तो यह कि इस स्वतंत्रता दिवस के सरकारी और गैर सरकारी विज्ञापनों में अमूमन या कम से कम जितने अखबार मैंने देखे है उसमें महात्मा गाॅधी का चित्र नजर नही आया। सरकारी विज्ञापनों में प्रधानमंत्री और सब राज्यों के विज्ञापनों में मुख्यमंत्री व मंत्रियों के चित्र छपे, परन्तु इन विज्ञापन में इस महानायक का चित्र नही था। जिसके योगदान के बगैर शायद यह स्वतंत्रता दिवस देशवासियों को देखने को नही मिलता।
वैसे तो 15 अगस्त को डा.लोहिया इसे सत्ता-हस्तांतरण का दिवस यानि जिस दिन अंग्रेजो ने यहाॅ के तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व को, जो लगभग गाॅधी रहित थी को विभाजित देश की सत्ता सौंपी और 15 अगस्त के एक दिन पूर्व यानि 14 अगस्त को उन्ही अंग्रेजो ने पाकिस्तान को भी सत्ता सोंपी थी।
महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 को बंगाल के नोआखाली में थे और अपनी जान को जोखिम में डालकर हिन्दु और मुसलमानों को एकजुट रखने और दंगो से बचाने के कार्य में लगे हुये थे। महात्मा गाॅधी को 15 अगस्त के सत्ता-हस्तांतरण जलसे में आकर आशीर्वाद देने का निमंत्रण तत्कालीन चयनित प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेेहरू एंव प्रथम गृहमंत्री स्वः वल्लभ भाई पटेल के संयुक्त हस्ताक्षरों से हस्ताक्षरित पत्र, जिसे लेकर एक विशेष दूत दिल्ली से नोआखाली पहॅुचा और महात्मा गांधी ने जवाहरलाल, वल्लभ भाई पटेल के द्वारा भेजे पत्र के पीछे लिख कर भेजा कि मुझे यहाॅ होना चाहिये,मैं ठीक हॅू और पत्र वही दूत को वापिस किया था। इतना ही नही जब वह दूत वापिस जाने लगा तो महात्मा गांधी ने नीम के सूखे पत्ते उठाकर उसे दिये और कहा कि यह जवाहरलाल को भेंट देना और कहना कि गाॅधी एक गरीब आदमी है, जिसके पास भेंट देने के लिये इसके अलावा कुछ नही है । यह सुनकर दूत के आॅसू फूट पड़े और आॅसूओं से पत्ते भीग गये। गाॅधी ने कहा कि ईश्वर कितना कृपालू है कि वह नही चाहता कि जवाहर लाल को सूखे पत्ते दिये जाये इसलिये पत्तो को आसूॅओ ने गीला कर दिया।
महात्मा गांधी 15 अगस्त 1947 को बंगाल के नोआखाली में थे, कुछ झलकियां:-
डा. लोहिया कहते थे कि हिन्दुस्तान की आजादी का सच्चा दिन तो 9 अगस्त है जिस दिन महात्मा गाॅधी के कहने पर देश में ’’करो या मरो’’ आंदोलन प्रारम्भ हुआ था और भारतीयों ने अपने आपको अंग्रेजी हुकूमत से स्वतः मुक्त कर लिया था। दरअसल 9 अगस्त भारतीयों की मानसिक आजादी का दिन था और गाॅधी के सिद्वांत के अनुसार स्वतंत्रता का दिन था। जिसमें वे कहते थे कि, अंग्रेजो ने हमें गुलाम नही बनाया है बल्कि हम स्वतः दास बने है जिस दिन हम मान ले कि हम आजाद है उस दिन उपने आप आजाद हो जायेगे। उस महानायक की उपेक्षा न केवल सरकारी विज्ञापनों में हुई बल्कि देश के निजी और दलीय विज्ञापनों में भी हुई। कुछ वर्ष पहले तक सरकारी विज्ञापनो के साथ-साथ निजी विज्ञापनों में भी सबसे ऊपर पहले गाॅधी का चित्र होता था, इस बार गांधी वहाॅ भी नही है। अमूमन 15 अगस्त, एंव 26 जनवरी के पर्व पर पार्टियों के नेता जो समर्थ है अखबारो में स्वतंत्रता दिवस की बधाई के विज्ञापन छपवाते है। मैंने ध्यान से आज न केवल भाजपा बल्कि कांग्रेस के नेताओं और पदाधिकारियो के विज्ञापनों को बारीकी से देखा। प्रदेश की राजधानी भोपाल के 4 अखबार मैंने देखे और किसी भी दल के पदाधिकारी के विज्ञापन में जहाॅ उनकी अपनी पार्टी नेताओं के चित्र थे फोटो पर वहाॅ भी गांधी जी नही थे । मैं यह भी जानता हॅू कि, अमूमन नेताओं के विज्ञापन नेता स्वतः नही निकालते बल्कि उनके उपकृत लोग, अनुयायी या पत्रकार भाई स्वतः बना देते है। परन्तु आश्चर्य है कि, इनमें भी किसी को अपने गांधी की याद नही आई। यह परिवर्तन मात्र चित्र परिवर्तन नही बल्कि चित परिवर्तन है। याने देश के और समाज के मनों में जो बदलाव आ रहे है इसे उसकी एक छोटी झलक मान सकते है।
इस बार के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मैंने यह भी महसूस किया कि मुसलमान भाईयों ने बड़े पैमाने पर और जहाॅ उनकी आबादी है वहाॅ अमूमन चैराहो पर स्वतत्रंता दिवस का झंडा फहराया है। मुस्लिम बच्चे भी आज इसी प्रकार साफ सुथरे कपड़ो में सफेद दिखे जिस प्रकार आमतौर पर वह ईद के पर्व पर नये धुले कपड़े पहन कर निकलते हैै। हो सकता है कि, षंकालू और संकीर्ण मानसिकता के लोग इसका यह उत्तर दें कि यह तो प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी के द्वारा पैदा किये गये भय के कारण है परन्तु यह एक उल्लेखनीय बदलाव है और मैं इस घटना से यह निष्कर्ष निकालता हॅू कि भारतीय मुस्लिम समाज अब यह अनुभव कर चुका है कि भारतीय लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ संभावनाओं वाली व्यवस्था है। मैंने जब दो-तीन साल के बच्चों को अपने माता-पिता के साथ सफेद कपड़े पहने हुये और हाथ में तिरंगा झंडा लिये देखा तो मेरा मन इस विष्वास से भर गया कि अब मुल्क की एकता अखण्डता और ताकत को कोई कमजोर नही कर सकता।
15 अगस्त का इस बार का पर्व जिस प्रकार सुरक्षा व्यवस्थाओं से आक्रांत था यह भी एक नया बदलाव है। पिछले कई दषको से देष की राजधानी दिल्ली विषेषतौर से पुलिस सुरक्षा से चाक चैबंद रहती थी तथा 15 अगस्त को लाल किले पर प्रधानमंत्री के भाषण और वापसी के बाद तक लगभग सारी दिल्ली स्थिर हो जाती थी। यहाॅ तक कि रेल गाड़ियो को भी दिल्ली के बाहरी स्टेषनो के आसपास रोक दिया जाता था और आमतौर पर दिन के 12 बजे के बाद रेलो, विमानो या कार से चलने वालो को अनुमति मिलती थी। यह सब सुरक्षात्मक उपाय इस बार भी हुये परन्तु इस बार सुरक्षात्मक तैयारियाॅ 12 अगस्त से आमजन पर लागू कर दी गई।
12 अगस्त को मैं स्वतः दिल्ली में था तथा लालकिले से लेकर लुटियन दिल्ली तक तो लगभग कफ्र्यू के हालात थे। पुलिस ने सारी दुकानें बंद कर दी, सड़को पर से गाड़ियाॅ उठा ली गई, कोई सूचना नही, एक अघोषित कर्फ्यू जैसा लग गया। घरो के सामने रखी गाड़ियाॅ पुलिस उठाकर ले गई बाद में किसी वैधानिक कार्यवाही के भय से अपराधी सिद्व करने के लिये 300 - 300 रुपये के जुर्माने की स्लिप दे दी गई। मैंने इस संबध में फेसबुक पर टिप्पणी लिखी तो कुछ मित्रो ने सवाल किया कि क्या आप प्रधानमंत्री की सुरक्षा नही चाहते? जिसके लिये यह कदम उठाये गये । मुझे उनकी इन टिप्पणियों पर कतई आष्चर्य नही हुआ क्यांेकि मैं महसूस कर रहा हॅू कि देश का आम मानस दलीय कटघरो और व्यक्ति की चाटूकारता के मोह पाष में बंध गया है। मैंने उनको लिखा कि मैं प्रधानमंत्री की सुरक्षा चाहता हॅू परन्तु उन्हें तो 15 अगस्त को प्रातः निकलना है और आज 12 अगस्त है तीन दिन पहले से सुरक्षा के नाम पर दिल्ली को केैद खाना बना देना क्या यह उचित है? मैं उन मित्रों को धन्यवाद देता हॅॅू कि जिन्होंने इस पर शायद मूक सहमति व्यक्त कर दी।
सत्ताधीशों की सुरक्षा एक चिंताजनक स्थिति में पहॅुच चुकी है न केवल इसलिये कि उनकी सुरक्षा व्यवस्था पर लाखो करोडो से लेकर अरबो रुपया जनता के खजाने से खर्च किया जा रहा है बल्कि इसलिये भी कि आज सुरक्षा के नाम पर इतनी बंदिशें लगाई जा रही है कि आम आदमी कि स्वतंत्रता बाधित और खंडित हो रही हैै।
मैं इन सत्ताधीशों से दो बाते कहना चाहॅूगा:-
1. यह कि यह सुरक्षा व्यवस्था आपको आम जन से दूर कर रही है आमजन इस सुरक्षा व्यवस्था से आंतकित व भयभीत है तथा सत्ताधीष सुरक्षा कवच में कैदी जैसे बनकर मौत से भयभीत है। यह सुरक्षा व्यवस्था समूचे राष्ट्र को निर्भय राष्ट्र के बजाय भयभीत राष्ट्र में तब्दील कर रही है। महात्मा गांधी के ऊपर उनकी मृत्यु के पहले भी कई हमले हो चुके थे परन्तु उन्होंने मृत्यु का वरण किया सुरक्षा लेना कभी कबूल नही किया। जो मौत से डरता है वह तो ज़िंदा रहते हुये भी मर जाता है।
2. जनता के प्रतिनिधियों को जनता से भय क्यों? जिस जन विष्वास ने उन्हें सत्ता के ष्षीर्ष तक पहॅुचाया है क्या उससे भी अधिक सुरक्षा पुलिस या फौज दे सकती है। 15 अगस्त आजादी का दिवस है और आजादी सदैव उत्तरदायी होती है। आजादी का मतलब अपराध, हिंसा, नषा या भ्रष्टाचार की आजादी नही है बल्कि आजादी का मतलब एक ऐसे आजाद देष का निमार्ण जिसका हर नागरिक अपनी आजादी कायम रखने के लिये हर कुर्बानी देने को तैयार हो और दूसरे की आजादी में भी हस्तक्षेप न करे। क्या हम इस सच्ची आजादी को लक्ष्य मानते हैै?
लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक ही सिक्के के दो पहलू है। सत्ता के द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी को दबाना और नागरिक के द्वारा सत्ता को खुश करने या सत्ता के आंतक से भयभीत होकर चुप हो जाना ये दोनो ही समान अपराध है और देश की सत्ता और जनता दोनो इसके अपराधी है। आइये इस आजादी को महानायक गांधी की कल्पना के भारत निर्माण का आधार बनाये।
रघु ठाकुर
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(Photo साभार- alomy stock photo)
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