Climate कहानी: जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य को जोड़ने वाला आईपीबीईएस का 'नेक्सस असेसमेंट' - भारत के लिए एक सबक
लखनऊ: आज 'विशेष' में प्रस्तुत है, "जैव विविधता , जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य को जोड़ने वाला आईपीबीईएस का ' नेक्सस असेसमेंट ': भारत के लिए एक सबक"।
जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य को जोड़ने वाला आईपीबीईएस का 'नेक्सस असेसमेंट' - भारत के लिए एक सबक
वर्तमान विश्व में जिन संकटों का सामना करना पड़ रहा है - जैसे जैव विविधता का नुकसान , पानी की कमी , भोजन की असुरक्षा , स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा और जलवायु परिवर्तन - ये सभी एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। लेकिन अब तक , अलग-अलग स्माथ के रूप में देखा गया और स्कॉलर का प्रयास किया गया। 17 दिसंबर 2024 को इंटरनैशनल साइंस-पॉलिसी प्लेटफॉर्म ऑन बायोडायवर्सिटी एंड इकोसिस्टम ( आईपीबीईएस) ने एक नई रिपोर्ट ' नेक्सस असेसमेंट ' जारी की है , जो इन संयुक्त संकटों के लिए एक समग्र और एकीकृत इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की बात करती है।
165 अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में भारत के नीति कलाकारों को पांच क्षेत्रों में शामिल किया गया है-जैव विविधता , पानी , भोजन , स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन-के बीच व्यावहारिकता को समझना और उनके लिए गठित समाधान दुनिया का ध्यान केंद्रित करता है।
भारत के लिए यह रिपोर्ट क्यों महत्वपूर्ण है ?
भारत एक ऐसा देश है , जहां कृषि उद्योग का कारोबार और जनसंख्या का बड़ा हिस्सा प्राकृतिक स्वतंत्रता पर निर्भर है , इस रिपोर्ट में सुझाए गए उपाय बेहद अधूरे हैं। जल संकट , प्रदूषण , वनों की कटाई और पशुधन शहरीकरण जैसे मुद्दे यहां न केवल जैव विविधता को प्रभावित कर रहे हैं , बल्कि स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अगर इन संकटों का समाधान अलग-अलग तरीके से किया गया , तो इससे नुकसान हो सकता है। उदाहरण के लिए , केवल कार्बन डाइऑक्साइड कम करने पर ध्यान केंद्रित करने से भूमि उपयोग में बदलाव होगा , जिससे खाद्य उत्पाद और पानी की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
" यदि हम जैव विविधता को प्राथमिकता देते हुए समाधान निकालते हैं , तो अन्य क्षेत्रों पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।"
मुख्य शीर्षक: भारत के लिए क्या महत्वपूर्ण है ?
1. जैव विविधता और अलौकिक तंत्र का संरक्षण
भारत में वनों , मैंग्रोव , नमभूमियों और अन्य वृक्ष तंत्रों की रक्षा करना न केवल जलवायु परिवर्तन से राहत देता है , बल्कि पानी की गुणवत्ता और खाद्य उत्पादन में भी सुधार करता है।
उदाहरण के तौर पर , नाज़ीर में अपनाई गई "किसान-प्रबंधित प्राकृतिक पुनर्जनन" तकनीक में न केवल जैव विविधता को बढ़ावा मिला , बल्कि अनाज उत्पादन में 30% की वृद्धि हुई।
भारत में इसी तरह के कृषि-वन संयंत्रों को अपनाकर जैव विविधता संरक्षण और खाद्य सुरक्षा में सुधार लाया जा सकता है।
2. जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य के समाधान पर ध्यान
जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में बढ़ती ठंड , भीषण वर्षा और अधिक बाढ़ की घटनाएं, स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से 58% संक्रामक रोगों को बढ़ावा मिल सकता है। भारत में विखंडन , मलेरिया रोगजन्य रोग उदाहरण हैं।
डब्ल्यूएचओ के स्वास्थ्य एवं क्लिनिक विभाग के निदेशक डॉ. मारिया नेइरा का कहना है ,
" प्रकृति केवल संकटों की तलाश नहीं है , एक समाधान भी है। स्वस्थ और जैव विविधता-समृद्ध आहार तंत्र जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने , बौद्ध धर्म को बढ़ावा देने और पोषण में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।"
3. स्टुअर्ट खाद्य प्रणाली और आहार में बदलाव
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में खाद्य उत्पादन बढ़ाने की रणनीति के कारण जैव विविधता , पानी और मिट्टी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। लेकिन खाद्य और खाद्य प्रणाली से यह प्रभाव कम हो सकता है।
कृषि उत्पादों को बढ़ावा देना , खाद्य उत्पादों को कम करना और आहार विविधता को बढ़ावा देना आवश्यक है ।
भारत में मोटे अनाजों (जैसे रागी , बाजरा) को एक प्रतिष्ठा और पोषण-समृद्ध आहार सुनिश्चित किया जा सकता है।
4. वित्तीय और शासन सुधार
रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया भर में हर साल $7 ट्रिलियन की विविधता और प्रकटीकरण तंत्र को नुकसान पहुंचाने वाली चट्टान पर खर्च होता है , जबकि केवल $200 ट्रिलियन इसे संरक्षित करने में लगाए जाते हैं।
भारत जैसे पूर्वोत्तर देशों को केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले ही नहीं, बल्कि पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को खत्म करना भी जरूरी है ।
डॉ. पूर्णमिता दासगुप्ता , भारतीय विशेषज्ञ और आईपीबीईएस रिपोर्ट की सह-लेखिका , सलाहकार हैं:
" उच्च कृषि में वित्तीय सुधार न केवल लागत को कम करेंगे , बल्कि क्षेत्रीय दृष्टिकोण के नुकसान से बचाएंगे।"
जैव विविधता , स्वास्थ्य और न्याय: एक स्तर का दृष्टिकोण
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत जैसे देशों में स्थानीय और आदिवासी समुदायों की भूमिका बेहद अहम है। उनके पास पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक संरचना के संरक्षण के स्थायी उपाय हैं।
उदाहरण के लिए , ब्राज़ील के एक अध्ययन में दिखाया गया है कि आदिवासियों और स्थानीय द्वीपों की भूमि पर अधिकार के रूप में वनों की कटाई में कमी और पुनर्स्थापना में वृद्धि हुई है। भारत में , जहां जनजातीय समुदाय के वनों और जैव विविधता पर गहराई से प्रतिबंध लगाया गया है , इस तरह के अधिकार-आधारित दृष्टिकोण को बढ़ावा देने से लेकर प्राकृतिक निर्माण के प्रबंधन में सुधार हो सकता है।
अमन ( इंडोनेशिया के इंडोनेशिया के संगठन) के समूह रुक्का सोमबोलिंगी के सदस्य हैं:
" जैव विविधता का जैव विविधता , भोजन , पानी और स्वास्थ्य से अलग नहीं किया जा सकता है । " संकट को हल करना भी जरूरी है।"
समन्वित नीति निर्माण क्यों आवश्यक है ?
आईपीबीईएस की रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि पारंपरिक और अलग-अलग नीति निर्माण के तरीके अब लागू नहीं होंगे। जैव विविधता , पानी , भोजन , स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के संकटों के लिए पत्थर के लिए निर्मित नीति की आवश्यकता है।
समान पृथक्करण: अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं असंबद्ध और अनुयायियों को काम करना होगा।
ट्रेड-ऑफ को कम करना: जैसे कि भूमि के अत्यधिक उपयोग वाले खाद्य उत्पादों पर प्रभावशाली प्रभाव डाला जा सकता है। इसलिए , निगमों को इस तरह से डिज़ाइन करना होगा कि सभी क्षेत्रों को लाभ हो।
समय पर कार्रवाई: रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि समाधान में देरी की गई , तो लागत भिन्नता को नुकसान हो सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार ,
" यदि वर्तमान समुदायों और साहसिक कार्यों को दूर नहीं किया गया , तो यह संकट और अंधकारमय हो जाएगा।"
भारत के लिए अगला कदम
1. संरक्षण पर निवेश:
भारत को अपनी जैव विविधता को बचाने के लिए वित्तीय स्रोत स्टॉक होंगे। वन , नामभूमि और मैंग्रोव जैसे मशाल तंत्रों को प्रयोगशाला मिलेगी।
2. जदयू मित्र की भागीदारी:
नीति निर्माण में स्थानीय और जनजाति समुदाय की स्क्रीनिंग सुरक्षा करनी होगी। उनके ज्ञान को प्रबंधन और प्रबंधन में शामिल करना बेहद महत्वपूर्ण है।
3. शिक्षा और जागरूकता:
स्थानीय स्तर पर जागरूकता अभियान, प्लास्टिक से लेकर स्थिरता अनुपात और प्रशिक्षण के कुशल उपयोग में मदद।
4. सस्ता मिश्रण:
सरकार को स्टुअर्ट आहार को बढ़ावा देने के लिए स्टूडियो बनाने की आवश्यकता है। भारत में मोटे अनाजों और पारंपरिक मसालों को प्रोत्साहन देना इसका प्रमुख हिस्सा हो सकता है।
5. अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभानी होगी और आईपीबीईएस जैसे प्रयासों का समर्थन करना होगा।
निष्कर्ष: भविष्य के लिए निर्मित दृष्टिकोण
आईपीबीईएस की ' नेक्सस असेसमेंट ' रिपोर्ट में भारत जैसे पूर्वोत्तर देशों को संदेश दिया गया है कि वहां की जैव विविधता , पानी , खान-पान , स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन को अलग-अलग संकटों के रूप में देखा जाना चाहिए , बजाय इसके उन्हें देखने के दृष्टिकोण से हल किया जाना चाहिए।
यह रिपोर्ट केवल संकट की चेतावनी का संकेत नहीं है , बल्कि यह एक अवसर भी है कि हम अपने पर्यावरण , समाज और उद्योग के लिए नए रास्ते तलाशें।
जैसे कि कौन कौन से डॉ . मारिया नेइरा ने कहा:
" प्रकृति में निवेश करना , हमारे स्वास्थ्य और भविष्य में निवेश करना समान है।"
भारत को इस संदेश को नामांकित से लेकर अपने विकास मॉडल को पुनर्परिभाषित करने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए।
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