जून तिमाही में नई परियोजनाएं कम, सितंबर पर ध्यान
- नई परियोजनाओं की घोषणा में गिरावट
► राजनीतिक वजहों और ज्यादा ब्याज दरों की वजह से निवेश चक्र ठहरा
► सालाना आधार पर देखें तो नई परियोजनाओं की घोषणा 13 प्रतिशत कम हुई
► निवेश चक्र में सुधार की उम्मीद के हिसाब से सितंबर तिमाही के आंकड़े अहम
मुंबई: बिजनेस स्टैंडर्ड जून तिमाही में नई परियोजनाएं कम, सितंबर पर ध्याननई परियोजनाओं की घोषणा उतनी प्रचुर मात्रा में नहीं हैं, जितनी सामान्यतया होती हैं। क्षमता का कम इस्तेमाल और क्षेत्र में धारणात्मक बदलाव ने पहले नई घोषणाओं में अहम भूमिका निभाई थी और इन्हीं वजहों से जून तिमाही में नई परियोजनाओं की घोषणा में गिरावट आई है। इसका मतलब यह है कि निवेश चक्र में सुधार की उम्मीद के हिसाब से सितंबर तिमाही के आंकड़े अहम होंगे। इस अवधि के दौरान विपरीत रुख के कारण इस महत्त्वपूर्ण तिमाही के बाद की अवधि में काम में तेजी आना मुश्किल साबित होगा।
परियोजनाओं पर नजर रखने वाले सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के मुताबिक जून में समाप्त तिमाही में घोषित नई परियोजनाओंं की लागत इसके पहले की तिमाही के 2.28 लाख करोड़ की तुलना में 33.43 प्रतिशत घटी है। यह सिर्फ इस तिमाही के लिए विशेष नहीं है। घरेलू ब्रोकरेज आईआईएफएल सिक्योरिटीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि सालाना आधार पर देखें तो नई परियोजनाओं की घोषणा भी 13 प्रतिशत कम हुई है। जून 2018 में समाप्त 4 तिमाहियों में निवेश सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत रहा है। शोध विश्लेषक जीवी गिरि और अमित तिवारी द्वारा 20 जुलाई को लिखी गई रिपोर्ट में कहा गया है, 'यह 20 साल के दौरान घोषित निवेशों में सबसे कम निवेश है। वित्त वर्ष 2007-08 में सबसे ज्यादा जीडीपी का 60 प्रतिशत निवेश हुआ था, जिसकी तुलना मेंं यह बहुत कम है।'
क्षमता बढ़ाने के लिए कंपनियों द्वारा किए गए निवेश से आर्थिक वृद्धि में मदद मिली है। बहरहाल कंपनियां अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं कर रही हैं। भारतीय रिजïर्व बैंक विनिर्माण कंपनियों के तिमाही नमूनों की जांच करता है कि उनकी क्षमता का वास्तविक इस्तेमाल कितना है। ऑर्डर बुक, भंडारण और क्षमता के इस्तेमाल के सर्वे (ओबीआईसीयूएस) के हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि क्षमता का इस्तेमाल करीब 74 प्रतिशत रहा है। इसका मतलब यह है कि क्षमता का इस्तेमाल न होने से कंपनियों द्वारा क्षमता बढ़ाने पर निवेश किए जाने की संभावना नहीं है।
बिजली जैसे क्षेत्रों बदलाव की वजह से नई परियोजनाओं की घोषणा भी प्रभावित हुई है। आईआईएफएल ने पाया है कि किस तरह से बड़े बिजली संयंत्रों से निवेश हटकर छोटे अक्षय ऊर्जा संयंत्रों की ओर चला गया है। ब्रोकरेज ने पाया है कि रियल एस्टेट क्षेत्र, धातु और खनन में परियोजनाओं के अटकने का भी मसला रहा है। इन क्षेत्रों में भी तमाम परियोजनाएं अभी लागू होनी हैं, जिसका मतलब यह है कि नई घोषणाओं की संभावना बहुत मामूली है।
बहरहाल केंद्रीय बैंक के मुताबिक उम्मीद की किरण भी है। दिसंबर 2017 तिमाही के लिए सर्वे में ओबीआईसीयूएस सर्वे में कहा गया है, 'कुल मिलाकर सीयू (क्षमता उपभोग) वित्त वर्ष 2017-18 की तीसरी तिमाही में 74.1 प्रतिशत रहा है, जिसके साथ औद्योगिक उत्पादन सूचकांक बढ़ा है। इसके साथ ही वित्त वर्ष 2017-18 की तीसरी तिमाही में समायोजित क्षमता उपभोग 74.3 प्रतिशत रहा है।' सर्वे में पाया गया है कि ऑर्डर बुक भी बढ़ रहा है, जिससे मांग में बढ़ोतरी के संकेत मिलते हैं। सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि परियोजनाओं के अटकने की दर घट रही है। अटकी हुई कुल परियोजनाओं का मूल्य जून में 0.3 लाख करोड़ रुपये कम हुआ है। यह पिछली तिमाही में 3.44 लाख करोड़ रुपये था।
(साभार- बी.एस.)
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