ओवरथिंकिंग न करें, बदलें अपनी सोच: सुनील कुमार 'महला'
लखनऊ: उत्तराखंड के साहित्यकार सुनील कुमार महला, "ओवरथिंकिंग न करें, बदलें अपनी सोच !" शीर्षक से प्रस्तुत अपने लेख में बताते हैं कि, आज आदमी हर कहीं अवसाद व तनाव से घिरा हुआ है। भागम-भाग भरी, दौड़-धूप भरी जिंदगी है। इस दौड़-धूप भरी जिंदगी में आदमी सदैव विचारवान बना रहता है। विचार हमेशा हमारे मन-मस्तिष्क में लगातार आते रहते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम अपनी सोच का तरीका बदलकर अपने जीवन को बदल सकते हैं?-
लेखक का कहना है कि, जीवन में अनेक आमूलचूल परिवर्तन ला सकते हैं और जीवन को सुंदर, सफल बना सकते हैं। आज आदमी हर बात को लेकर ओवरथिंकिंग करता है और यह ओवरथिंकिंग हमें अनेक समस्याओं से घेर लेती है। हम तनाव और अवसाद के शिकार हो जाते हैं। हम खुश नहीं रह पाते और जीवन हमें बोझ सा लगने लगता है। हमें ओवरथिंकिंग(बहुत अधिक सोचना) की अपनी निरंकुश सोच पर लगाम लगाने की कोशिश करनी चाहिए और स्वयं को सकारात्मक दिशा में ले जाने का प्रयास करना चाहिए और यह हम आसानी से कर सकते हैं।
हम अपनी सोच से इस देश,इस समाज और स्वयं तक को बदल सकते हैं। इसलिए जब भी हम कुछ सोचें स्पष्ट सोचें। हम अपनी सोच से हमारे मस्तिष्क को सकारात्मक और मजबूत बनाएं। सकारात्मक और नकारात्मक सोचने का फैसला हमारे ही हाथों में है। किसी दूसरे के हाथों में नहीं। हम नकारात्मक क्यों सोचें? स्वयं को सकारात्मक होने का प्रशिक्षण दें। सोचने की प्रक्रिया आजीवन चलने वाली प्रक्रिया होती है। नकारात्मक सोच-सोच कर हम स्वयं को क्यों प्रभावित करें ? नकारात्मक ऊर्जा हर तरफ बिखरी पड़ी हुई है। हम स्वयं को नकारात्मक लोगों, नकारात्मक सोच से दूर रखें। प्रकृति में रम-बस कर अपने मन-मस्तिष्क को मजबूत करें।
हमारा दृष्टिकोण,हमारी सोच स्वयं हम पर निर्भर करती है। अक्सर हम सोचते हैं, खूब चिंता करते हैं, तनावग्रस्त होते हैं और घबरा जाते हैं। दरअसल,हम अपने मस्तिष्क को नकारात्मक सोच से किसी मकड़ी के जाले सदृश्य स्वयं ही तो उलझाते है। हम इस मकड़ी नुमा जाले से स्वयं को बाहर निकालें। स्वयं को अधिकाधिक व्यस्त रखें। प्रकृति के सानिध्य में रहते हुए पहाड़ों, फूलों, पशु-पक्षियों, झरनों, नदी-नालों, प्राकृतिक छटाओं, वादियों, हमारे आस-पास बिखरे प्राकृतिक सौंदर्य, वनस्पतियों से बातचीत करें। ब्रह्मांड में सकारात्मकता भी है और नकारात्मकता भी। हम इस ब्रह्मांड से सकारात्मक ऊर्जा को चुनें। यकीं मानिए मनुष्य के 99% विचार बेकार ही होते हैं।
मनोवैज्ञानिक विलियम जेम्स कहते थे बहुत से लोग समझते हैं कि वे सोच रहे हैं, जबकि वे केवल अपने पूर्वाग्रहों को फिर से व्यवस्थित कर रहे होते हैं। लेकिन यह व्यावहारिकता नहीं है, क्योंकि हमारे दिमाग को हमारे हित में काम करना चाहिए, उसके विरुद्ध नहीं।
अगर दिमाग हमारे विरुद्ध काम कर रहा है, तो यह कभी भी ठीक नहीं हो सकता। हम स्वयं को नियंत्रित करें और अपने मन को बांधना सीखें जो लोग मन पर नियंत्रण नहीं रखते, वे समझते हैं कि वे सोचे बिना नहीं रह सकते। क्या आप सोचते हैं कि यदि हम ज्यादा सोचेंगे, चिन्तन-मनन करेंगे तो हम चीजों पर काबू पा सकेंगे ? हमारी यह सोच बहुत ही ग़लत है। अधिक चिंतन-मनन से किसी चीज़ का समाधान संभव नहीं होता। हम शान्त मन से सोचें, स्वयं को नियंत्रित करें, भावनाओं में नहीं बहें। वास्तव में हमें यह याद रखने की जरूरत होती है कि , हम क्या, कैसे और किस प्रकार से सोचते हैं, यह तय करने की क्षमता हमारे स्वयं में ही है। हमें यह चाहिए कि हम ज्यादा सोच-विचार करें ही नहीं, शान्ति से बैठ जाएं। अपने मस्तिष्क को आराम दें। विचारों को कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दें। अक्सर हम चिंता, तनाव और व्यर्थ के विचारों से भरे होते हैं। हम उन चीजों से घबरा जाते हैं, जिन्हें हम नियंत्रित नहीं कर सकते, और कभी-कभी तुरंत ही उनके आदर्श समाधान ढूंढना चाहते हैं, जिससे हम और अधिक तनावग्रस्त हो जाते हैं।
इन सबका एक ही समाधान है कि हम सीधे और तेज सोचें। यकीं मानिए अपने सोचने का तरीका बदलेंगे, तो हमारी दुनिया भी बदल जाएगी। हमारी सोच उपयोगी होनी चाहिए। वास्तव में हमारा फोकस अच्छी चीजों पर होना चाहिए। हमें यह चाहिए कि हम केवल और केवल उन्हीं चीजों के बारे में सोचें, जिन पर हमारा नियंत्रण है। जिन चीजों पर हमारा नियंत्रण ही नहीं है उन पर सोचकर समय खराब करके आखिर क्या फायदा ? हमें यह चाहिए कि हम अपनी इंद्रियों का उपयोग बड़ी देखभाल कर करें। सबसे बड़ी बात होती है कि हमारा मन जब बाहर से बहुत सारी सूचनाएं एकत्रित कर लेता है फिर उसी के अनुसार ही वह काम भी करता है। तो हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जो भी सूचनाएं आये वो सकारात्मक हो,नकारात्मक नहीं। हमें यह चाहिए कि हम अच्छे वातावरण में रहें। अच्छा साहित्य पढ़ें।
अच्छे व्यवहार को अपनाएं। अच्छा संगीत सुनें। याद रखिए कि जैसी हमारी सोच होती है दूसरे लोग हमें वैसे ही दिखाई देते हैं। इसलिए हमें ग़लत विचारों से सदैव बचना चाहिए। वास्तव में मन में उठने वाले विचारों पर नियंत्रण कर हम अपने जीवन को मनचाहा आकार दे सकते हैं। जैसा भाव या विचार वैसा ही जीवन। याद रखिए कि सकारात्मक विचार ही हमारे पुरुषार्थ को संभव बनाता है। पुरुषार्थ के लिए उत्प्रेरक तत्व मन ही है। आनंद,खुशी मन के भाव है।भौतिक सुख-सुविधाओं में आनंद नहीं है, यदि मन प्रसन्न नहीं। मनोविज्ञान के अनुसार जो व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। इसलिए हमेशा अच्छा सोचें और जीवन पथ पर निरंतर आगे बढ़ते जाएं।
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