उत्तर प्रदेश : सरकारी कर्मचारियों की होगी स्क्रीनिंग, 4 लाख कर्मियों पर गिर सकती है गाज: लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और कर्मचारी संगठनों ने किया बिरोध।
- लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी ने इस आदेश का किया बिरोध - 21 जुलाई को राजधानी -लखनऊ के जी•पी•ओ• पार्क में स्थित गाॅधी-प्रतिमा के निचे देगी धरना।
- योगी सरकार के आदेश से लाखों ईमानदार कर्मचारी और अधिकारी होने जा रहे हैं बेरोज़गार!
लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने काम को सही तरीके से अंजाम नहीं देने वाले 50 साल और उससे अधिक उम्र के सरकारी कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के लिये स्क्रीनिंग करने के आदेश दिये हैं.
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी और कर्मचारी संगठनों ने पिछली 06 जुलाई को जारी इस शासनादेश का विरोध किया है.
लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष (उ• प्र•)- सच्चिदा नन्द श्रीवास्तव ने इस जन-बिरोधी और कर्मचारी बिरोधी आदेश के बिरोध में 21 जुलाई दिन शनिवार को उत्तर प्रदेश की राजधानी - लखनऊ में GPO पार्क में स्थित गाॅधी प्रतिमा पर एक दिवसीय धरना का ऐलान किया है।
प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि जिस प्रकार उच्च स्तर पर भ्रष्टाचार ब्याप्त है, क्या यह आदेश उनके लिए एक हथियार नहीं बन जाएगा और क्या इसके शिकार चापलूसी नहीं करने वाले, भ्रष्टाचार में सहभागिता नहीं करने वाले ईमानदार और दबाव में नहीं आने वाले कर्मचारी और अधिकारी नहीं होंगे।
श्रीवास्तव ने कहा कि यह आदेश नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का और कर्मचारियों/अधिकारियों/सरकारी सेवकों के मौलिक अधिकार का हनन है।
कर्मचारी/अधिकारी/सरकारी सेवक के लिए पहले से ही सेवा आचरण नियम तथा अनुशासन व अपील नियम उपलब्ध है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक कर्मचारी/अधिकारी/सरकारी सेवक के लिए उन आचरण नियमों का पालन बाध्यकारी है तथा उलंघन करने पर नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन करते हुए सरकारी कर्मचारी/अधिकारी विशेष को चार्जशीट देकर तथा अपना पक्ष प्ररस्तुत करने का अवशर देकर छोटी सजा- चेतावनी से लेकर विभागीय-जाॅच करा कर बड़ी सजा- अनिवार्य सेवा-निवृत्ति ही नहीं, सेवा से निकालने तक की सजा का प्रावधान है और साथ ही उस सजा के बिरुद्ध अपील व रिब्यू करने का प्रावधान है।
इस आदेश से भ्रष्टाचार और बढ़ेगा।
अपर मुख्य सचिव मुकुल सिंघल द्वारा राज्य के सभी विभागों के अपर मुख्य सचिवों एवं सचिवों को जारी किये शासनादेश में कहा गया ‘‘वित्तीय हस्तपुस्तिका खण्ड 2, भाग 2 से 4 में प्रकाशित मूल नियम-56 में व्यवस्था है कि नियुक्ति प्राधिकारी, किसी भी समय, किसी सरकारी सेवक को (चाहे वह स्थायी हो या अस्थायी), नोटिस देकर बिना कोई कारण बताए, उसके 50 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद सेवानिवृत्त हो जाने की अपेक्षा कर सकता है. ऐसे नोटिस की अवधि तीन माह होगी.’’
शासनादेश में सभी विभागाध्यक्षों से कहा गया है कि वे अपने विभाग के अधिष्ठान नियंत्रणाधीन सभी कर्मियों के सम्बन्ध में अनिवार्य सेवानिवृत्ति के लिये स्क्रीनिंग की कार्यवाही 31 जुलाई तक जरूर पूरी कर लें.
50 वर्ष की आयु के निर्धारण के लिये कट-ऑफ डेट 31 मार्च 2018 होगी. यानी ऐसे सरकारी सेवक जिनकी आयु 31 मार्च 2018 को 50 वर्ष या उससे अधिक होगी, वे स्क्रीनिंग के लिये विचार के दायरे में आएंगे.
हालांकि, कर्मचारियों ने इस शासनादेश पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. उत्तर प्रदेश सचिवालय कर्मी एसोसिएशन के अध्यक्ष यादवेन्द्र मिश्र ने कहा कि सरकार के इस तरह के कदम दरअसल, कर्मचारियों को परेशान करने के लिये हैं. इसे बरदाश्त नहीं किया जाएगा.
माना जा रहा है कि प्रदेश के 16 लाख में से चार लाख सरकारी कर्मी इस स्क्रीनिंग के दायरे में आएंगे. उनके कामकाज और प्रदर्शन के बारे विस्तृत रिपोर्ट 31 जुलाई तक सम्बन्धित आला अधिकारियों को सौंपी जाएगी.
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