कुछ और दवाओं के दाम होंगे तय
मुम्बई, 03 जुलाई: सरकार देश में दवा की कीमतें तय करने की वर्तमान व्यवस्था को बदलने की योजना बना रही है। इसके तहत दवा कीमत नियंत्रण आदेश 2013 में इस एक संशोधन पर पूरी सक्रियता से विचार किया जा रहा है कि दवाओं पर 5एमजी, 10एमजी जैसे स्ट्रेंथ बताने वाले संकेतों को हटाया जाए। अगर ऐसा हुआ तो भारतीय दवा बाजार की करीब एक चौथाई दवाइयां (मूल्य के लिहाज से) कीमत नियंत्रण के दायरे में आ जाएंगी।
इस समय 850 से अधिक आवश्यक दवाओं की अधिकतम कीमतें सरकार तय करती है। ये दवाएं आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची के तहत आती हैं। इन दवाओं के अधिकतम दाम सरकार तय करती है। आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में शामिल दवाओं की अधिकतम कीमतों में हर साल थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर बढ़ोतरी की जा सकती है। इस सूची से बाहर जो दवाएं हैं, उनकी कीमतों में हर साल करीब 10 फीसदी बढ़ोतरी की मंजूरी है।
भारतीय दवा बाजार करीब 1.2 लाख करोड़ रुपये का है, जिसमें से करीब 17 फीसदी अब कीमत नियंत्रण के दायरे में है। इस समय किसी दवा पर कीमत नियमन तभी लागू होता है, जब वह एक निर्धारित स्ट्रेंथ में हो और आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची के दायरे में आती हो। दरअसल इससे दवा विनिर्माता कंपनियों को सूची में शामिल दवाओं को अलग-अलग स्ट्रेंथ में बेचने का रास्ता मिल जाता है। माना कि कीमत नियंत्रण आदेश में 100 एमजी स्ट्रेंथ का जिक्र किया गया है, लेकिन दवा विनिर्माता डॉक्टरों या खुदरा विक्रेताओं को प्रोत्साहन देकर उसी दवा के 250 एमजी वाले फॉर्म की बिक्री को बढ़ावा दे सकता है।
उद्योग ने एक सूत्र ने नाम न छापने का आग्रह करते हुए कहा, 'अगर दवा पर स्ट्रेंथ के उल्लेख को खत्म कर दिया जाता है तो आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची का दायरा करीब 40 फीसदी बढ़ जाएगा। इससे करीब 24 फीसदी भारतीय दवा बाजार कीमत नियंत्रण के दायरे में आ जाएगा, जो इस समय 17 फीसदी है।' एक अग्रणी दवा कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने भी इस बात की पुष्टि की कि इस विषय में विचार-विमर्श चल रहा है। उन्होंने कहा, 'अंतिम दवा नीति को लेकर अभी कोई स्पष्टता नहीं है। कई प्रस्तावों पर विचार किया जा रहा है। दवाओं की स्ट्रेंथ के संकेत को समाप्त करना उनमें से एक है।'
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई चीजों पर विचार किया जा रहा है और करीब एक महीने में ही स्थिति ज्यादा साफ हो पाएगी। हालांकि उन्होंने उन संशोधनों के बारे में जानकारी देने से इनकार कर दिया, जिन्हें लेकर विचार-विमर्श चल रहा है।
सरकार दवा कीमत नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) 2013 में बदलावों के अलावा कीमत नियामक (राष्ट्रीय दवा कीमत प्राधिकरण) को पुनर्गठित करने की भी योजना बना रही है। सरकार का थिंक टैंक नीति आयोग इस साल के प्रारंभ में दवा उद्योग के प्रतिनिधियों से मिला था और दवाओं की कीमतों से संबंधित मसलों को लेकर उद्योग की प्रतिक्रिया ली थी।
दवा उद्योग से जुड़े लोगों ने दावा किया कि भारत में दवा की कीमतें विकसित देशों के मुकाबले कम हैं। एक व्यक्ति ने कहा, 'अगर और दवाओं को कीमत नियंत्रण के तहत लाया जाता है तो जरूरी नहीं कि इससे दवाओं की बिक्री में बढ़ोतरी हो। बिक्री घट भी सकती है क्योंकि दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी से बिक्री पर खास असर नहीं पड़ता है।'
(साभार- बिजनेस स्टैण्डर्ड)
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