
राज्य सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का सजीव प्रसारण: प्रधानमंत्री कार्यालय
नई दिल्ली (PIB): प्रधानमंत्री कार्यालय ने राज्य सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का YouTube पर सजीव प्रसारण जारी किया।
राज्य सभा में प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का सजीव प्रसारण देखने के लिए निचे दिए लिंक पर क्लिक करें:
https://www.youtube.com/live/VtiXeJe3FUo?feature=shared
Prime Minister Narendra Modi's reply to the Motion of Thanks in Rajyasabha
प्रधानमंत्री कार्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा ____
आदरणीय सभापति जी,
आदरणीय राष्ट्रपति जी ने भारत की उपलब्धियों के बारे में, दुनिया की भारत से अपेक्षाओं के बारे में और भारत के सामान्य मानवीय का आत्मविश्वास विकसित भारत बनाने का संकल्प, इन सारे विषयों को लेकर के विस्तार से चर्चा की है, देश को आगे की दिशा भी दिखाई है। आदरणीय राष्ट्रपति जी का अभिभाषण प्रेरक भी था, प्रभावी भी था और हम सबके लिए भविष्य के काम का मार्गदर्शन भी था। मैं आदरणीय राष्ट्रपति जी के उद्बोधन पर धन्यवाद करने के लिए उपस्थित हुआ हूं!
आदरणीय सभापति जी,
करीब 70 से भी ज्यादा माननीय सांसदों ने अपने बहुमूल्य विचारों से इस आभार प्रस्ताव को समृद्ध करने का प्रयास किया है। यहां पक्ष, प्रतिपक्ष दोनों तरफ से चर्चा हुई। हर किसी ने अपने-अपने तरीके से राष्ट्रपति जी के अभिभाषण को जिसने जैसे समझा, वैसे यहां समझाया और उन्होंने आदरणीय सभापति जी, यहां पर सबका साथ सबका विकास इस पर बहुत कुछ कहा गया। मैं समझ नहीं पाता हूं कि इसमें कठिनाई क्या है। सबका साथ सबका विकास यह तो हम सबका दायित्व है और इसीलिए तो देश ने हम सबको यहां बैठने का अवसर दिया है और उसमें, लेकिन जहां तक कांग्रेस का सवाल है, उनसे सबका साथ सबका विकास इसके लिए कोई अपेक्षा करना मैं समझता हूं कि बहुत बड़ी गलती हो जाएगी। यह उनकी सोच के बाहर है, उनकी समझ के भी बाहर है और उनके रोड मैप में भी यह सूट नहीं करता है, क्योंकि वह इतना बड़ा दल एक परिवार को समर्पित हो गया है, उसके लिए सबका साथ सबका विकास संभव ही नहीं है। ...............
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आदरणीय सभापति जी,
जब प्रगति की राह पर देश चल पड़ा है। विकास की नई ऊंचाइयों को देश अर्जित कर रहा है, तब हम सब की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण है। सरकारों में विरोध होना, लोकतंत्र का स्वभाव है। नीतियों का विरोध होना, लोकतंत्र की जिम्मेदारी भी है, लेकिन घोर विरोधवाद, घोर निराशावाद और अपनी लकीर लंबी नहीं करनी, दूसरी लकीर को छोटा करने की कोशिशें विकसित भारत में रुकावट बन सकती हैं, हमें उनसे मुक्त होना होगा और हमें आत्ममंथन भी करना होगा, निरंतर मंथन करना होगा। मुझे भरोसा है कि सदन में जो चर्चा हुई है, उसमें से जो उत्तम चीजें हैं, उसको लेकर के हम आगे बढ़ेंगे और हमारा मंथन जारी रहेगा, हमें निरंतर ऊर्जा राष्ट्रपति जी के उद्बोधन से मिलती रहेगी। एक बार फिर राष्ट्रपति जी का मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूं और सभी माननीय सांसदों का भी आभार व्यक्त करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद!
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