डेटा फरमान से फर्में परेशान
मुंबई: भारत में परिचालन करने वाली अमेरिका की दिग्गज कंपनियों ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के सख्त स्थानीय डेटा भंडारण नियमों में ढील सुनिश्चित कराने में अमेरिका के वित्त मंत्रालय से मदद की गुहार लगाई है। सूत्रों ने कहा कि वीजा, मास्टरकार्ड, अमेरिकन एक्सप्रेस, पेपाल, गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट, एमेजॉन जैसी दिग्गज अमेरिकी कंपनियों के साथ ही साथ वैश्विक बैंकों ने आरबीआई के डेटा स्थानीयकरण के दिशानिर्देशों का विरोध करने के लिए उद्योग स्तर पर दबाव (लॉबी) समूह बनाने के लिए आपस में कई बार चर्चा की है। कुछ प्रभावशाली लॉबी समूह जैसे कि सिक्योरिटी इंडस्ट्रीज ऐंड फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन (सिफमा), ग्लोबल फाइनैंशियल मार्केट्स एसोसिएशन (जीएफएमए) और अमेरिका-भारत व्यापार परिषद अमेरिकी कंपनियों की ओर से स्थानीय स्टोरेज नियमों में ढील दिलाने का प्रयास कर रही है।
इन समूहों ने अमेरिका के वित्त मंत्रालय से कहा है कि वह भारतीय अधिकारियों से जी-20, अमेरिका-भारत रणनीतिक वार्ता और आईएमएफ सालाना बैठक सहित सभी मंचों पर डेटा भंडारण मसले पर चर्चा करें। एक समचार एजेंसी की खबर के मुताबिक वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने जून में आरबीआई और भुगतान उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ हुई बैठक में विशिष्टï तौर पर भारत में भुगतान के डेटा भंडारण करने के विकल्प के तौर पर डेटा प्रतिरूप (मिररिंग) का सुझाव दिया था। हालांकि आरबीआई ने इसे लेकर कोई वादा नहीं किया और कहा कि इस मसले से जुड़ी आशंकाओं को दूर करने के लिए वह अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब जारी करेगा। आरबीआई ने 6 अप्रैल को सभी भुगतान सेवा प्रदाताओं को यह सुनिश्चित करने को कहा था कि भुगतान प्रणाली से संबंधित सभी डेटा केवल भारत में ही स्टोर किए जाएं, ताकि उसकी बेहतर निगरानी हो सके।
इस आदेश के अनुपालन के लिए कंपनियों को 6 माह यानी 15 अक्टूबर तक समय दिया गया था। आरबीआई ने साल खत्म होने से पहले अनुपालन की अंकेक्षित रिपोर्ट भी जमा कराने को कहा था। केंद्रीय बैंक के साथ दबाव बनाने की रणनीति कारगर नहीं होने के बाद कंपनियां इस मसले को सरकार के स्तर पर ले गईं। हालांकि सूत्रों ने कहा कि आरबीआई डेटा भंडारण नियमों के अनुपालन की समयसीमा बढ़ाने का अनिच्छुक है। नीतिगत स्तर पर अमेरिकी सरकार ने वित्तीय डेटा के स्थानीयकरण का विरोध किया है और दुनिया भर में डेटा के मुक्त प्रवाह के महत्त्व को बढ़ावा दे रही है। अमेरिकी नीति के अनुसार डेटा के स्थानीयकरण से दूसरे देशों से होने वाला व्यापार बाधित होता है और नियमित कारोबार में देरी होती है।
संयुक्त राज्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार आयोग के हवाले से एक पत्र में कहा गया है, 'डेटा स्थानीयकरण से दूसरे देशों में कारोबार करने वाली अमेरिकी फर्मों की परेशानी बढ़ सकती है।' ऐसे समय में जब अमेरिका भारत सहित अन्य देशों पर व्यापार की बंदिशें लगा रहा है, वहीं डेटा स्थानीयकरण का मसला दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों को और जटिल बना सकता है। इस खबर में जिन कंपनियों का जिक्र किया गया है उनमें से अधिकांश ने इस बारे में उनका पक्ष जानने के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया। कुछ ने इतना भर कहा कि वह इस मसले पर टिप्पणी नहीं करना चाहतीं। आरबीआई को भेजे गए ईमेल का भी जवाब नहीं आया।
मामले के जानकार एक शख्स ने कहा कि आरबीआई इस मसले पर पीछे हटने को तैयार नहीं है, चाहे कितनी भी लॉबीइंग की जाए। सरकार तकनीकी तौर पर आरबीआई को इस मसले से पीछे हटने का आदेश नहीं दे सकती लेकिन इस तरह के किसी भी अनुरोध को नजरअंदाज करना नियामक के लिए कठिन होगा। एक शख्स ने कहा, 'वित्त मंत्रालय से ऐसे सुझाव आए हैं लेकिन उसे आदेश की तरह नहीं देखा जाना चाहिए।' सूत्रों के अनुसार भारत स्थानीय स्तर पर डेटा के भंडारण पर जोर देने की अपनी नीति को तार्किक ठहराया है लेकिन विवाद डेटा तक विशिष्टï पहुंच सीमित करने को लेकर है। सख्त से सख्त मामलों जैसे कि रूस और चीन में भी निर्दिष्टï डेटा को पहले देश में स्टोर करने के बाद ही हस्तांतरित किया जा सकता है। यूरोप, ब्रिटेन और स्वीडन डेटा के मुक्त प्रवाह को बढ़ावा देता है जबकि जर्मनी और फ्रांस इसके विरोध में है। एक शख्स ने बताया, 'आरबीआई यह कहता रहा है कि भारतीयों के वित्तीय डेटा को स्टोर करने का उसके पास अधिकार है। आरबीआई को विदेशी लेनदेन के डेटा विदेश में भंडारित करने को लेकर आपत्ति नहीं है लेकिन सवाल उठता है कि अपने नागरिकों के वित्तीय डेटा को अन्य देशों के साथ साझा करने की अनुमति क्यों होनी चाहिए।'
अंतरराष्ट्रीय भुगतान और स्विच प्रदाताओं ने पहले बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया था कि आरबीआई के डेटा स्थानीयकरण की अनिवार्यता से वैश्विक धोखाधड़ी और वित्तीय अपराध को रोकने के उनके उपाय कमजोर पड़ सकते हैं। इसके साथ ही भारत में नई तकनीक लाने की राह में भी यह बाधा खड़ी कर सकता है। यह सभी वैश्विक कंपनियों के लिए इस क्षेत्र में अपने कारोबारी मॉडल पर पुनर्विचार करने को मजबूर कर सकता है, जिसकी वजह से कई को परिचालन भी बंद करना पड़ सकता है। उदाहरण के तौर पर 2016 में ऑनलाइन भुगतान कंपनी पेपाल ने तुर्की में अपना परिचालन बंद कर दिया था क्योंकि उसे अपनी सूचना प्रणाली को पूरी तरह स्थानीयकृत करने को कहा गया था।
(साभार- बी. एस.)
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