सुप्रीम कोर्ट से राहत के बावजूद चिंतित क्यों हैं आम्रपाली के होम बायर्स
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में आम्रपाली बिल्डर के कई प्रोजेक्ट फंसे हुए हैं. कंपनी की वादाखिलाफी और समय पर घर न देने की वजह से उसके निवेशकों और खरीदारों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
नयी दिल्ली: भारत सरकार के प्रतिष्ठित उद्यमों में से एक नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनबीसीसी) ने आम्रपाली ग्रुप के 42 हजार होम बायर्स के चेहरे पर खुशी ला दी है. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनबीसीसी ने आम्रपाली ग्रुप के लगभग एक दर्जन अधूरे प्रोजेक्ट्स का अध्ययन का काम शुरू कर दिया है. बता दें कि गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि एनबीसीसी आम्रपाली ग्रुप के सभी अधूरे प्रोजेक्ट्स का अध्ययन कर 30 दिनों में रिपोर्ट सौंपे. नोएडा, ग्रेटर नोएडा में आम्रपाली ग्रुप के कई प्रोजेक्ट्स पिछले आठ-दस सालों से कंप्लीशन से कोसों दूर हैं. 42 हजार फ्लैट्स का आवंटन अब तक नहीं हो पाया है. कंप्लीशन नहीं मिलने के कारण ही कुछ बायर्स पिछले साल सुप्रीम कोर्ट की शरण में पहुंचे थे.
पिछले कुछ दिनों से आम्रपाली ग्रुप के इन लटके प्रोजेक्ट्स को लेकर मीडिया में कई तरह की बातें सामने आ रही थी. सरकार और कोर्ट दोनों की तरफ से स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण खरीदारों के मन में कई तरह की शंकाएं भी पैदा होने लगी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दिए अपने आदेश में इन शंकाओं पर काफी हद तक विराम लगा दिया है.
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस यू.यू. ललित और अरुण मिश्रा की बेंच ने एनबीसीसी को 30 दिनों का समय दिया है, जिसमें प्रोजेक्ट्स को पूरा करने का प्रपोजल देना है. कोर्ट ने कहा है कि होम बायर्स का पैसा जो आम्रपाली ग्रुप ने अब तक लिया है उसको भी एनबीसीसी को दिया जाएगा. कोर्ट ने साथ में यह भी कहा है कि प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए होम बायर्स और आम्रपाली ग्रुप दोनों एनबीसीसी की मदद करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद माना जा रहा है कि एनबीसीसी आम्रपाली ग्रुप के सभी लटके प्रोजेक्ट को पूरा करने का मन बना लिया है, लेकिन एनबीसीसी का क्या रुख होगा और होम बायर्स पर कोई और अतिरिक्त बोझ तो नहीं पड़ेगा. इन बातों को लेकर होम बायर्स के मन में कई सवाल उठने लगे हैं.
एक तरफ तो सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख से आम्रपाली ग्रुप के होम बायर्स को राहत मिली है लेकिन दूसरी तरफ स्थिति अब भी ड्रमड्रोल वाली ही है? इस मामले को लेकर शुक्रवार को फ़र्स्टपोस्ट हिंदी ने एनबीसीसी के चेयरमैन अनूप कुमार मित्तल से बात की. मित्तल ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी से बात करते हुए कहा, ‘देखिए इस पूरे मामले को लेकर हमलोग एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं. रिपोर्ट तैयार होने में थोड़ा वक्त लगेगा. एनबीसीसी द्वारा तैयार रिपोर्ट अदालत को सौंपा जाएगा उसके बाद ही हमलोग कुछ कहने की स्थिति में होंगे.’
अब सवाल यह उठता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद और एनबीसीसी के प्रस्ताव को लेकर कई सवाल हैं? एक तरफ जहां फंसे बायर्स के मन में घर मिलने की उम्मीद जगी है वहीं ग्रुप के सोसायटियों में रहने वाले लोगों को शंकाएं और कई सवाल खड़े हो गए हैं. सोसायटी में रहने वाले लोग मेंटेनेंस को लेकर अब फिक्रमंद नजर आ रहे हैं.
अभी तक रखरखाव का पैसा बिल्डर के अकाउंट में ही जमा कराए जा रहे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इन अकाउंट्स में अब पैसे नहीं जमा हो पाएंगे. ऐसे में आम्रपाली बिल्डर्स के अपार्टमेंट्स में रहने वाले लोगों को बिजली-पीनी कट जाने का संकट सताने लगा है.
दूसरी तरफ नए होम बायर्स को यह चिंता सताने लगी है कि कहीं एनबीसीसी की तरफ से फिर से डिमांड न आ जाए. आम्रपाली के दर्जनों प्रोजेक्ट्स इस समय नोएडा और खासकर ग्रेटर नोएडा में चल रहे हैं. ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने अपनी रिपोर्ट में आम्रपाली के 6 प्रोजेक्ट्स को डी कैटेगरी में रख रखा है.
इस कैटेगरी को सबसे क्रिटिकल कंडीशन माना जाता है. इन 6 प्रोजेक्ट्स में लगभग 32 हजार होम बायर्स के पैसे लगे हैं. खासकर इन 6 प्रोजेक्ट्स को पूरा होने में अभी भी लगभग तीन हजार करोड़ रुपए लगेंगे. अब लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि यह 3 हजार करोड़ रुपए आएंगे कहां से? होम बायर्स को चिंता सताने लगी है कि इन 3 हजार करोड़ रुपए का भार कहीं होम बायर्स पर न आ जाए.
दूसरी तरफ एनबीसीसी इस पूरे मामले पर बेहद ही गोपनीयता बरत रही है. पिछली सुनवाई में कोर्ट की फटकार के बाद ही एनबीसीसी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ही शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय के सचिव और एनबीसीसी को एक विज्ञापन को लेकर अदालत में पेश होने का आदेश दिया था.
पिछले दिनों एनबीसीसी की तरफ से एक विज्ञापन जारी किया गया था, जिसमें इन अधूरे प्रोजेक्ट्स के लिए को-डेवपलपर्स से एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट मंगाया था. एनबीसीसी के इस विज्ञापन पर कोर्ट नाराजगी जताते हुए एनबीसीसी के चेयरमैन और शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय के सचिव को कोर्ट में पेश होने का आदेश जारी किया था. कोर्ट ने शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय से पूछा था कि जब अदालत में आम्रपाली मामले की सुनवाई चल रही है तो ऐसे में एनबीसीसी ने यह विज्ञापन कैसे जारी किया?
कोर्ट के इस आदेश के बाद गुरुवार को एनबीसीसी के चेयरमैन अनुप कुमार मित्तल और शहरी एवं आवास मंत्रालय के सेक्रेटरी दुर्गा शंकर मिश्रा कोर्ट में पेश हुए थे. गुरुवार को अदालत में एनबीसीसी के चेयरमैन ने कहा कि कंपनी ने को-डेवलपर्स के लिए एक सामान्य विज्ञापन दिया था न कि यह खासतौर पर आम्रपाली ग्रुप के लिए था.
वहीं शहरी विकास एवं आवास मंत्रालय के सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा ने कोर्ट से कहा कि इस पूरे मामले को हमलोग बहुत ही नजदीक से देख रहे हैं. यूपी सरकार ने भी नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे पर सभी अधुरी आवासीय योजना को पूरा करने के लिए एक कमेटी गठित कर रखी है. केंद्र और राज्य दोनों मिलकर होम बायर्स की समस्या दूर करना चाह रहे हैं. इस पर दो जजों की पीठ ने दुर्गा शंकर मिश्रा के प्रयासों की सराहना की और कहा कि आगे समिति को कोई भी कदम उठाने से पहले अदालत को अवगत कराना होगा.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई आठ अगस्त को होने वाली है. इसी दिन दो जजों की पीठ आम्रपाली ग्रुप के कंपनियों और निदेशकों और उनके बैंक खातों पर फैसला लेगी.
इधर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एनबीसीसी ने प्लान तैयार करने का काम शुरू कर दिया है. शुक्रवार को भी कंपनी की तरफ से कई वरिष्ठ अधिकारियों ने शहरी विकास मंत्रालय के अधिकारियों के साथ कई दौर की बैठकें की हैं.
आम्रपाली ग्रुप के कई प्रोजेक्ट्स के लटकने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कदम उठाया है. आम्रपाली ग्रुप ने जिन प्रोजेक्ट्स में खरीदारों को फ्लैट दे भी दिए हैं, वहां भी बुनियादी सहूलियतें को लेकर खरीदार कोर्ट जा रहे हैं. इसको लेकर भी खरीदारों में काफी रोष है.
पिछले एक साल से आम्रपाली ग्रुप सुप्रीम कोर्ट को गुमराह कर रहा था. हर सुनवाई के बाद ग्रुप की तरफ से नए-नए विकल्प देकर मामले को लंबा खींचने का प्लान तैयार किया जा रहा था. आम्रपाली ग्रुप के द्वारा लगातार बयान बदलने के बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने बीते 1 अगस्त को आम्रपाली और उससे जुड़ी 40 सिस्टर कंपनियों और उनके एमडी के बैंक अकाउंट्स को फ्रीज करने का फरमान सुनाया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था, 'फंड डायवर्जन रियल स्टेट की दुनिया की हकीकत है जिसे हम सदा के लिए खत्म कर के ही रहेंगे.’ ‘मिशन ट्रांसपेरेंसी’ और ‘मेरा घर, मेरा हक’ का नारा बुलंद करने वाले अनिल शर्मा पर कोर्ट ने लुका-छिपी खेले जाने और लाखों बायर्स के सपनों के साथ खिलवाड़ करने का भी गंभीर आरोप लगाया. कोर्ट ने कहा कि ये वैसे बायर्स हैं, जो पिछले आठ-दस सालों से अपने फ्लैट का कब्जा लेने के लिए रोड से अदालत तक पहुंचे हैं. हम इसको बहुत ही गंभीरता से ले रहे हैं.
बता दें कि पिछले साल 24 जुलाई को ही नोएडा पुलिस ने आम्रपाली ग्रुप के एक डायरेक्टर निशांत मुकुल और सीईओ ऋतिक को हिरासत में ले लिया था. यूपी सरकार को लेबर सेस नहीं जमा करने की वजह से राजस्व विभाग ने इन्हें गौतमबुद्ध नगर के डीएम के निर्देशों के बाद पकड़ा था. बाद में 4.29 करोड़ रुपए लेबर सेस देने के बाद इनको छोड़ा गया.
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में आम्रपाली बिल्डर के कई प्रोजेक्ट फंसे हुए हैं. कंपनी की वादाखिलाफी और समय पर घर न देने की वजह से उसके निवेशकों और खरीदारों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख से थोड़ी बहुत राहत जरूर देगी.
(साभार- फर्स्ट पोस्ट)
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