लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- सैय्यद शाह क़ादरी बियाबानी.
आईये जानते हैं आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- सैय्यद शाह क़ादरी बियाबानी को......
सैय्यद शाह क़ादरी बियाबानी:
सैय्यद शाह क़ादरी बियाबानी की पैदाइश सन् 1894 में कुर्नूल (आन्ध्रप्रदेश) के एक रईस खानदान मंन हुई थी। आपके वालिद का नाम डा. ग़ौस पीर काद़री बियाबानी था, जो कि मशहूर डॉक्टर थे और जिन्हें लोग अल्लाह साफ़ी के नाम से भी बुलाते थे। आपकी वालिदा का नाम रूक्क़ैया बीबी था। आपने हाईस्कूल तक कमबुम हाईस्कूल से पढ़ाई की, फिर उसके बाद प्रेसीडेंसी कॉलेज (मद्रास) से ग्रेजुएशन किया और लॉ करने के लिए एग्लों ओरियन्टल कॉलेज (अलीगढ़) गये।
अलीगढ़ में पढ़ने के ज़माने में ही आपकी डा. ज़ाकिर हुसैन साहब से मुलाकात हुई। उनके जे़रेअसर आप इण्डियन नेशनल मूवमेंट की तरफ बढ़े और मूवमेंट के हिस्सा बन गये। वैसे शुरू से ही आप ब्रिटिश हुकूमत के ख़िलाफ़ थे। आंदोलन में लगने के बाद आप अंग्रेज़ों की मुख़ालिफ़त का कोई मौका गवांते नहीं थे। एक मीटिंग के दौरान आपको गिरफ्तार कर लिया गया। आपकी गिरफ्तारी के खिलाफ कांग्रेस के बड़े नेताओं ने एतराज़ किया- यहां तक कि आपकी रिहाई के लिए डा. राजेन्द्र प्रसाद ने तीन दिनों तक भूख-हड़ताल की।
इसके बाद एक आंदोलन में बियाबानी साहब फिर गिरफ्तार हुए और आगरा जेल भेजे गये, जहां पहले से ही मौलाना आज़ाद बन्द थे। आपकी उनसे बहुत बेतकल्लुफ़ी हो गयी।
सैय्यद शाह बियाबानी तेलगू, कन्नड़, तमिल, उर्दू और अंग्रेज़ी ज़ुबान के बहुत जानकार थे। मौलाना आज़ाद ने अपनी किताब तफ़सीरे-क़ुरान के लिए आपसे मदद ली। क़ानून की डिग्री लेने के बाद जब आपको अंग्रेजी़ हुकूमत की तरफ़ से डिप्टी कलक्टर की नौकरी मिली तो आपने यह कहकर इंकार कर दिया कि मैं जिसके ख़िलाफ़ लड़ रहा हूं, उसकी गुलामी कतई नहीं कर सकता।
आपने सन् 1923 में इण्डियन नेशनल फ्लैग मूवमेंट में हिस्सा लिया। बियाबानी साहब कहते थे कि मैं एक मुसलमान हूं। मैं अपने मज़हब और अपने अल्लाह की इज़्ज़त करता जरूर हूँ, लेकिन मुझे अपने को हिन्दुस्तानी कहते हुए फ़क्र होता है। आप महात्मा गांधीजी के ख़्यालों और विचारों को बहुत महत्व देते थे। गांधीजी ने जब आंदोलन के लिए मदद की अपील की, तो आपने 500 एकड़ ज़मीन दान कर दी। यही नहीं, मुल्क आज़ाद होने के बाद भी अवामी काम के लिए आपने सरकार को अपनी बची हुई 15 एकड़ ज़मीन भी मुफ्त में दे दी। सरकार ने आपको स्वतंत्रता-सेनानी के सम्मान से सम्मानित किया। आप आन्ध्रप्रदेश लेजिसलेटिव कौंसिल के मेम्बर भी रहे। आप 1 अक्टूबर सन् 1969 को दुनिया से विदा हुए।
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