लहू बोलता भी है: आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मुक़ीउद्दीन फ़ारूक़ी
आईये, जानते हैं,
आज़ाद ए हिन्द के एक और मुस्लिम किरदार- मुक़ीउद्दीन फ़ारूक़ी जी को ......
मुक़ीउद्दीन फ़ारूक़ी
उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के गांव अम्बेहरा में मुकीउद्दीन की पैदाइश सन् 1920 में एक ऐसे ख़ानदान में हुई थी, जोकि पूरा घराना ही शुरू से ही ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ आज़ादी के आंदोलनों में हिस्सा लेता रहा। सन् 1857 की जंगे-आज़ादी में आपके खानदान के कई लोग जेल गये थे। आपके वालिद खुद जंगे-आज़ादी के बड़े रहनुमाओं में थे। उनका नाम मौलाना मोइनुद्दीन फ़ारूक़ी था। सन् 1923 में वालिद का इंतकाल हो गया था। मुक़ीउद्दीन फ़ारूकी 7 साल की उम्र में सन् 1927 में तालीम के लिए अपने भाई के पास दिल्ली चले गये थे, jजहाँ शुरुआती तालीम के बाद सेंट स्टीफ़न कॉलेज में सन् 1934 में दाखि़ला लिया। आप शुरू से ही खादी का कपड़ा ही पहना करते थे, इसलिए स्टीफ़न कॉलेज में सबसे अलग शख़्सियत की आपकी पहचान बन गयी। आपने सन् 1936 में आल इण्डिया स्टूडेंट कांफ्रेंस करायी, जिसमें जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना भी शामिल हुए। इसके बाद आप नेशनल मूवमेंट का हिस्सा बन गये। पढ़ाई के साथ-साथ आप आंदोलनों की मीटिंगों और मुज़ाहिरों में भी जाते थे।
सन् 1940 में जब जवाहरलाल नेहरू को ब्रिटिश हुकूमत ने गिरफ़्तार कर लिया तो आपने उसकी मुख़ालिफ़त के लिए स्टूडेंटों का जुलूस निकालकर मुज़ाहिरा किया। इस जुर्म में यूनिवर्सिटी से निकाल दिये गये; साथ ही, एम.ए. की डिग्री भी ज़ब्त कर ली गयी। फारूक़ी को आल इण्डिया स्टूडेंट फेडरेशन का जनरल-सेक्रेटरी बनाय गया। फेडरेशन को मज़़बूत करने के लिए आप गांव-गांव जाकर मेम्बर जोड़ते और साथ ही अंग्रेजों के खिलाफ़ जंगे-आज़ादी का माहौल बनाने का काम करते। बाद में आप कम्युनिस्ट पार्टी के मेम्बर बने। अंग्रेजो भारत छोड़ो आंदोलन में भी अपने दिल्ली कांग्रेस कमेटी के साथ सरगर्मी से हिस्सा लिया। इसी दौरान एक जुलूस में आपकी गिरफ्तारी और 14 महीने की सज़ा हुई।
इस बीच मुस्लिम लीग और आर.एस.एस. व हिन्दू महासभा के लोगों ने कम्युनल सियासत शुरू की जिसकी वजह से दिल्ली का माहौल फ़िरक़ापरस्त होने लगा। तब फारूक़ी साहब ने अपने साथियों के साथ कम्युनल सियासत की भरपूर मुख़ालिफत की। आपने लीग की अलग मुल्क़ की मांग की भी बहुत मज़बूती से मज़म्मत की। आपने ब्रिटिश हुकूमत के दूसरी जंगे-अज़ीम की जीत के जश्न के बाइकाट की भी अपील की थी।
फारूक़ी साहब हमेशा क़ौमी इत्तहाद के हामी थे। आप सियासी तौर पर महात्मा गंाधी और मौलाना आज़ाद से हर मौकों पर राय-मशवरा किया करते थे। सन् 1947 में जब मुल्क का बंटवारा हुआ और दिल्ली में फ़िरक़ावाराना वारदातें हुई तो उस मौके़ पर आपने अपनी टीम के साथ बहुत बहादुरी से लोगों की मदद करने का काम किया। मुल्क आज़ाद होने के बाद आपको सरकारी ओहदों के लिए बुलाया गया लेकिन आपने मना कर दिया। देवगौड़ाजी की सरकार के वक़्त आपको गवर्नर बनाने के लिए कहा गया, लेकिन तब भी आपने इनकार कर दिया। सन् 1989 में भारत सरकार ने ज़ब्त एम.ए. की आपकी डिग्री को वापस देने का फ़ैसला किया, जिसे राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के हाथ से दिलवाकर आपकी इज़्ज़त अफ़ज़ायी की गयी।
आज़ादी के इस दीवानें की सांसे उस वक़्त परवाज़ कीं, जब 3 सितम्बर सन् 1997 को दिल्ली में एक अवामी जलसे को आप ख़िताब कर रहे थे।
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